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18 September 2019

फारूक अब्दुल्ला के पिता की सरकार में मिली थी पीएसए को मंजूरी, जानें इस अधिनियम के बारे में

जन सुरक्षा अधिनियम या पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) इन दिनों चर्चा में है। दरअसल, जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को सोमवार को इस अधिनियम के तहत हिरासत में ले लिया गया। जिस स्थान पर अब्दुल्ला को रखा जाएगा उसे एक आदेश के जरिए अस्थायी जेल घोषित कर दिया गया है। बता दें कि पीएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

अब्दुल्ला को हिरासत में लिए जाने के बाद विपक्षी दलों की ओर से सवाल उठने भी शुरू हो गए हैं। बता दें कि फारुक अब्दुल्ला उस समय से नजरबंद थे, जब 05 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्रशासित प्रदेश में बांट दिया था। फारुक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला और पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती समेत कई दूसरे बड़े नेता भी हिरासत में रखे गए हैं।

क्या है पीएसए?

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पीएसए लगभग नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के जैसे ही है, जिसका इस्तेमाल भारत के कई राज्यों में 'खतरा उतपन्न करने वाले व्यक्ति' को हिरासत में लेने के लिए किया जाता है। यह एक 'प्रिवेंटिव एक्ट' यानि 'सुरक्षात्मक कानून' है न कि 'प्यूनिटेटिव' अर्थात 'दंडात्मक कानून।' बता दें कि पीएसए के तहत बिना मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को दो साल तक गिरफ्तार या नजरबंद करके रखा जा सकता है। हालांकि किसी भी व्यक्ति को पीएसए एक्ट के तहत तभी गिरफ्तार किया जा सकता है जब इसकी अनुमति जिलाधिकारी दें या फिर डिविजनल कमिश्नर। पुलिस द्वारा किसी प्रकार का आरोप लगाए जाने या फिर कोई कानून तोड़ने पर इस धारा के तहत गिरफ्तारी नहीं होती।

यदि किसी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिया जाता है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून के अंतर्गत उसे 24 घंटे के अंदर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है। लेकिन पीएसए के तहत हिरासत में लिए जाने पर ऐसा नहीं होता है। यानी हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पास जमानत के लिए अदालत जाने का कोई अधिकार नहीं होता है और न ही कोई वकील उसका बचाव कर सकता है।

शेख अब्दुल्ला के कार्यकाल में मिली थी इस एक्ट को अनुमति

पब्लिक सेफ्टी एक्ट, पीएसए को साल 1978 में लागू किया गया था। उस वक्त फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। इस एक्ट को लागू करने का मकसद ऐसे लोगों को हिरासत में लेना है जो किसी प्रकार से राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।  

इस कानून को तत्कालीन सरकार द्वारा लाने का मुख्य उद्देश्य लकड़ी की तस्करी को रोकना बताया गया था। इस कानून के अंतर्गत किसी क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था को सही प्रकार से बनाए रखने के मद्देनजर वहां नागरिकों के आने-जाने पर रोक लगा दी जाती है।

हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मिलती है संवैधानिक सुरक्षा

हिरासत में लिए गए व्यक्ति को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना होता है। अधिनियम की धारा-22 लोगों के हित में की गई कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है। इस कानून के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।

हालांकि पीएसए के तहत हिरासत में लिए जाने को चुनौती देने का केल एक तरीका यह है कि उस व्यक्ति का कोई रिश्तेदार हेबीयस कॉर्पस याचिका दायर कर सकता है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई कर सकती है और पीएसए हटाने का आदेश दे सकती है। लेकिन कोर्ट द्वारा पीएसए हटाने का आदेश देने के बाद सरकार दूसरा आदेश पारित कर फिर से पीएसए के तहत हिरासत में ले सकती है।

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TAGS: Know about PSA, Public Safety Act, PSA, Sheikh Abdullah, government, Jammu and Kashmir, farooq abdullah, PSA in Hindi, जन सुरक्षा अधिनियम, पीएसए, पीएसए क्या है, कश्मीर
OUTLOOK 18 September, 2019
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