Advertisement
10 January 2019

जस्टिस ललित को अयोध्या विवाद पर सुनवाई से होना पड़ा अलग, 24 साल पहले का ये मामला बना कारण

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। लेकिन इस दौरान पांच सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस यूयू ललित के सुनवाई से अलग होने के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी तक मामले को टाल दिया है। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जस्टिस यूयू ललित पर सवाल खड़े किए।  सवाल उठने के बाद उन्होंने खुद को इस सुनवाई से अलग कर लिया। अब पांच जजों की पीठ में जस्टिस यूयू ललित शामिल नहीं होंगे।

दरअसल, सुनवाई के दौरान 24 साल पहले हुए एक मामले का जिक्र आया। और जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई के लिए गठित पांच सदस्यीय बेंच से खुद को अलग कर लिया।

1994 में कल्याण सिंह की ओर से कोर्ट में हुए थे पेश

Advertisement

सुनवाई शुरू होते ही चर्चा के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि बेंच में शामिल जस्टिस यूयू ललित 1994 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ओर से कोर्ट में पेश हुए थे। इस पर वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जिस मामले में जस्टिस ललित पेश हुए थे, वह इस मामले से बिल्कुल अलग था। वह एक आपराधिक मामला था। इस पर धवन ने कहा कि वह यह मांग नहीं कर रहे हैं कि जस्टिस ललित बेंच से अलग हो जाएं, वह बस जानकारी के लिए यह बता रहे थे। इसके बाद, खुद जस्टिस ललित ने केस की सुनवाई से हटने की इच्छा जताई।

जब मस्जिद गिराई गई थी तब यूपी के मुख्यमंत्री थे कल्याण सिंह

बता दें कि जब 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे। कल्याण सिंह उन तेरह लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने के 'षड्यंत्र' में शामिल होने का आरोप है। चार्जशीट के अनुसार कल्याण सिंह ने छह दिसंबर के बाद अपने बयानों में स्वीकार किया कि गोली न चलाने का आदेश उन्होंने ही जारी किया था और उसी वजह से प्रशासन का कोई अधिकारी दोषी नही माना जाएगा। 1994 में जस्टिस यूयू ललित बतौर वकील उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ओर से कोर्ट में पेश हुए थे।

इस मामले में भी खुद को किया था अलग

यह पहला मामला मामला नहीं है जब जस्टिस ललित ने खुद को किसी सुनवाई से अलग किया हो। इससे पहले वे 2015 में मालेगांव विस्फोट मामले की सुनवाई से भी अलग हुए थे। जस्टिस यूयू ललित ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में अभियोजक को हटाए जाने के खिलाफ दायर आवेदन पर यह कहते हुए खुद को सुनवाई से अलग किया था कि उन्होंने मामले में कुछ आरोपियों की पैरवी की थी।

रह चुके हैं बड़े वकील

सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से पहले जस्टिस यूयू ललित एक नामी-गिरामी वकील रह चुके हैं। 13 अगस्त 2014 को जस्टिस ललित को तत्कालीन चीफ जस्टिस आर एम लोढा की अगुवाई वाले कोलेजियम ऑफ जज ने नामित किया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर पर नियुक्त हुए। साल 1957 में पैदा हुए उदय उमेश ललित (यू यू ललित) सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस बनने से पहले देश की शीर्ष अदालत में वरिष्ठ वकील हुआ करते थे। महाराष्ट्र के रहने वाले जस्टिस ललित जून 1983 में बार से जुड़े थे। वह सुप्रीम कोर्ट में साल 1986 से काम कर रहे हैं। पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली जे. सोराबजी के साथ साल 1986-1992 तक वह काम कर चुके हैं।

कई बड़े मामलों की कर चुके हैं पैरवी

जस्टिस ललित बतौर वकील कई हाई प्रोफाइल मुकदमों की पैरवी कर चुके हैं। इनमें सलमान खान से जुड़े ब्लैक बक शिकार मामला, तत्कालीन सेना प्रमुख वी के सिंह का जन्मतिथि वाला मामला भी शामिल है। उन्होंने भ्रष्टाचार मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पैरवी की थी। इसके अलावा उन्होंने सदोष मानव हत्या मामले में नवजोत सिंह सिद्दू की और सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में अमित शाह की पैरवी की थी। 

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Justice UU Lalit, recused himself from hearing, Ayodhya case, This matter of 24 years, become the reason, Uttar Pradesh chief minister Kalyan Singh, 1994
OUTLOOK 10 January, 2019
Advertisement