एक साथ चुनाव कराने पर जनता की राय पूछ रही है सरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस संबंध में विचार रखे जाने तथा बाद में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा भी ऐसा ही कहने के बाद उक्त कदम उठाया गया है। वेबसाइट पर इस संबंध में पूछे गए कुछ सवाल हैं, क्या एक साथ चुनाव कराना वांछनीय है। इसके लाभ और हानि क्या हैं। यदि एक साथ सभी चुनाव कराए गए तो, जिन विधानसभाओं का कार्यकाल चुनाव की तिथि के बाद समाप्त होने वाले हैं, उनका क्या होगा। क्या लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल तय कर दिया जाना चाहिए। कार्यकाल के बीच यदि उपचुनाव कराने की नौबत आई तो क्या होगा। क्या होगा यदि लोकसभा या राज्यों की विधानसभाओं में सत्तारूढ़ दल या सत्तारूढ़ गठबंधन अपना बहुमत मध्यावधि में खो देता है।
ऐसे सवालों के कारणों को समझाते हुए एक नोट में कहा गया है, लोकसभा और विधानसभाओं के लिए साथ-साथ चुनाव कराने की वांछनीयता पर विभिन्न स्तरों पर चर्चा हुई है। एक विचार यह भी है कि साथ-साथ चुनाव कराने से न सिर्फ मतदाताओं का उत्साह बना रहेगा, बल्कि इससे काफी धन की बचत होगी और प्रशासनिक प्रयासों की पुनरावृति से भी बचा जा सकेगा। नोट में कहा गया है, इसके माध्यम से राजनीतिक दलों के खर्च पर भी नियंत्रण लगाने की आशा की जा रही है। साथ-साथ चुनाव होने से बार-बार चुनावी आदर्श आचार संहिता भी लागू नहीं करनी पड़ेगी, जिसके कारण सरकार की प्रशासनिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। नोट में इंगित किया गया है कि यदि साथ-साथ चुनाव कराने का फैसला लिया जाता है तो कई ढांचागत सुधार करने होंगे जिसमें संविधान के अनुच्छेदों 83, 172, 85 और 174 का संशोधन भी शामिल है।