आरक्षण नीति की समीक्षा अब वक्त की मांगः संघ
संघ प्रमुख ने कहा कि लोकतंत्र में हालांकि ‘साझा हितों’ वाले समूह गठित होते हैं, लेकिन एक समूह की इच्छा को दूसरों के हितों की कीमत पर पूरा नहीं करना चाहिए। संघ के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ और ‘पांचजन्य’ को दिए एक इंटरव्यू में भागवत ने कहा, ‘साझा हितों वाले समूह गठित होते हैं क्योंकि लोकतंत्र में हमारी कुछ खास इच्छाएं होती हैं। साथ ही हमें ध्यान रखना चाहिए कि साझा समूहों के जरिये हम दूसरों के हितों की कीमत पर अपनी इच्छाएं पूरी करने का प्रयास न करें। हमें सबके कल्याण के लिए एकीकृत पहल करनी चाहिए। इस संवेदनशीलता को महसूस करना होगा कि मेरा हित व्यापक पैमाने पर राष्ट्रहित में निहित है। सरकार को भी इन मुद्दों पर संवेदनशील होना चाहिए कि उनके लिए कोई आंदोलन न करना पड़े।’
भागवत ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सिविल सोसायटी से जुड़े प्रतिनिधियों को मिलाकर समिति गठित करने की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘हम समझते हैं कि संपूर्ण राष्ट्र के हितों को वास्तविक ख्याल रखने वाले और सामाजिक समानता के लिए प्रतिबद्ध लोगों की समिति में समाज के कुछ प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए जो ईमानदारी से तय कर सकेंगे कि किसे आरक्षण की जरूरत है और कितने समय तक के लिए। स्वायत्त आयोग जैसी गैर-राजनीतिक समिति को कार्यान्वयन का अधिकार होना चाहिए जबकि राजनीतिक प्राधिकारों को ईमानदारी और निष्ठा से उन पर निगरानी रखना चाहिए।’
उन्होंने दलील दी कि सामाजिक पिछड़ेपन पर आधारित आरक्षण नीति अब उस तरीके से लागू नहीं होनी चाहिए जैसाकि भारतीय संविधान निर्माताओं ने पहले सोचकर तय किया था। उन्होंने सवाल किया कि संविधान निर्माताओं के नजरिये से क्या अब कोटा निर्धारित किया जा सकता है क्योंकि आरक्षण की स्थिति बदल चुकी है।