तीन तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार का किया समर्थन, अब राज्यपाल बने आरिफ
तीन तलाक के खिलाफ लगातार मुखर रहे आरिफ मोहम्मद खान को केरल का राज्यपाल बनाया गया है। कभी कांग्रेस में रहे आरिफ मोहम्मद खान लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूर थे। हालांकि पिछले कुछ समय से वे मोदी सरकार की नीतियों की तारीफ कर रहे थे। उन्होंने केंद्र सरकार के तीन तलाक खत्म करने और अनुच्छेद 370 हटाने पर मोदी सरकार के फैसलों की प्रशंसा की थी। हाल ही में पीएम मोदी ने तीन तलाक के मामले पर उनके एक बयान का हवाला भी दिया था।
राज्यपाल नियुक्त होने के बाद आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, ‘‘मेरे लिए यह सेवा करने का एक मौका है। साथ ही देश के एक ऐसे हिस्से को जानने का शानदार अवसर है, जो देश की सीमा से लगा है। विविधताओं वाले इस देश में मेरा जन्म होना सौभाग्य है। इस देश को देवभूमि कहा जाता है।’’
बता दें कि साल 1986 में शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद द्वारा कानून बनाकर पलटे जाने के विरोध में उन्होंने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
कौन हैं आरिफ मोहम्मद खान
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने ऊर्जा मंत्रालय से लेकर नागरिक विमानन तक कई मंत्रालय का प्रभार संभाला। उन्होंने जामिया मिल्लिया, दिल्ली, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और शिया कॉलेज, लखनऊ यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की।
जब 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने शाह बानो केस में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा तो उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस से दो बार, जनता दल और बसपा से एक-एक बार लोकसभा का सदस्य रह चुके आरिफ मोहम्मद खान ने वर्ष 2004 भाजपा में शामिल हुए थे। हालांकि साल 2007 में भाजपा छोड़ने के साथ ही उन्होंने संसदीय राजनीति से दूरी बना ली थी। उन्होंने वंदे मातरम् का उर्दू में अनुवाद भी किया था।
भाजपा में भी रह चुके हैं आरिफ
महज 26 वर्ष की उम्र में विधायक के तौर पर संसदीय राजनीति की शुरुआत साल 1977 से की। बाद में कांग्रेस में शामिल हुए और 1980 में कानपुर और 1984 में बहराइच से सांसद चुने गए। इसी दौरान शाहबानो केस में शीर्ष अदालत का फैसला पलटने से नाराज खान ने कांग्रेस और राजीव मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। साल 1989 में जनता दल से तो साल 1998 में बसपा से सांसद बने। साल 2004 में भाजपा में शामिल हुए मगर कैसरगंज से लोकसभा चुनाव हारने के बाद साल 2007 में भाजपा छोड़ी।