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24 January 2021

मध्य प्रदेश: पुरानी काया नए शिवराज, क्या है मुख्यमंत्री के नए अवतार की सियासी वजहें

आजकल अपन खतरनाक मूड में हैं...गड़बड़ करने वाले को छोड़ेंगे-वोड़ेंगे नहीं, फारम (फॉर्म) में है मामा..माफिया सुन लो रे, मध्य प्रदेश छोड़ जाना, नहीं तो जमीन में गाड़ दूंगा 10 फुट।कोई हमारी बेटियों के साथ कुछ गलत करने की कोशिश करता है, तो मैं उन्हें तोड़ दूंगा। अगर कोई धर्म परिवर्तन करता है या ‘लव जिहाद’ जैसा कुछ करता है, तो आप नष्ट हो जाएंगे।महाकाल का तीसरा नेत्र खुल गया है। अपराधी सावधान हो जाएं। कोई नहीं बचेगा। माटी में मिला दूंगा। उन्हें तबाह और बर्बाद करके छोड़ेंगे।ग्लोबल स्किल पार्क मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट, गड़बड़ी की तो टांग दूंगा।”

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के ये बोल कइयों को चौंका सकते हैं, जो उन्हें पिछले कार्यकाल तक शालीन, संवेदनशील और भावुक शख्स के रूप में जानते रहे हैं। उनका यह कायाकल्प जोड़तोड़ के जरिए कांग्रेस से सत्ता हथिया कर चौथे कार्यकाल में दिख रहा है। पिछले तीन कार्यकाल में वे राज्य को दंगामुक्त, भयमुक्त बनाने में कामयाब रहे और इसी पर उनका जोर रहा। पहले उन्होंने मुसलमानी टोपी पहनने से भी गुरेज नहीं किया और कट्टर हिंदुत्ववादी छवि से हमेशा ही दूर रहे। लेकिन इस बार लगभग हर मामले में वे बदले हुए दिख रहे हैं। क्या इसकी वजह नए तरह के सियासी दबाव है? या फिर अपने कामकाज के आधार पर लोकप्रियता बनाए रखने की सीमाएं उन्हें परेशान करने लगी हैं? यह इसलिए भी हैरान करने वाला है क्योंकि सबको साथ लेकर चलने और कामकाज पर जोर देने से ही उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। यहां तक कि पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़े भी यही बताते हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सीटें भले कम मिली थीं लेकिन मत प्रतिशत में कांग्रेस से आगे थी। लेकिन अब वे शायद अपनी पुरानी छवि के विपरीत नई कठोर प्रशासक और कुछ हद तक कट्टर छवि गढ़ने की ओर बढ़ चले हैं। हाल के दौर में उनके बोल ही नहीं, राज्य सरकार की कई कार्रवइयां भी इसी ओर इशारा कर रही हैं। सियासी हलकों में तो यह भी सुगबुगाहट है कि वे मानो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से होड़ लेने लगे हैं।

यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता भोपाल में शितवराज सिंमह का विरोध करते हुए

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यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता भोपाल में श‌िवराज स‌िंह का विरोध करते हुए

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह ने उपचुनाव के परिणाम के ठीक पहले लव जिहाद के खिलाफ कानून लाने की घोषणा कर दी। ऐसी हड़बड़ी कि विधानसभा से पारित करवाने का भी इंतजार नहीं किया और अध्यादेश ले आए। यही नहीं, पहले कुछ कमजोर प्रावधान रह गए थे तो दोबारा कठोर प्रावधानों के साथ कैबिनेट में पारित किया गया। इसी तरह राम मंदिर चंदा संग्रह रैली के दौरान हुए पथराव के तुरंत बाद सख्त कार्रवाई की गई। धर्म विशेष के लोगों को गिरफ्तार किया गया और अतिक्रमण बताकर उनके घरों को तोड़ा गया। साथ ही पत्थरबाजों के खिलाफ कठोर कानून का प्रस्ताव भी तैयार हो गया। उसमें प्रावधान है कि ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई घटना में शामिल लोगों से की जायेगी। ये दोनों ही कानून उत्तर प्रदेश में पहले ही लाए जा चुके हैं। शिवराज मिलावटखोरी, भू माफिया, चिटफंड कंपनियों के खिलाफ अभियान चलाने और सुशासन पर जोर देने की बातें कर रहे हैं। 

