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25 January 2019

इसरो की एक और उपलब्धि, सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ सैटेलाइट कलाम-सैट और माइक्रौसैट-आर

ANI

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने देर रात एक और इतिहास रच दिया। इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से एक इमेजिंग सैटेलाइट (उपग्रह) माइक्रोसैट-आर और इसके साथ ही छात्रों द्वारा बनाए गए एक प्रायोगिक अंतरिक्ष उपकरण 'कलामसैट' (वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। धुव्रीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी44) के माध्यम से यह सफलता हासिल की गई। माइक्रोसैट-आर भारतीय सेना का उपग्रह है। इसके माध्यम से सेना को निगरानी रखने में मदद मिलेगी।

इसरो की इस बड़ी कामयाबी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''PSLV के एक और सफल प्रक्षेपण के लिए अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई। भारत के प्रतिभाशाली छात्रों द्वारा निर्मित कलामसैट ने कक्षा में प्रवेश कर ‌लिया ‌है।

इसरो के मुताबिक, पीएसएलवी-सी44 ने माइक्रोसैट-आर को सफलतापूवर्क उसकी कक्षा में स्थापित किया। इसरो के 2019 के पहले मिशन में 28 घंटे की उल्टी गिनती के बाद रात 11 बजकर 37 मिनट पर पीएसएलवी-सी44 ने उड़ान भरी। यह पीएसएलवी की 46वीं उड़ान है। 

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इसरो ने बताया कि पीएसएलवी-सी44 740 किलोग्राम वजनी माइक्रोसैट-आर को प्रक्षेपण के करीब 14 मिनट बाद 274 किलोमीटर ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित कर दिया। इसके बाद यह 10 सेंटीमीटर के आकार और 1.26 किलोग्राम वजन वाले कलामसैट को और ऊपरी कक्षा में स्थापित करेगा।

इसरो के मुताबिक पीएसएलवी-सी44, पीएसएलवी-डीएल का पहला मिशन है और यह पीएसएलवी का नया संस्करण है। वाहन का चौथा चरण (पीएस4) उच्चतर सर्कुलर कक्ष में प्रवेश करेगा।

जानें इसकी खासियत

इसरो ने पहली बार इस लॉन्च‍ के लिए पीएसएलवी - डीएल (PSLV - DL) का इस्तेमाल किया। अमूमन अंतरिक्ष में इन लॉन्च और पुराने उपग्रहों के साथ ही बचे-खुचे रॉकेट के टुकड़े "स्पेस ट्रैफिक" यानी अंतरिक्ष में कबाड़ बनकर धरती के चारों ओर चक्कर लगाते है। इस मिशन की खास बात यह भी रही कि रॉकेट के चौथे भाग को दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सके, इसकी योजना बनाई गई।

पीएसएलवी रॉकेट चार स्टेज का होता है जिसमें तीन हिस्से लॉन्च के बाद अलग होकर धरती पर आ जाते हैं। वहीं, चौथा हिस्सा जिसमें लोक्वड प्रोपोलेंट होता है उसका इस्तेमाल कई बार इंजन को कई बार बंद और शुरू करने में किया जाता है ताकि उपग्रह को ठीक से उसकी कक्षा में स्थापित किया जा सके। लेकिन इस बार पीएसएलवी को इसरो ने खास ताकत दी है, जिससे यह आखिरी स्टेज साल भर तक चल सकें।

कलामसैट का वजन 1.26 किलोग्राम है जो कि एक कुर्सी के वजन से भी कम है। जानकारी के मुताबिक इस उपग्रह को महज 6 दिनों में तैयार किया गया। इस उपग्रह को चेन्नई स्थित स्पेस एजुकेशन फर्म "स्पेस किड्स इंडिया" की स्टार्टअप कंपनी ने बनाया है। अब तक ऐसे 9 उपग्रहों को स्पेस में जगह मिल चुकी है। इस उपग्रह को हैम रेडियो ट्रांसमिशन के कम्युनिकेशन सैटेलाइट के तौर पर उपयोग में लिया जाएगा। 

माइक्रोसैट का इस्तेमाल सेना के लिए होगा। यह सैटेलाइट हाई रिजॉल्यूशन की तस्वीरें लेने में सक्षम है, जिससे सेना को इससे काफी मदद मिलेगी। माइक्रो सैट का कुल वजन 740 किलोग्राम है। मिलिट्री के लिए बनाए गए इस उपग्रह को डीआरडीओ की मदद से तैयार की गया। जो कि अंतरिक्ष में सेना की तीसरी आंख बन कर सेना की मदद करेगा।

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OUTLOOK 25 January, 2019
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