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06 September 2019

चंद्रयान-2 की लैंडिंग पर स्थिति साफ नहीं, लैंडर विक्रम से इसरो का नहीं हो पा रहा है संपर्क

करीब 48 दिनों बाद जिस घड़ी का इंतजार था, उस लम्हे को इतिहास बनने में ऐन वक्त पर अड़चन आ गई है। लैंडिंग के ठीक पहले लैंडर विक्रम का इसरो से संपर्क टूट गया है।  समाचार लिखे जाने तक इसरो से विक्रम का संपर्क नहीं हो पाया है। इस बीच इसरो चीफ के.सिवन ने कहा कि हमारा विक्रम से 2 किलोमीटर पहले संपर्क टूट गया है। इसरो डाटा का विश्लेषण कर रहा है। इसरो सेंटर में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ाते हुआ कहा कि निराश होने की जरूरत नहीं है। पूरा देश आपके साथ खड़ा है। आपने बहुत अच्छा काम किया है। 

1.52 बजे लैंडिंग की थी योजना

 चांद की सतह पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग 1.52 मिनट पर लैंडिंग होनी थी। लेकिन ऐन वक्त पर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया। इस झटके से इसरो सेंटर मौजूद वैज्ञानिकों के चेहरे पर निराशा का  मौहाल साफ तौर पर दिख रहा था। 

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 बच्चे थे मौजूद

ऑनलाइन क्विज प्रतियोगिता के जरिए इसरो द्वारा देशभर से चुने गए दर्जनों छात्र-छात्राएं, बड़ी संख्या में मीडिया कर्मी और अन्य इसरो टेलीमेंट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) के जरिए यहां इस मौके पर मौजूद थे।

क्या है लैंडर विक्रमऔर रोवर प्रज्ञानपर

भारत जब चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए सबकी नजरें लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ पर टिकी थी। 1,471 किलोग्राम वजनी लैंडर ‘विक्रम’ का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसे चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के लिए तैयार किया गया। यह एक चंद्र दिवस के लिए काम करेगा। एक चंद्र दिवस पृथ्वी के लगभग 14 दिनों के बराबर होता है।

रोवर 27 किलोग्राम वजनी छह पहिया रोबोटिक वाहन है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस है। इसका नाम ‘प्रज्ञान’ है जिसका मतलब ‘बुद्धिमत्ता’ से है। यह ‘लैंडिंग’ स्थल से 500 मीटर तक की दूरी तय कर सकता है और यह अपने परिचालन के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करेगा। यह लैंडर को जानकारी भेजेगा और लैंडर बेंगलुरु के पास ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क को जानकारी प्रसारित करेगा।

लैंडर में लगे हैं तीन वैज्ञानिक उपकरण

इसरो के मुताबिक, लैंडर में तीन वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देंगे, जबकि रोवर के साथ दो वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चांद की सतह से संबंधित समझ बढ़ाएंगे। इसरो ने कहा है कि ‘चंद्रयान-2’ अपने लैंडर को 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों- ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने की कोशिश करेगा। लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी के पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा।

‘चंद्रयान-2’ ने धरती की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा 14 अगस्त को शुरू की थी। इसके बाद 20 अगस्त को यह चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था। इसरो ने बताया कि यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से ‘ऑर्बिटर’ और ‘लैंडर’ की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। इस काम में ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद ली जा रही है।

‘चंद्रयान-2’ के ‘ऑर्बिटर’ में आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करेंगे और पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह के बाह्य परिमंडल का अध्ययन करेंगे। ‘लैंडर’ के साथ तीन उपकरण हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। वहीं, ‘रोवर’ के साथ दो उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह के बारे में जानकारी जुटाएंगे।

इस योजना पर 978 करोड़ रुपये की आई है लागत

इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क-।।। एम 1 के जरिए 3,840 किलोग्राम वजनी ‘चंद्रयान-2’ को प्रक्षेपित किया था। इस योजना पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है।

एजेंसी इनपुट

 

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TAGS: ISRO chief, soft landing, Vikram, Chandrayaan-2
OUTLOOK 06 September, 2019
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