न्यायिक नैतिकता के साथ समझौता नहीं होना चाहिए: प्रधान न्यायाधीश
प्रधान न्यायाधीश ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा, हमें अपनी सत्यनिष्ठा के संबंध में लोगों की धारणा को लेकर आत्मचिंतन करना चाहिए। यह देखना अफसोसजनक है कि किसी न किसी स्तर पर कभी-कभी होने वाली असामानय घटनाओं से पूरी न्याय प्रणाली की छवि खराब होती है। उन्होंने कहा, मैं समझता हूं कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने काफी उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं नहीं हों, यह सुनिश्चित करने के लिहाज से और बहुत कुछ करने की जरूरत है। मैं सिर्फ उम्मीद करता हूं कि न्यायाधीश सभी स्तरों पर अतिरिक्त सतर्कता बरतेंगे ताकि संदेह के लिए कोई गुंजाइश नहीं रहे या ऐसा कुछ नहीं हो जो न्यायिक नैतिकता और पेशेवर ईमानदारी के अनुरूप न हो।
इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति बी डी अहमद के अलावा उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीश भी मौजूद थे। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धन की सीमा न्याय तक पहुंच को हकीकत बनाने की राह में बाधक नहीं हो सकती। यह पूरी तरह से हमारे संवैधानिक दर्शन के अनुरूप है कि न्याय एक वास्तविकता होनी चाहिए और अगर लोगों को अपने मामलों में फैसले के लिए वर्षों तक प्रतीक्षारत रहना पड़े तो यह वास्तविकता नहीं हो सकती। ठाकुर के संबोधन के पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने बुनियादी ढांचे में सुधार तथा और अधिक न्यायाधीशों की भर्ती के मामले में अपनी सरकार की ओर से समर्थन का आश्वासन दिया।