झारखंड से बंगाल: जो रास्ते में मिले उसे किनारे लगाते चलो, "लाला" ने ऐसे खड़ा कर दिया 20,000 करोड़ का साम्राज्य
पश्चिम बंगाल में कोयला पट्टी का बेताज बादशाह अनूप मांझी उर्फ लाला आज हर किसी की जुबान पर है। कैसे मछली बेचते बेचते कोयले की कमाई से हजारों करोड़ का मालिक बन बैठा। कोयले की काली दुनिया का उसूल है आगे बढ़ना है तो इलाके पर कब्जा करो और जो रास्ते में आये किनारे करते चलो। झारखण्ड के कोयलांचल के इतिहास की तरह लाला ने भी रास्ता अपनाया और पहले से जमे हुए लोगों को हटाता गया। प्रभाव बढ़ा तो कुछ लाला की शरण में आ गये और कुछ किनारे हो गये।
अस्सी के दशक में भामुरिया गांव का अनूप मांझी साइकिल पर मछली बेच परिवार का जीवन यापन करता था। ज्यादा कमाई के लिए, ग्रामीण इलाकों में चूल्हा जलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कोयले के गुल की फैक्ट्री कुछ दोस्तों के साथ मिलकर लगाई। 1994-95 आते-आते उसने पुरुलिया में कोयले का धंधा करने वाले अक्षय गुरुपद से जुड़ा और कोयले की दलाली, काली कमाई का हुनर सीखा। ज्यादा तेजी से कमाई की हवस में उसने गुरुपद को ही पहले किनारे किया और उसके धंधे पर कब्जा कर लिया। और क्षेत्र विस्तार करता गया। अगले दो दशक में उसने अपना हजारों करोड़ का साम्राज्य कायम करने के साथ सत्ता के साथ भी बेहतर रिश्ते कायम कर लिये। पश्चिम बंगाल में टीएमसी का शासन होने के बाद लाला के राजनीतिक रसूख के कारण एक प्रकार से उसके लिए कोयले की दुनिया का हाईवे खुल गया। हालांकि पूर्व में उसके रिश्ते तत्कालीन सत्ताधारी माकपा नेताओं से भी थे।
बात आज से एक दशक पहले की है उस समय तब लाला के स्टाइल में राजू झा का धंधा चलता था। राजू के पैड पर आसन सोल से बंगाल, बनारस की मंडियों में कोयला पहुंचता था। बल्कि कहें कि राजू के पैटर्न पर ही लाला ने अपने पैड पर कोयले की ढुलाई का फार्मूला अपनाया। 2011 में राजू पकड़ा गया तो उसके बाद से लाला ने इस धंधे पर कब्जा कर लिया, बल्कि और विस्तार किया। उस समय राजू के साथ-साथ जयदेव मंडल की भी कोयले के धंधे पर बड़ा प्रभाव था मगर लाला ने दोनों को पछड़ा अपना प्रभाव जमाया। बाद में जयदेव मंडल लाला के साथ हो गया। दाये हांथ के रूप में। सीबीआइ ने ताजा रेड में लाला के साथ जयदेव मंडल को भी निशाना बनाया।
बिहार, झारखण्ड आदि राज्यों में भी अपने गुर्गों की मदद से सेटिंग की और नाजायज कोयले बेधड़क जिला और राज्य की सीमा बिना वांछित कागजात के दौड़ने लगे। फिर उसने कोयले के धंधे के साथ-साथ स्पंज आयरन, एलॉय, हार्ड कोक, बालू आदि धंधे में भी हाथ डाला। उसी साल यानी 2011 में ही एक पुराने तस्कर रामलखन यादव की भी आसनसोल में हत्या कर दी गई थी। उसमें भी लाला का नाम जुड़ा था। उसी वर्ष लाला को भी कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था मगर जमानत मिल गई। उसके बाद लाला पुलिस के हाथ नहीं आया। वैसे जयदेव मंडल के साथ लाला के काम में अजय मंडल, रत्नेश वर्मा, राजन श्रीवास्तव, नंदा, जगदीश, बिल्लू , संजय भी उसके खास लोगों में रहे।
कोयला, अवैध खनन के धंधे आदि में बड़ी पहचान रखने वाले कृष्ण मुरारी उर्फ बिल्लू को 2019 के जनवरी में जब दुर्गापुर पुलिस ने गिरफ्तार किया उसके बाद तो लाला के रास्ते और आसान हो गये। मगर धनबाद पुलिस ने जब लाला और उनके सहयोगियों के कोलये के अवैध ट्रांसपोटिंग पर हाथ डाला और सीबीआइ, ईडी ने दबिश बढ़ाई तो लाला और उसके लोग भागते फिर रहे हैं। सीबीआइ और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के में लाला की डायरी मिली जिसमें उससे उपकृत होने वाले बंगाल और झारखण्ड के कई राजनेताओं व अफसरों के नाम हैं। वैसे लोगों की नींद उड़ी हुई है। तत्काल ममता बनर्जी के भतीजा टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी, उसकी पत्नी रुजिरा और रुजिरा की बहन, युवा इकाई के विनय मिश्र का कनेक्शन सामने आया है तो बवाल मचा हुआ है। और नाम खुलेंगे तो अनेक लोग बेपर्द होंगे।