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14 January 2019

मोदी सरकार का ऑफर ठुकराने वाले जस्टिस सीकरी इन फैसलों के लिए रहे हैं मशहूर

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस एके सीकरी का नाम इन दिनों सुर्खियों में है। जस्टिस एके सीकरी ने 8 जनवरी को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने को लेकर उनके खिलाफ वोट किया था। वहीं अब विवादों में घिरने के बाद उन्होंने मोदी सरकार के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, जिसमें उन्हें लंदन स्थित सीएसएटी में अध्यक्ष/सदस्य के तौर पर नामित किया जाना था। इससे पहले भी जस्टिस सीकरी कई बड़े फैसलों को लेकर चर्चा में रहे हैं।

ताजा मामला जस्टिस सीकरी की ओर से सरकार के प्रस्ताव को ठुकराने का है। उन्हें उच्चस्तरीय चयन समिति में शामिल होने के बाद सीएसएटी की पेशकश मिली थी। जस्टिस सीकरी सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं और वह 6 मार्च को रिटायर होने के बाद सीएसएटी को ज्वाइन करने वाले थे। सूत्रों के मुताबिक, 'सरकार ने इस जिम्मेदारी के लिए पिछले महीने उनसे संपर्क किया था। उन्होंने अपनी सहमति दी थी। इस पद पर रहते हुए प्रति वर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और यह बिना मेहनताना वाला पद था। प्रतिष्ठित सीएसएटी में सदस्यों को 4 साल के लिए नियुक्त किया जाता है, जिसे एक बार बढ़ाया जा सकता है। हालांकि न्यायमूर्ति सीकरी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने (सीकरी ने) अपनी सहमति वापस ले ली है। वह महज विवादों से दूर रहना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटाने का फैसला लेने वाली समिति में न्यायमूर्ति सीकरी की भागीदारी को सीएसएटी में उनके काम से जोड़ने को लेकर लग रहे आक्षेप गलत हैं।

आलोक वर्मा को हटाने में निर्णायक भूमिका

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जस्टिस एके सीकरी ने 8 जनवरी को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने को लेकर उनके खिलाफ वोट किया था। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी की उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति ने 2-1 के बहुमत से आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाए जाने का फैसला लिया था। प्रधानमंत्री मोदी और जस्टिस एके सीकरी ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाए जाने के पक्ष में फैसला लिया जबकि खड़गे ने इसका विरोध किया था। जस्टिस एके सीकरी का यह वोट आलोक वर्मा को हटाए जाने को लेकर निर्णायक साबित हुआ।

सीकरी के एक फैसले से पलट गया था येदियुरप्पा का पासा

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान पूरे देश ने हाई वोल्टेज ड्रामा देखा। इस दौरान बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल ने भाजपा को 15 दिनों का समय दिया था। राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस और जेडीएस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए.के. सीकरी की बेंच ने जो फैसला सुनाया, वो बीजेपी के लिए भारी पड़ गया। इस बेंच में जस्टिस एके सीकरी के अलावा जस्टिस शरद अरविंद बोडबे और जस्टिस अशोक भूषण भी शामिल थे। लेकिन अहम रोल रहा जस्टिस सीकरी का। जिनके फैसले की वजह से बीजेपी को बहुमत साबित करने के लिए सिर्फ दो दिन का ही समय मिल पाया। अगर जस्टिस सीकरी ने राज्यपाल की समयावधि को मंजूरी दे दी होती तो शायद येदियुरप्पा सरकार को बहुमत साबित करने के लिए बेहतर मौका मिलता।

पटाखे जलाने से लेकर लिव इन रिलेशन पर दिया था फैसला

7 मार्च, 1954 में जन्मे जस्टिस अरुण कुमार सीकरी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने 1999 में दिल्ली हाई कोर्ट में जज का पद ग्रहण किया। इसके बाद 10 अक्टूबर, 2011 को वह दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने। फिर 2012 में वह पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने अपना कार्यकाल 12 अप्रैल, 2013 से शुरू किया।

जस्टिस सीकरी के महत्वपूर्ण फैसलों की बात करें तो उन्होंने दिल्ली में दिवाली पर पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध लगाया था। इसके साथ ही जस्टिस सीकरी ने लिव इन रिलेशन पर भी अहम फैसला दिया था।

 

 

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OUTLOOK 14 January, 2019
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