डेढ़ गुने दाम की असलियत: किसानों को वो मिला जो पहले से हासिल था
उपज लागत का डेढ़ गुना दाम! कई वर्षों से किसानों और उनके आंदोलनों की यह सबसे प्रमुख मांग रही है। बात निकली थी हरित क्रांति लाने में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग (2004-2006) की रिपोर्ट से। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश थी कि उपज की लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिया जाना चाहिए। इतने वर्षों में इस मांग को किसी सरकार ने पूरा नहीं किया, लेकिन यह मुद्दा देश भर में किसानों की जुबान पर चढ़ चुका है। यह बात अलग है कि अक्सर एमएमपी पर खरीद ही नहीं होती। मुश्किल से 6 फीसदी किसानों को एमएसपी का फायदा मिल पाता है। फिर भी किसानों के लिए यह बड़ा मुद्दा है।
इस बजट में अचानक यह मांग पूरी हो जाएगी, इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही हो। बजट भाषण की शुरुआत में ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि रबी की अधिकांश फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत से कम से कम डेढ़ गुना किया जा चुका है और आगामी खरीफ सीजन से बाकी फसलों का दाम भी लागत से कम से कम डेढ़ गुना किया जाएगा। मतलब, वर्षों से जो किसान मांग रहे थे, एक झटके में उन्हें मिल गया। लगा कि सरकार किसानों पर मेहरबान हो गई। लेकिन इस खुशी में कई किंतु-परंतु हैं।
इस घोषणा को खुद अरुण जेटली ने भी ऐतिहासिक करार दिया। बात ही कुछ ऐसी है! लेकिन इस ऐलान के साथ तमाम सवाल भी खड़े होने लगे। पहला सवाल तो यही उठा कि उपज का डेढ़ गुना दाम देने के लिए बजट में कितनी धनराशि का प्रावधान किया गया। पत्रकार दिन-भर बजट दस्तावेजों में इसे खोजते रहे, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा।
अहम सवाल यह है कि अगर रबी फसलों का एमएसपी उत्पादन लागत से 50 फीसदी अधिक यानी डेढ़ गुना किया जा चुका है तो फिर इतनी बड़ी उपलब्धि को सरकार ने छिपाए क्यों रखा। 24 अक्टूबर, 2017 को जब रबी फसलों के एमएसपी का ऐलान हुआ, उसी दिन से वाहवाही लूटनी क्यों शुरू नहीं की? आखिरकार ये ऐतिहासिक कदम था और इससे पहले मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कह चुकी थी कि लागत पर 50 फीसदी मुनाफा देना संभव ही नहीं है। जो दिया जा रहा है, वह असंभव कैसे?
कहीं तो झोल है!
अगर सरकार द्वारा तय रबी फसलों के एमएसपी और बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली के दावे की गहराई में जाएंगे तो पूरा मामला समझ आ जाएगा।
दरअसल, वित्त मंत्री ने लागत पर डेढ़ गुना दाम की घोषणा के लिए अपनी सहूलियत के हिसाब से कम लागत को चुन लिया है। जब लागत ही कम वाली चुन ली तो इसके आधार पर सभी फसलों के दाम खुद ही डेढ़ गुना ज्यादा हो गए। जिनके नहीं हुए हैं, उनके अगले सीजन में हो जाएंगे। घोषणा भले ही दाम को लेकर हुई लेकिन पूरा खेल लागत का है।
फसलों के दाम की सिफारिश करने वाली संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) दो-तीन तरह की लागत के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की सिफारिश करती है। इसमें एक है कुल लागत, जिसे C2 कहते हैं। इसमें फसल उत्पादन पर हुए किसान के खर्च (बीज, खाद, पानी, जुताई, मजदूरी इत्यादि) के साथ-साथ कृषक परिवार के श्रम, जमीन की किराये और लागत पूंजी पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है। किसान इसी कुल लागत यानी C2 पर ही डेढ़ गुना दाम की मांग करते रहे हैं।
अगर कुल लागत यानी C2 से जमीन का किराया और लागत पूंजी पर ब्याज को हटा दिया जाए तो उत्पादन पर हुआ खर्च और परिवार की मेहनत बचती है। इस लागत को A2+FL कहते हैं।
हकीकत यह है कि अधिकांश फसलों के एमएसपी A2+FL से 50 क्या 100 फीसदी या इससे भी अधिक हैं। आज से नहीं कई बरसों से ऐसा है। इसलिए A2+FL से डेढ़ गुनी कीमत कोई मुद्दा ही नहीं है। असली मुद्दा है कुल लागत यानी C2 का डेढ़ गुना दाम।
सीएसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक, रबी सीजन 2018-19 में गेहूं की कुल लागत यानी C2 कॉस्ट 1256 रुपये प्रति कुंतल मानी गई है, जबकि A2+FL कॉस्ट 817 रुपये हैं। अगर सरकार कुल लागत यानी C2 पर डेढ़ गुना दाम तय करती तो गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम से कम 1879 रुपये प्रति कुंतल होना चाहिए था। जबकि गेहूं का एमएसपी तय किया है 1735 रुपये प्रति कुंतल। यह दाम A2+FL के मुकाबले तो 112 फीसदी अधिक है, लेकिन C2 से सिर्फ 38 फीसदी ही ज्यादा है।
