इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला- SC/ST एक्ट में बिना नोटिस गिरफ्तारी नहीं
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के 2014 के एक फैसले का हवाला देते हुए पुलिस को कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित सीआरपीसी प्रावधानों का पालन किए बिना दलित महिला और उनकी बेटी पर हमला करने के चार आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में अपराध सात वर्ष से कम सजा योग्य हो, उनमें बिना नोटिस गिरफ्तारी नहीं की जा सकती।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अदालत ने पुलिस को तत्काल और सीधी गिरफ्तारी करने से रोका। हालांकि मामला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत आईपीसी वर्गों के अंतर्गत दर्ज था।
जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की खंडपीठ ने 19 अगस्त 2018 को दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने वाली एक याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही। बता दें कि यह आदेश संसद में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद दर्ज एफआईआर में आया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में गिरफ्तारी से पहले अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 2014 के फैसले का पालन किया जाए। इसी के साथ कोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया।
क्या है अरनेश कुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने अनरेश कुमार मामले में फैसला दिया था कि यदि किसी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में अपराध की अधिकतम सजा सात साल तक की है, तो ऐसे मामले में सीआरपीसी 41 और 41ए के प्रावधानों का पालन किया जाएगा। जांचकर्ता को पहले सुनिश्चित करना होगा कि गिरफ्तारी अपरिहार्य है, अन्यथा न्यायिक मजिस्ट्रेट गिरफ्तार व्यक्ति की न्यायिक रिमांड नहीं लेगा।
क्या था मामला?
यह याचिका गोंडा के कांडरे थाने में राजेश कुमार के खिलाफ मारपीट, एलसी/एसटी एक्ट के मामले में हुई गिरफ्तार को रद्द करने के लिए दायर की गई थी। जिन पर दलित महिला ने उसे और उसकी बेटी पर हमला करने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में आरोपी पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं सहित एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी।