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18 May 2015

हाजियों से कुरबानी का अग्रिम धन वसूलना नाइंसाफी

पीटीआाइ

उनका कहना है कि कुरबानी कराना या ना कराना हाजी का निजी मामला है। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव मौलाना निजामउद्दीन ने भाषा से बातचीत में कहा कि हज कमेटी ने हज के दौरान जानवर की कुरबानी की रस्म अदायगी के लिए अग्रिम धनराशि जमा किए जाने को अनिवार्य बनाकर गलत किया है। उन्होंने कहा कि हज कमेटी हाजियों के नमाज पढ़ने, उन्हें लाने या ले जाने और उनकी बाकी सुविधाओं का इंतजाम तो कर सकती है, लेकिन कुरबानी कराना या ना कराना हाजी का निजी मामला है और इसमें उसे दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए।

यह हज कमेटी की जिम्मेदारी है ही नहीं। मौलाना ने कहा कि कुरबानी हर हाजी पर वाजिब (अनिवार्य) नहीं है। अगर कोई हाजी आर्थिक तंगी की वजह से कुरबानी नहीं करा पाता है तो उसके एवज में वह 10 दिन तक रोजा भी रख सकता है। ऐसे में उससे कुरबानी का धन वसूलना नाजायज और नाइंसाफी है। इस बीच, जमीयत उलमा-ए-हिन्द के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना अशहद रशीदी ने इस बारे में कहा कि हजयात्रियों से कुरबानी के लिए पहले ही धन वसूले जाने को अनिवार्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह हाजी के ऊपर है कि वह कुरबानी कराना चाहता है या उसके बदले रोजे रखना चाहता है।

उन्होंने कहा कि हज की कई किस्में हैं, उनमें से एक में तो कुरबानी होती ही नहीं है। इसराद नामक किस्म के हज में कुरबानी कराना जरूरी नहीं होता है। ऐसे में हर हाजी से कुरबानी के पैसे कैसे लिए जा सकते हैं। मौलाना रशीदी ने कहा कि जिस हज में कुरबानी वाजिब होती है, उसमें भी शरीयत ने यह रियायत दे रखी है कि जो हाजी पैसे की तंगी या किसी और वजह से कुरबानी ना कराना चाहे वह उसके बदले रोजे रख सकता है, इसलिए इसको लाजिम करार देना गैर-शरई बात है। उन्होंने कहा कि जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस बारे में केन्द्र सरकार से बात की है।

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हो सकता है कि केन्द्र इस मामले में गौर करके मुनासिब बदलाव करे। अगर ऐसा नहीं होता है तो जमीयत अपनी कार्यकारिणी समिति में विचार करके कदम उठाएगी। आल इण्डिया शिया पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने इस मामले पर कहा कि कुरबानी कराना या ना कराना हाजियों का अधिकार है, इसे हज कमेटी नहीं छीन सकती। यह हक हाजियों के पास ही रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हज कमेटी का काम हाजियों को हज के दौरान अन्य सुविधाएं प्रदान करना है। हर हाजी अपनी-अपनी हैसियत और पसंद के हिसाब से कुरबानी कराता है।

बहुत से ऐसे भी हाजी होते हैं जो अलग-अलग कारणों से कुरबानी कराने के बजाय रोजे रखना पसंद करते हैं। शरीयत ने हाजियों को जो हक दिया है उसमें दखलंदाजी ठीक नहीं है। विश्वविख्यात इस्लामी शिक्षण संस्था शिबली एकेडमी के प्रमुख मौलाना इश्तियाक अहमद जि़ल्ली ने भी भारतीय हज कमेटी द्वारा हाजियों से कुरबानी के लिये धन लिए जाने को गैर-जरूरी और गैर-शरई करार दिया।

उन्होंने कहा कि यह समझ से परे है कि आखिर क्यों हज कमेटी ने इस तरह की अनिवार्यता लागू की है। यह हाजियों ने अधिकारों में बेजा दखलंदाजी है, जिसे फौरन खत्म किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि भारतीय हज कमेटी ने इस बार हाजियों से हज के दौरान कराई जाने वाली कुरबानी के लिए धन की अग्रिम वसूली का प्रावधान किया है। यह कदम पहली बार उठाया गया है।

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OUTLOOK 18 May, 2015
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