नजीब मामला: हाईकोर्ट ने पूछा, आरोपियों से पूछताछ में इतना वक्त क्यों लगा
पिछले 45 दिनों से लापता जेएनयू छात्र नजीब के बारे में अब तक पता नहीं लगने पर चिंता प्रकट करते हुए अदालत ने कई सवाल भी उठाए। हाईकोर्ट ने पूछा कि नजीब और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कुछ सदस्यों के बीच कैंपस में कथित झगड़ा क्यों हुआ और नजीब को जब चोट आई थी, तो दिल्ली पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में इसका जिक्र क्यों नहीं किया गया। न्यायमूर्ति जी एस सिस्तानी और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा, राष्ट्रीय राजधानी भारत का दिल है। अगर एक आदमी राष्ट्रीय राजधानी से लापता हो जाए और अब तक उसका पता नहीं चले तो इससे लोगों में असुरक्षा का भाव पैदा होता है। पीठ ने कहा, यहां से कोई ऐसे लापता नहीं हो सकता। अगर वह लापता हुआ है तो उसमें कुछ है। किसी के भूमिगत होने के लिए 45 दिन लंबी अवधि है। पीठ ने यह बात पुलिस से कही जिसकी राय है कि नजीब बलपूर्वक अगवा नहीं हुआ। पुलिस की प्रगति रिपोर्ट पर गौर करते हुए अदालत ने पूछा कि अगर नजीब को जो आई चोट नहीं दिख रही थी तो एंबुलेंस में उसे अस्पताल क्यों ले जाया गया, क्योंकि यह तथ्य पुलिस रिपोर्ट से गायब है।
अदालत लापता नजीब की की मां फातिमा नफीस की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। वह आज अदालत में मौजूद थीं और सुनवाई के दौरान रो रही थीं। उन्होंने अदालत से मांग की कि वह प्राधिकारों को उनके 27 वर्षीय बेटे को तलाश करने का निर्देश दे। पीठ ने यह भी कहा कि नजीब और एबीवीपी के कुछ सदस्यों के बीच कैंपस में हुए कथित झगड़े के बारे में रिपोर्ट में क्यों नहीं कुछ कहा गया जिन पर आरोप है कि उसकी निर्ममतापूर्वक पिटाई की गई। न्यायाधीश ने सवाल किया कि 15 अक्तूबर को लापता होने से पहले 14-15 अक्तूबर की रात नजीब का जिन लोगों के साथ कथित तौर पर झगड़ा हुआ था उन लोगों से पूछताछ करने के लिए पुलिस ने 11 नवंबर तक का इंतजार क्यों किया जबकि उनके खिलाफ 17 अक्तूबर को आपराधिक शिकायत दर्ज कराई गई। पीठ ने पुलिस से कहा, सारे राजनीतिक अवरोधों से ऊपर उठा जाए। उसे वापस लाया जाए। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह पुलिस को यह नहीं कहना चाहती कि वह क्या करे, लेकिन वह मामले में शामिल कुछ लोगों पर आसानी से ध्यान केंद्रित कर सकती है ताकि यह पता चले कि क्या चल रहा है और अदालत को निर्भय होकर बता सके उसे क्या मिला।