राजनैतिक जानकार शिवराज सिंह में आये इन बदलावों की दो बड़ी वजह मानते हैं। एक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुलारे बने रहना और दूसरी, जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाना। यूं तो शिवराज सिंह हमेशा ही संघ की पसंद रहे है, लेकिन ऐसी चर्चाएं हैं कि इस बार उन्हें संघ के वीटों की वजह से ही मुख्यमंत्री पद मिल पाया है, इसलिए वे उसके एजेंडे पर तेजी से काम कर रहे है। धर्म स्वातंत्र्य विधेयक और पत्थरबाजों पर कड़ी कार्रवाई इसी का हिस्सा बताए जा रहे हैं। इस तरह से वे अपने लिए संघ का समर्थन और मजबूत बनाये रखना चाहते हैं।

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो शिवराज इससे वाकिफ हैं कि पार्टी में उनके विरोधी लगातार प्रयास कर रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले उन्हें हटा दिया जाए। तर्क दिया जा रहा है कि नए चेहरे के साथ जाने पर जीतने की संभावना बढ़ जाती है। मध्य प्रदेश में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा तो पार्टी आलाकमान के सामने खुले तौर पर अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। इसके अलावा उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल की भी दावेदारी बनी हुई है। शिवराज का प्रतिद्वंद्वी खेमा पिछले चुनाव में हुई हार का कारण शिवराज को ही बताता है। संघ और पार्टी आलाकमान दोनों तक यह बात पहुंचाई गई है कि अगला विधानसभा चुनाव शिवराज के नेतृत्व में लड़ा गया तो पार्टी को फिर से हार का सामना करना पड़ सकता है। कहा यह भी जाता है कि पार्टी में शिवराज विरोधियों को केंद्रीय नेतृत्व की भी शह मिली हुई है। सियासी गलियारों में ये चर्चाएं आम हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों ही पिछले विधानसभा चुनाव में शिवराज के स्थान पर नए चेहरे के साथ जाना चाहते थे लेकिन संघ के दबाव में शिवराज सिंह को बनाए रखना पड़ा।

पिछले विधानसभा चुनाव में हार की वजह से शिवराज पहले की तुलना में काफी कमजोर हुए हैं। इसी का नतीजा है कि मंत्रिमंडल गठन की बात हो या प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी का मामला, उनकी कम ही चली है। नई प्रदेश कार्यकारिणी के शपथ ग्रहण समारोह में यह बात उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी है कि अपने विधायकों को मंत्री नहीं बना पाए हैं। दिल्ली आलाकमान और संघ ने मिलकर मंत्रिमंडल और कार्यकारिणी दोनों में ही नए चेहरों को स्थान दिया है। इसी तरह का फार्मूला वे राज्य नेतृत्व पर भी लागू करना चाहते है। सुगबुगाहट यह भी है कि नरोत्तम मिश्रा और कैलाश विजयवर्गीय दोनों ने शिवराज हटाओ अभियान तेज कर दिया है। दोनों ही आलाकमान के करीबी हैं। यही वजह है कि दोनों को पश्चिम बंगाल चुनाव की जिम्मेदारी दी गई है। ये कयास भी है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में जीत दर्ज करती है तो उसके बाद उनको राज्य में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।

जाहिर है, शिवराज इन खतरों से वाकिफ हैं। उनके सामने बिहार के सुशील मोदी का उदाहरण भी है कि जीत के बाद भी उनको सरकार से बाहर कर नए चेहरों को जगह दी गई है। तो, शायद शिवराज किसी स्तर पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। वे एक ओर संघ का एजेंडा लागू कर उसे खुश करने में लगे हुए हैं तो दूसरी ओर जनता में अपनी लोकप्रियता इस कदर बढ़ाना चाहते हैं, ताकि विरोधियों को मौका न मिल पाए। जनता में उनकी लोकप्रियता बनी रही तो उनको हटाना मुश्किल होगा। इसीलिए वे ऐसे मुख्यमंत्री की छवि बना रहे हैं, जो सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देता है। हालांकि राजनीति के बदलते दांवपेच के दौर में यह देखना होगा कि उनका यह कायाकल्प कितना कामयाब रहता है।

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TAGS: मध्य प्रदेश, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी, Madhya Pradesh, Chief Minister Shivraj, BJP
OUTLOOK 24 January, 2021
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