डीयू में किताब प्रतिबंधित करने पर आरएसएस से खफा इतिहासकार
इन इतिहासकारों ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा, साफ है कि आज हममें से कई अपने राष्ट्रीय नायकों भगत सिंह या सूर्य सेन या चंद्रशेखर आजाद को आतंकवादी कहना पसंद नहीं करेंगे। लेकिन अगर हम राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं तो हमें कम से कम अपने राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में थोड़ा जानना चाहिए और यह नहीं भूलना चाहिए कि एक वक्त था जब वास्तव में देश के लिए जान गंवा देने वाले लोग गर्व से इस ठप्पे को लगाना पसंद करते थे।
उन्होंने कहा, इसलिए हमें पुस्तकों में बदलाव की या उन पर पूरी तरह पाबंदी की मांग नहीं करनी चाहिए और इस तरह से दुनिया के सामने अपनी ही अनभिज्ञता को प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। आरएसएस पर निशाना साधते हुए इन इतिहासकारों ने कहा कि कुछ दिनों में ऐसा लगता है कि कुछ आधुनिक राष्ट्रवादियों की अपनी देशभक्ति को प्रदर्शित करने के लिए विभाजनकारी या गैर-जरूरी मुद्दों को उठाने की आदत हो गई है।
सफदर हाशमी मेमोरियल टस्ट द्वारा जारी बयान पर इतिहासकारों और शिक्षाविदों समेत 102 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। बयान में कहा गया है, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा पुस्तक के अनुवाद को वापस ले लेने और टीवी कार्यक्रमों और अदालतों में लेखकों के पीछे पड़ जाने की अब जो शुरुआत हो गई है, वह घृणित है और आरएसएस तथा उसके अनेक मोर्चों के ऐसे अभियानों का यह चरित्र भी है।
पुस्तक ‘इंडियाज स्टगल फॉर इंडिपेंडेंस’ दो दशक से दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल रही है। इसमें अध्याय-20 में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सूर्य सेन और अन्य को क्रांतिकारी आतंकवादी कहा गया है। पुस्तक के लेखक इतिहासकार बिपिन चंद्रा, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी, सुचेता महाजन और केएन पनिक्कर शामिल हैं। पुस्तक में चटगांव आंदोलन को भी आतंकवादी कृत्य कहा गया है और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सैंडर्स को मारना आतंकवाद का कृत्य बताया गया है।
पुस्तक का हिंदी संस्करण भारत का स्वतंत्रता संघर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी माध्यम क्रियान्वयन निदेशालय ने 1990 में प्रकाशित किया था। इस मुद्दे पर भगत सिंह के रिश्तेदारों के विरोध और संसद में हंगामे के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने डीयू से इस विषय पर विचार करने को कहा था। दिल्ली विश्वविद्यालय ने पुस्तक के हिंदी संस्करण की बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध का फैसला किया जिसका प्रकाशन उसने ही किया है। हालांकि विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि उसका अंग्रेजी संस्करण पर कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि उसका प्रकाशन विश्वविद्यालय ने नहीं किया है। मूल पुस्तक के प्रकाशक पेंगुइन इंडिया ने पहले ही कहा है कि वे संशोधित संस्करण के लिए लेखक के साथ काम कर रहे हैं।