जस्टिस एके सीकरी ने ठुकराया सीएसएटी में नियुक्ति का मोदी सरकार का प्रस्ताव
जस्टिस एके सीकरी ने उस सरकारी प्रस्ताव के लिये दी गई अपनी सहमति रविवार को वापस ले ली जिसके तहत उन्हें लंदन स्थित राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (सीएसएटी) में अध्यक्ष/सदस्य के तौर पर नामित किया जाना था।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि प्रधान न्यायाधीश के बाद देश के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश सीकरी ने रविवार शाम को लिखकर सहमति वापस ले ली। सूत्रों ने कहा, “सरकार ने इस जिम्मेदारी के लिये पिछले महीने उनसे संपर्क किया था। उन्होंने अपनी सहमति दी थी। इस पद पर रहते हुए प्रतिवर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और यह बिना मेहनताना वाला पद था।”
न्यायमूर्ति सीकरी के एक करीबी सूत्र ने कहा कि उन्होंने (सीकरी ने) अपनी सहमति वापस ले ली है। उन्होंने कोई कारण नहीं बताया है। वह महज विवादों से दूर रहना चाहते हैं।
आलोक वर्मा मामले से जोड़कर देखना गलत
सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रमंडल न्यायाधिकरण के पद के लिए सीकरी की सहमति मौखिक रूप से ली गई थी। उन्होंने कहा कि आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटाने का फैसला लेने वाली समिति में न्यायमूर्ति सीकरी की भागीदारी को सीएसएटी में उनके काम से जोड़ने को लेकर लग रहे आक्षेप गलत हैं। सूत्रों ने कहा कि क्योंकि यह सहमति दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में ली गई थी, इसका सीबीआई मामले से कोई संबंध नहीं था जिसके लिये वह जनवरी 2019 में प्रधान न्यायाधीश की तरफ से नामित किये गए। उन्होंने कहा कि दोनों को जोड़ते हुए एक पूरी तरह से अन्यायपूर्ण विवाद खड़ा किया गया। सूत्रों ने कहा, 'असल तथ्य यह है कि दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में सीएसएटी में पद के लिये न्यायमूर्ति की मौखिक स्वीकृति ली गई थी।'
सीकरी का मत वर्मा को हटाने में अहम साबित हुआ
न्यायमूर्ति सीकरी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ उस तीन सदस्यीय समिति में शामिल थे जिसने वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने का फैसला किया था। सीकरी का मत वर्मा को पद से हटाने के लिये अहम साबित हुआ क्योंकि खड़गे इस फैसले का विरोध कर रहे थे जबकि सरकार इसके लिए जोर दे रही थी।
यह था सरकार का प्रस्ताव
सीएसएटी के मुद्दे पर सूत्रों ने कहा, ''यह कोई नियमित आधार पर जिम्मेदारी नहीं है। इसके लिये कोई मासिक पारिश्रमिक भी नहीं है। इस पद पर रहते हुए प्रतिवर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और लंदन या कहीं और रहने का सवाल ही नहीं था। सरकार ने इस जिम्मेदारी के लिये पिछले महीने उनसे संपर्क किया था। उन्होंने अपनी सहमति दी थी। इस पद पर रहते हुए प्रतिवर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और यह बिना मेहनताना वाला पद था।' सीकरी ने सरकार में सक्षम प्राधिकार को पत्र लिखकर अपनी सहमति वापस ले ली है।
सीकरी के नामांकन पर केन्द्र को देना होगा जवाब: कांग्रेस
सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने कहा कि सीएसएटी में सीकरी के नामांकन पर केंद्र को काफी बातों का जवाब देना होगा। पटेल ने एक मीडिया रिपोर्ट को टैग करते हुए कहा था कि सरकार को कई बातों का जवाब देने की जरूरत है।' एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, 'जब इंसाफ के तराजू से छेड़छाड़ की जाती है तब अराजकता का राज हो जाता है।'