अयोध्या विवाद के सबसे बुजुर्ग पैरोकार अंसारी के निधन से समाज में दुख की लहर
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के आखिरी मूल वादी हाशिम अंसारी का हृदय संबंधी बीमारियों की वजह से बुधवार सुबह अयोध्या में निधन हो गया। वर्ष 1949 से बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े 95 वर्षीय अंसारी ने अयोध्या स्थित अपने आवास पर आखिरी सांसें लीं। अंसारी को बेहद करीब से जानने वाले बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जाने से एक बोलती हुई जबान खामोश हो गई, जो बाबरी मामले पर मीडिया और समाज में अपना सम्मान हासिल कर चुकी थी। जीलानी ने बताया कि अंसारी ने ही दुनिया को अयोध्या मामले से वाकिफ कराया और खुद उन्हें अपनी साइकिल के कैरियर पर बैठाकर विवादित स्थल का दौरा कराया था। वर्ष 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से इस मामले को लेकर दायर मुकदमे में वह पांचवें नंबर के वादकारी थे। उन्होंने बताया कि वर्ष 1958 में धारा 188 का उल्लंघन करते हुए मस्जिद में अजान देने और नमाज पढ़ने पर अंसारी को दो माह की सजा हुई थी। बाद में उन्होंने जिला जज की अदालत में अपील की थी, जिसके आदेश पर उन्हें छोड़ दिया गया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अंसारी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने अपने शोक संदेश में दिवंगत आत्मा की शांति की कामना करते हुए शोक संतप्त परिजनों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त की है।
इस बीच, राम मंदिर आंदोलन के अहम सहभागी संगठन विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के प्रवक्ता शरद शर्मा ने अंसारी के निधन पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि कट्टरतावादियों को अंसारी से सबक लेना चाहिए। शर्मा ने कहा कि अंसारी के विचार मुस्लिम कट्टरपंथियों से अलग थे। अन्ततोगत्वा राम का नाम ही सत्य है। अंसारी पानी के बुलबुले की तरह थे, जो समय के साथ विलीन हो गए। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने अंसारी के निधन पर दुख जाहिर करते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद के सिलसिले में सबसे पुराने पैरोकार रहे अंसारी ने शुरू से लेकर अपनी आखिरी सांस तक बाबरी मस्जिद की जंग को एक जम्हूरी तरीके से लड़ा और जद्दोजहद की, इसके लिए पूरी कौम उन्हें हमेशा याद रखेगी। उन्होंने कहा कि अंसारी ने कई बार हिंदू पक्ष के साथ बैठकर बातचीत के जरिये हमेशा के लिए मसले का हल निकालने की कोशिश की, मगर अफसोस कि कामयाबी नहीं मिली लेकिन अयोध्या में आज भी मुस्लिम के साथ-साथ हिंदू भाई भी उन्हें इज्जत की नजरों से देखते हैं। श्री कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि अंसारी एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने हमेशा इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब की मजबूती के लिए काम किया। उनका जाना इस दौर में जब लोग धर्म के नाम पर नफरत फैला रहे हैं, निश्चित ही इस देश के लिए अफसोसजनक है। उन्होंने कहा, उनके जाने से मुसलमानों के साथ-साथ हिन्दुओं में भी घोर मातम का माहौल है।
हाशिम अंसारी के अलावा मोहम्मद फारूक, शहाबुद्दीन, मौलाना निसार और महमूद साहब इस मामले में वादी थे। अंसारी फैजाबाद दीवानी अदालत में यह मामला दायर कराने वाले पहले व्यक्ति थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साल 2010 में इस मुकदमे में एकमत से फैसला सुनाया था। अदालत ने अयोध्या में विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को आवंटित कर दिया था। बाकी का दो तिहाई हिस्सा वक्फ बोर्ड और रामलला का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष के बीच बराबर बांट दिया गया था। फैसले के तुरंत बाद अंसारी ने विवाद को दफन करने और नई शुरूआत करने की अपील की थी।