सबरीमाला केस में बेंच की इकलौती महिला जज इंदु बहुमत से असहमत, जानिए, उन्होंने क्या कहा
केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को खत्म करते हुए हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की मंजूरी दे दी है।
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच में चार जजों ने अलग-अलग फैसला पढ़ा। सभी के फैसले का निष्कर्ष एक ही था, इसलिए इसे बहुमत का फैसला कहा जा सकता है। लेकिन बेंच की इकलौती महिला जज इंदु बहुमत के फैसले से असहमत थी। उन्होंने कहा है कि धर्म का पालन किस तरह से हो, ये उसके अनुयायियों पर छोड़ा जाए। सुप्रीम कोर्ट ये तय नहीं कर सकता।
जज इंदु मल्होत्रा ने क्या कहा?
इंदु मल्होत्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘’इस फैसले का व्यापक असर होगा। धर्म का पालन किस तरह से हो, ये उसके अनुयायियों पर छोड़ा जाए। कोर्ट तय नहीं कर सकता। लिहाज़ा मेरी नजर में ये मांग विचारयोग्य नहीं है, क्योंकि मौलिक अधिकारों के साथ ही धार्मिक मान्यताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता।’’
इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाये रखने के लिये गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। जज इंदु मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं।
जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है। इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा।
क्या था मामला?
केरल के सबरीमाला मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी माना जाता है। सबरीमाला की यात्रा से पहले 41 दिन तक कठोर व्रत का नियम है। मासिक धर्म के चलते युवा महिलाएं लगातार 41 दिन का व्रत नहीं कर सकती हैं। इसलिए, 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में आने की अनुमति नहीं थी।