मॉब लिंचिंग को लेकर मायावती ने केंद्र पर साधा निशाना
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मॉब लिचिंग को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग के एक भयानक बीमारी के रूप में देश भर में उभरने और उसमें जान-माल की हानि गम्भीर चिन्ता का विषय बन गई है। इस बारे में देशव्यापी कानून की सख्त जरूरत है, लेकिन केन्द्र सरकार इसके प्रति भी उदासीन है। हालांकि उन्होंने राज्य विधि आयोग द्वारा ‘उत्तर प्रदेश काम्बेटिंग ऑफ मॉब लिंचिंग विधेयक, 2019’ तैयार कर सख्त कानून बनाने की सिफारिश का स्वागत किया है, लेकिन इस पर भी तंज किया है कि सख्त कानून बनाने के साथ-साथ कानूनों को सख्ती से लागू कराने की इच्छाशक्ति भी बीजेपी को, बीएसपी सरकार की तरह ही विकसित करनी होगी, तभी इस रोग की रोकथाम हो पाएगी।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि यह रोग बीजेपी सरकारों की कानून द्वारा कानून का राज स्थापित नहीं करने की नीयत और नीति की देन है, जिससे अब केवल दलित, आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोग ही नहीं, बल्कि सर्वसमाज के लोग और पुलिस भी शिकार बन रही है। मॉब लिंचिंग की घटनाएं पहले भी इक्का-दुक्का हुआ करती थीं, लेकिन अब यह घटनाएं काफी आम हो गई हैं और इस प्रकार देश में लोकतन्त्र के हिंसक भीड़तन्त्र में बदलने पर देश में हर तरफ सभ्य समाज में चिन्ता है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका संज्ञान लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों को निर्देंश जारी किए हैं, लेकिन इस मामले में केन्द्र और राज्य सरकारें कतई भी गम्भीर नहीं है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग की यह पहल काफी स्वागत योग्य है कि भीड़ हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अलग से नया सख्त कानून बनाया जाए, जिसके मसौदे के रूप में ‘‘उत्तर प्रदेश काम्बेटिंग ऑफ मॉब लिंचिग विधेयक 2019’ आयोग ने राज्य सरकार को सौंप कर दोषियों को उम्र कैद की सजा तय किए जाने की सिफारिश की है। हालांकि वर्तमान में जो कानून हैं, उसके प्रभावी इस्तेमाल से ही हिंसक भीड़तन्त्र और भीड़हत्या आदि रोकने के हर उपाय किए जा सकते हैं, परन्तु जिस प्रकार से यह रोग लगातार फैल रहा है उस सन्दर्भ में अलग से भीड़तन्त्र-विरोधी कानून बनाने की जरूरत हर तरफ महसूस हो रही है और सरकार को पहले सक्रिय हो जाना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद तो केन्द्र सरकार को अवश्य ही गम्भीर होकर इस बारे में एक अलग से देशव्यापी कानून अब तक जरूर बना लेना चाहिए था, लेकिन लोकपाल आदि की तरह मॉब लिंचिग जैसे जघन्य अपराध के मामले में भी केन्द्र सरकार उदासीन है और इसकी रोकथाम के मामले में कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार साबित हो रही है। इसका एक कारण शायद यह भी हो सकता है कि माब लिंचिंग-विरोधी सख्त कानून बनाकर बीजेपी अपना सरदर्द क्यों बढ़ाए और अपना ही नुकसान क्यों करें? वैसे भी अगर उनकी नीयत साफ होती तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देंश के बाद अब तक एक नया कानून देश में लागू हो गया होता।
उन्होंने उन्नाव की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि हिंसक भीड़ जानती है कि जाति और धर्म के नाम पर वह कानून से खिड़वाड़ कर सकती है। ऐसे लेाग मानते हैं कि बीजेपी सरकार उनको संरक्षण देगी। ऐसी मनोवृत्ति के कारण ही भीड़ हिंसा की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। प्रदेश के उन्नाव की हालिया घटना भी यह साबित करती है कि सामाजिक जीवन कितना तनावग्रस्त हो गया है और हर किसी को किसी न किसी रूप में प्रभावित कर रहा है, यह अति दुखद है।