‘ दलित महिलाओं के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग नई बात नहीं ’
इससे पहले भाजपा की ही मधु मिश्रा, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह भी दलितों के लिए अपशब्द बोल चुके हैं। इस बारे में महाराष्ट्र कांग्रेस के युवा सचिव शहजाद पूनावाला कहते हैं ‘कुछ लोग आम तरीके से महिला विरोधी बात करते हैं लेकिन दयाशंकर ने मायावती जी के लिए जो भाषा बोली है वह उस मानसिकता की परिचायक है जो आरएसएस और मनुस्मृति की भाषा है। जो मानसिकता बताती है कि संविधान गलत है और मनुस्मृति सही है। जो मानसकिता वर्ण व्यवस्था पर जोर देती है। जो मानसिकता पूरी तरह से महिला और दलित विरोधी है। ’ पूनावाला के अनुसार दयाशंकर को पार्टी से निष्कासित करना बेहद मामूली कदम है। अगर भाजपा महिलाओं की इज्जत करती है तो वह अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी महिला को बनाए, संघ संचालक किसी दलित को बनाए और मनुस्मृति की प्रतियां जलाए। पूनावाला का यह भी कहना है कि मायावती के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग सिर्फ इसलिए किया गया है क्योंकि वह एक दलित महिला हैं।
बात किए जाने पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता मीम अफजल कहते हैं ‘सैकड़ों सालों से दलित गाय का चमड़ा निकालते आए हैं। जब भी किसी के घर में गाय बीमार हो जाती थी तो दलित को बुलाकर गाय की रस्सी उसे थमा दी जाती थी। इससे पहले कई जगहों पर कई मुसलमानों को झूठे गोकशी के मामलों में कत्ल कर दिया गया। देश में अल्पसंख्यक और दलित विरोधी जैसा माहौल पनप रहा है उसने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। एक ओर तो भाजपा नेता जो उत्तर प्रदेश में दलितों के घर जाकर खाना खा रहे थे, दयाशंकर की टिप्पणी ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है।’
सोशल मीडिया की बदौलत यह घटनाएं सामने आईं। कुछ महीने पहले पंजाब में दो दलितों के हाथ काट दिए गए थे। जिन्होंने काटे, वे सवर्ण जाति के लोग थे। राज्य सरकार इसे आपसी रंजिश का मामला बताती रही। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र के चेयरपर्सन प्रो. अनवर पाशा बताते हैं ‘यह महज मायावती के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं है बल्कि यह भाषा एक वर्ग की सोच बयां करती है। हरियाणा में कई दलितों के घर जला दिए गए, दादरी में अखलाक की हत्या से सभी वाकिफ हैं, झारखंड में दो मुसलमान युवकों को गाय की तस्करी के आरोप में मारकर उनके शव पेड़ से टांग दिए गए। मैं किसी अपराध का हिमायती नहीं बल्कि मैं कह रहा हूं कि अगर किसी ने अपराध किया है तो उसके लिए कानून है, कुछ गुंडों की फौज फैसला कैसे कर सकती है।’ पाशा का कहना है कि अगर सरकार ने इसे संजीदगी से नहीं लिया तो दबंग कमजोरों पर भारी पड़ेंगे। जेएनयू छात्र संघ राजनीति से जुड़े अल्लीमुल्लाह खान का कहना है कि सरकार को यह संदेश देना चाहिए कि ऐसी हरकत करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। नहीं तो अल्पसंख्यक समुदाय और दलितों पर अत्याचार आम बात हो जाएगी।
कुछ दिन पहले हरियाणा के रोहतक जिले में एक दलित महिला के साथ बलात्कार का मामला सामने आया था। इससे पहले भी हरियाणा में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के कई मामले सामने आए। हरियाणा के मिर्चपुर कांड से सभी वाकिफ हैं। एक पूरे के पूरे गांव के दलितों द्वारा सवर्ण जाति से तंग आकर इस्लाम अपना लेने की घटना भी सभी जानते हैं। देश के दूसरे राज्यों में भी दलित महिलाओं को नंगा घुमाने या पेशाब पिलाने की कई घटनाएं पढ़ने तो मिलती रहती हैं। सामाजिक दृष्टि से बात करें तो दलित विचारक डॉ. कौशल पंवर बताती हैं ‘यह सच है कि हमारे देश में दलित महिलाओं को ऐसा कहना नई बात नहीं लेकिन मायावती जैसी महिला जो चार दफा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं, जिन्होंने दलित राजनीति को दुनिया में पहचान दिलवाई कम से कम इस ओहदे पर पहुंचने वाली महिला को शायद पहली दफा ही ऐसा कहा गया है। आप सोच सकते हैं कि अगर मायावती को ऐसा बोला गया है तो गांव-देहात में दूसरी दलित महिलाओं को क्या-क्या बोला जाता होगा। दलित महिलाओं को देखने का यह मनुवादी नजरिया है।’ पंवर का कहना है कि पूरी दुनिया में बाबा साहेब के नाम का ढिंढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने नेता दयाशंकर की इस हरकत पर सवाल भी खड़ा नहीं कर रही है। उनके अनुसार गृहमंत्री राजनाथ सिंह न केवल सफाई दे रहे हैं बल्कि कितनी हल्की बात कर रहे हैं कि कांग्रेस के समय में भी ऐसा होता रहा है।