प्रिया पिल्लई की जीत के मायने
कोर्ट के इस फैसले से सरकार और दो बड़े कॉरपोरेट को करारा झटका लगा है। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के महान कोल ब्लॉक में लंदन में पंजीकृत एस्सार और भारतीय कंपनी हिंडाल्को काम कर रही हैं। इन्हें पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति के बाद भी कोयला मंत्रालय की स्वीकृति मिली हुई है। यह दोनों ही कंपनियां देश के बड़े घोटालों में आरोपित हैं। एस्सार जहां टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में आरोपित है तो हिंडाल्को कोयला घोटाले में। इन कंपनियों के तमाम विवादों में घिरे होने के बावजूद मोदी सरकार इनको आगे बढ़ाने में लगी है। ऐसे में कोर्ट का यह फैसला कॉरपोरेट और सरकार के एकछत्र गठजोड़ पर एक तगड़ी चोट है।
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस इंडिया की ऐक्टिविस्ट प्रिया पिल्लई महान में प्रस्तावित कोयला ब्लॉक के खिलाफ़ चल रहे आंदोलन में लगातार सक्रिय रही हैं। यहां एस्सार और हिंडाल्को के खिलाफ जनता लंबे अरसे से एकजुट है। इन कोयला ब्लॉक के बनने से पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचेगा ही क्षेत्रीय लोगों को भी अपनी जमीन से वंचित होना पड़ेगा। ग्रीनपीस इस आंदोलन के पक्ष में देश-विदेश से समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इसी सिलसिले में प्रिया पिल्लई 11 जनवरी को ब्रिटिश सांसदों को पूरे मामले की जानकारी देने लंदन जा रही थी। उन्हें महान कोयला ब्लॉक पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। सरकार का उनका देश से बाहर जाना रास नहीं आया और उन्हें लंदन जाने से रोक दिया गया। उन्हें दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया था।
ग्रीनपीस ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और इसे अपने अभियान की जीत बताया है। प्रिया पिल्लई ने कहा है कि सत्ता के बेजा इस्तेमाल पर रोक लगने पर हमें खुशी है। मेरी ब्रिटेन यात्रा को रोकना नागरिक अधिकारों का हनन था। उन्होंने कहा है कि इस फैसले से जनता के पक्ष में आंदोलन करने वालों को बल मिलेगा। हम उम्मीद करते हैं कि इससे ग्रीनपीस और बाकी ऐक्टिविस्ट के उत्पीड़न पर रोक लगेगी। प्रिया पिल्लई पर सरकार ने आरोप लगाया था कि वह राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम कर रही है। लेकिन कोर्ट में वह इस आरोप को साबित नहीं कर पाई। प्रिया की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा है कि यह देश के लिए एक महान दिन है। जब असहमति के अधिकार को संवैधानिक स्तर पर उठाया गया है। जब देश में एक बहुमत की सरकार सत्ता में हो तो इस तरह के फैसलों का महत्व बढ़ जाता है।
कोर्ट का यह फैसला पर्यावरण से जुड़े आदोलनों के लिए एक तात्कालिक राहत तो है लेकिन बड़े-बड़े कॉरपोरेट जिस तरह से पैसे के बल पर सरकारी नीतियों और न्याय व्यवस्था को प्रभावित करते हैं उसके खिलाफ लंबे जन संघर्षों की जरूरत अभी बची हूुई है।