इसरो को अगले पांच साल में 100 और मिशन पूरे करने का भरोसा: इसरो अध्यक्ष
जनवरी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को अपने 100 मिशन पूरे करने का लक्ष्य हासिल करने में भले ही 46 वर्ष लग गए हों, लेकिन देश की अंतरिक्ष एजेंसी को अब अगले पांच साल में ही अपना अगला शतक पूरा कर लेने का भरोसा है।
इसरो ने बुधवार को अपने ऐतिहासिक 100वें मिशन के तहत एक उन्नत नेविगेशन उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। बुधवार तड़के किया गया यह प्रक्षेपण इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन है। उन्होंने 13 जनवरी को पदभार संभाला था। इसके अलावा यह 2025 में इसरो का पहला मिशन है।
नारायणन ने विश्वास व्यक्त किया कि अंतरिक्ष एजेंसी अगले पांच साल में 200 मिशन का आंकड़ा पार कर सकती है। यह पूछे जाने पर कि क्या अगले पांच वर्ष में 100 और प्रक्षेपण करना संभव है, नारायणन ने ‘हां’ में उत्तर दिया। उन्होंने विस्तार से बताए बिना कहा, ‘‘आप सही सवाल पूछ रहे हैं। यह संभव है।’’
इसरो ने इतिहास रचते हुए रॉकेट के पुर्जों को साइकिल और बैलगाड़ी पर ले जाने के युग से लेकर विश्व की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक बनने तक की यात्रा तय की है। अब इसरो विदेशी विक्रेताओं के लिए वाणिज्यिक प्रक्षेपण भी कर रहा है।
इसरो उन एजेंसी की विशिष्ट लीग का हिस्सा है जिनके चंद्र और सूर्य मिशन सफल रहे हैं। इसरो ने अब तक प्रक्षेपण यानों की छह पीढ़ियां विकसित की हैं, जिनमें से पहली पीढ़ी ने 1979 में प्रोफेसर सतीश धवन के मार्गदर्शन में आकार लिया और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम परियोजना निदेशक थे। यह एसएलवी-3 ई1/रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड था।
नारायणन ने कहा कि 46 साल बाद इसरो ने 100वें मिशन का लक्ष्य हासिल करने की यात्रा के दौरान 548 उपग्रहों को कक्षाओं में पहुंचाया। उन्होंने 100वें मिशन की सफलता के बाद पत्रकारों से भविष्य के मिशन पर भी बात की।
इसरो के अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ संयुक्त प्रयास- निसार (एनआईएसएआर) मिशन के तहत कुछ महीनों में प्रक्षेपण करने की संभावना है। इस समय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं में एनजीएलवी भी शामिल है।
अंतरिक्ष विभाग के सचिव नारायणन ने कहा कि नासा-इसरो संयुक्त सहयोग से ‘सिंथेटिक अपर्चर रडार उपग्रह मिशन’ (निसार) को अगले कुछ महीनों में प्रक्षेपित किये जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘यह नासा और इसरो का संयुक्त सहयोगात्मक अभियान है। इसमें दो रडार हैं - एल बैंड रडार (इसरो द्वारा विकसित) और एस बैंड रडार, जिसे नासा की जेट प्रणोदन प्रयोगशाला ने विकसित किया है। संपूर्ण प्रणाली को यू आर राव उपग्रह केंद्र (बेंगलुरू में) में एकीकृत किया गया और इसकी जांच की गई। इसे यू आर राव उपग्रह केंद्र से श्रीहरिकोटा ले जाने की तैयारी कर ली गई है।’’ यह पूछे जाने पर कि भारत को अपना स्वयं का उपग्रह समूह बनाने के लिए कितने और नेविगेशन उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की आवश्यकता है, उन्होंने कहा, ‘‘फिलहाल, चार उपग्रह हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘(जीएसएलवी-एफ15 के माध्यम से) आज के प्रक्षेपण के जरिए पांचवां उपग्रह भेजा गया। हमें तीन और उपग्रहों के लिए मंजूरी मिल गई है। हम अगले पांच से छह महीने में एक उपग्रह प्रक्षेपित करने की योजना बना रहे हैं।’’
तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम से प्रस्तावित रॉकेट प्रक्षेपण के बारे में अध्यक्ष ने कहा, ‘‘अभी हम सुविधाओं का निर्माण कर रहे हैं और निर्माण कार्य पूरा होने के दो साल के भीतर वहां नियमित रूप से प्रक्षेपण किए जाएंगे।’’
नारायणन ने बताया कि इसरो को अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) के निर्माण के लिए भी केंद्र से मंजूरी मिल गई है, जो 20 टन वजन के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में या 10 टन वजन के पेलोड को भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा में ले जा सकता है।
उन्होंने कहा कि उद्योग जगत में इस तरह के यान की भारी मांग है। ऐसे प्रक्षेपण वाहनों का इस्तेमाल हाल में घोषित तीसरे लॉन्च पैड से किया जाएगा, जिसे 4,000 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया जाएगा।