इस प्रकार जौ की C2 लागत 1190 रुपये और A2+FL लागत 845 रुपये प्रति कुंतल मानी गई है। जबकि इसका एमएसपी 1410 रुपये तय हुआ है जो C2 से 18.48 फीसदी और A2+FL से 67 फीसदी अधिक है। सूरजमुखी का एमएसपी तो A2+FL से भी सिर्फ 28 फीसदी अधिक है और C2 से केवल 3 फीसदी ज्यादा है।
जाहिर है कि वित्त मंत्री का रबी सीजन में डेढ़ गुना दाम देने का दावा कुल लागत C2 पर कतई सही नहीं बैठता। हां, अगर A2+FL को आधार माना जाए तो रबी की अधिकांश फसलों के एमएसपी जरूर डेढ़ गुना हैं।
लेकिन A2+FL पर डेढ़ गुना या इससे ज्यादा दाम तो किसानों को तब भी मिल रहा था, जब 2014 में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में किसानों को डेढ़ गुना दाम देने का वादा किया था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई चुनावी रैलियों में यह वादा दोहराया था। तो क्या तब भाजपा किसानों को A2+FL पर डेढ़ गुना दाम देने का वादा कर रही थी? उससे ज्यादा तो किसानों को पहले ही मिल रहा था। देखिए, क्या था भाजपा का वादा
उपरोक्त तालिका से स्प्ष्ट है कि साल 2014 में जब भाजपा ने लागत पर 50 फीसदी लाभ का वादा किया तब भी अधिकांश फसलों के एमएसपी A2+FL लागत से 50 फीसदी या इससे अधिक थे। गेहूं, सरसों का एमएसपी तो A2+FL से सौ फीसदी से भी ज्यादा था।
इसलिए जो दाम किसानों को पहले से ही मिल रहा था, वह चुनावी वादा क्यों बनता और क्यों भाजपा उसे अपने घोषणा-पत्र में जगह देती। जाहिर है मुद्दा C2 पर 50 फीसदी मुनाफा देने का था, जिससे अब सरकार पल्ला झाड़ती दिखाई दे रही है। 2014 में रबी की सभी फसलों के एमएसपी C2 के मुकाबले 50 फीसदी से कम थे और आज भी कमोबेश वहीं स्थिति है।
FM misleads on MSP: Claimed that in Rabi 2018 they provided MSP at least 50% above Cost of Production in ALL CROPS. The actual Net returns above C2 Cost is between 3%-38%. See Table below. @_YogendraYadav @vishwamTOI @ShirinBhan @sayantanbera @kkuruganti @nit_set pic.twitter.com/e4yR4O9CvB
— Kiran Vissa (@kiranvissa) February 1, 2018
किसान नेता किरन विस्सा के मुताबिक, अगर A2+FL लागत को आधार माने या C2 को, यूपीए के मुकाबले एनडीए के कार्यकाल में अधिकांश फसलों के दाम गिरे हैं।
स्रोत: https://twitter.com/kiranvissa
लेकिन भाजपा प्रवक्ता अब कह रहे हैं कि उनका वादा C2 पर नहीं बल्कि A2+FL पर 50 फीसदी लाभ दिलाने का था।
You are poorly informed or deliberately lying. What 2aa proposed was cost (CACP's A2+FL cost) plus 50%, not C2. The present MSP for Paddy is cost plus 54%, Wheat is 90% over the cost of cultivation. I am posting the real numbers.@_YogendraYadav @TimesNow @RShivshankar https://t.co/Ksg9zt7bUh
— GVL Narasimha Rao (@GVLNRAO) January 27, 2018
जाहिर है वित्त मंत्री ने किसानों की वास्तविक मांग पूरी करने के बजाय पूरे मामले को लागत में उलझाने का आसान रास्ता खोज लिया है। बजट भाषण में यह भी स्पष्ट नहीं है कि आगामी खरीफ सीजन में फसलों का डेढ़ गुना एमएसपी कौन सी लागत के आधार पर तय होगा। इस पर सरकार कितना पैसा खर्च करेगी, इसका भी कहीं जिक्र नहीं है। सरकार के इस कदम का बस इतना महत्व है कि डेढ़ गुना दाम देने के सिद्धांंत को स्वीकार कर लिया गया है। किस लागत को आधार माना जाएगा, यह बहस जारी रहेगी लेकिन भविष्य में तय होने वाले एमएसपी सीधे तौर पर लागत से जुड़ जाएंगे। फिलहाल किसान इससे संतोष कर सकते हैं। इसका स्वागत कर सकते हैं। लेकिन अभी वो दाम मिल रहा है जो कभी मांगा नहीं था और पहले से मिल रहा है।
वैसे किसान को शब्दों की लीपापोती में उलझाने का खेल ज्यादा दिन चलने वालाा नहीं है। किसानों की नई पीढ़ी काफी पढ़ी-लिखी और जागरुक है। उनसे क्या वादा किया गया था और कौन-सा दाम दिया जा रहा है, यह असलियत उनके छिपने वाली नहीं है। बल्कि ज्यादा चालाकी उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम करेगी। गुजरात चुनाव में दिखा गांव–किसानों का असंतोष बढ़ भी सकता है।
इस बजट में ग्रामीण हाट और बागवानी कलस्टर विकसित करने, मछलीपालन और पशुपालन से जुड़े किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ दिलाने, मछलीपालन और पशुपालन के लिए 10 हजार करोड़ के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड की स्थापना, जमीन पट्टे पर लेने वाले किसानों को संस्थानिक ऋण दिलाने और फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनियों को टैक्स छूट जैसी कई घोषणाएं हैं, जो महत्वपूर्ण हैं। लेकिन आशंका है कि डेढ़ गुना दाम के नाम पर किसानों को भ्रमित करने की कोशिश इन अहम घोषणाओं को भी फीका न कर दे।