बंधुआ मजदूरी पर मानवाधिकार आयोग और सरकार की अलग राय
बंधुआ मजदूरी पर राष्ट्रीय सेमिनार में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू और केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय की अलग-अलग राय देखने को मिली। जस्टिस दत्तू ने जहां इस बात पर अफसोस जताया कि तमाम स्कीमों, नियम-कायदों के बावजूद बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए अब तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है वहीं केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय का कहना था कि सरकार ने बहुत काम किया है, लेकिन जब तक लोगों की सामंती सोच नहीं बदलती इस बुराई का पूरी तरह समाप्त होना मुश्किल है। इस सेमिनार का आयोजन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से किया गया था।
मंगलवार को उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एच.एल. दत्तू ने कहा कि सच्चाई यह है कि तमाम नियम-कानूनों, नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद बंधुआ मजदूरी को दूर करने की दिशा में अब तक असली ठोस काम नहीं हुआ है। जबकि यह मानवाधिकार उल्लंघन का सबसे बुरा रूप है। उन्होंने इस बुराई को दूर करने के लिए सामाजिक सेवाओं के साथ सेवाओं की डिलीवरी के लिए प्रशासन में आमूलचूल परिवर्तन का आह्वान करते हुए कहा कि हमें दोहरा नजरिया अपनाना होगा क्योंकि इसमें शोषित तबका कमजोर लोगों का, जबकि शोषक तबका ताकतवर लोगों का है। इसलिए सरकार, सिविल सोसाइटी तथा अन्य संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा।
दूसरी ओर श्रममंत्री ने कहा कि कई राजाओं और संतों ने इस कुप्रथा को समाप्त करने का प्रयास किया परंतु पूरी तरह समाप्त नहीं कर सके। क्योंकि इसका असली कारण सामंती सोच है, जिससे आज भी दलितों तथा कमजोर वर्गों का शोषण हो रहा है। सरकार इस बुराई को खत्म करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। बंधुआ मजदूर पुनर्वास स्कीम के तहत वित्तीय सहायता को 20 हजार रुपये से बढ़ाकर वयस्क पुरुषों, बच्चों/महिलाओं तथा यौन शोषित किन्नरों/बच्चों/महिलाओं के मामले में क्रमश: एक लाख, दो लाख तथा तीन लाख रुपये कर दिया है। बंधुआ मजदूरी सर्वेक्षण सहायता राशि को बढ़ाकर साढ़े चार लाख रुपये कर दिया गया है। हर जिले में 10 लाख रुपये का बंधुआ मजदूर पुनर्वास कोष स्थापित किया गया है। यह राशि सीधे लाभार्थी के खाते में डाली जाती है।