ऐतिहासिक फैसला: 24 हफ्ते की गर्भवती महिला को कोर्ट ने दी गर्भपात की इजाजत
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा ने अपना फैसला मुंबई के एक अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद दिया। रिपोर्ट में बोर्ड ने कहा कि गर्भावस्था जारी रहने से मां का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाएगा। मुंबई स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल कॉलेज एवं अस्पताल के सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि भ्रूण में कई गंभीर खराबी है। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की मदद लेने के बाद पीठ ने अपना आदेश पारित किया। रोहतगी ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में एक प्रावधान है जो गर्भ से मां की जिंदगी को खतरा होने पर 24 हफ्तों के बाद भी गर्भपात कराने की इजाजत देता है। इसके बाद पीठ ने कहा, हम याचिकाकर्ता को छूट देते हैं और यदि वह गर्भपात कराना चाहती है तो उसे इसकी अनुमति दी जाती है। पीठ ने यह भी कहा कि वह मेडिकल बोर्ड के सुझाव से संतुष्ट है, जिसने राय दी है कि गर्भपात कराया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने 22 जुलाई को मेडिकल बोर्ड को महिला की मेडिकल जांच कर रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने का निर्देश दिया था। इससे पहले न्यायालय ने कथित बलात्कार पीड़िता की अर्जी पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने गर्भपात कानून के उन प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी थी जो मां और भ्रूण की जान को खतरा होने के बाद भी 20 हफ्ते से ज्यादा पुराना गर्भ खत्म करने की इजाजत नहीं देते। अपनी याचिका में महिला ने आरोप लगाया है कि शादी का झांसा देकर उसके पूर्व मंगेतर ने उससे बलात्कार किया, जिससे वह गर्भवती हो गई। महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3-2-बी को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की थी, क्योंकि यह 20 हफ्ते से ज्यादा पुराने भ्रूण के गर्भपात पर पाबंदी लगाती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि यह सीमा तय करना अतार्किक, मनमाना, कठोर, भेदभावपूर्ण और जीवन एवं समानता के अधिकारों का उल्लंघन है।