यूजीसी पर कब्जा आंदोलनः छात्रों ने घेरा, डाला डेरा
छोटे से मुद्दे से शुरू होकर आंदोलन देश भर में छात्रों के एक बड़े राजनीतिक आंदोलन में तब्दील होता जा रहा है। आने वाले दिनों में यूजीसी पर कब्जा (ऑक्युुपाई यूजीसी) आंदोलन केंद्र की मोदी सरकार की उच्च शिक्षा में गहन शोध को हतोत्साहित करने वाली नीतियों के खिलाफ, शिक्षा पर सरकारी खर्च बढ़ाने, शिक्षण संस्थानों के स्वायîा कामकाज में बढ़ती सरकार दखल को रोकने के सवालों को अपने भीतर समेटने की कूवत रखता है। दिल्ली में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दक्रतर के बाहर छात्रों ने 24 घंटे का डेरा डाल रखा है। पिछले माह 23 अक्टूबर से शुरू हुआ यह आंदोलन अब देश के अन्य हिस्सों तक पहुंच रहा है। ये छात्र सीधी मांग कर रहे हैं कि यूजीसी ने अचानक मनमाने ढंग से उच्च शिक्षा में शोध के लिए मिलने वाली गैर-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) फेलोशिप योजना को बंद करने का फैसला लिया, उसे तुरंत रद्द किया जाए। साथ ही उच्च मुद्रास्फीति को देखते हुए भîाों में इजाफा किया जाए। छात्रों की मांग है कि गैर-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा फेलोशिप योजना (नॉन नेट फेलोशिप) एम.फिल के लिए 5000 रुपये से बढ़ाकर 8,000 रुपये और पी.एचडी स्कॉलर के लिए 8,000 रुपये 12,000 रुपये की जाए।
यूजीसी पर कब्जा के नारे के साथ शुरू हुए इस आंदोलन के ज्यादा तेजी से व्यापक शिक्षा सुधारों की मांग के और बढ़े आंदोलन में तब्दील होने की प्रबल संभावना है। दिसंबर में विश्व व्यापार संगठन-गेट्स (डब्लूटीओ) की दोहा बैठक में भारत की उच्च शिक्षा को बाजार के लिए खोल देने वाले समझौते की प्रबल आशंका है। इस बारे में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2005 में भारतीय उच्च शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा बाजार के लिए खोलने का प्रस्ताव रख चुकी है। इस साल दिसंबर मध्य में दोहा बैठक में इस प्रस्ताव का बाध्यकारी (कमिटमेंट) स्वरूप के सामने आने की आशंका है। इसके अलावा डब्लूटीओ के प्रावधान के तहत ट्रेड पॉलिसी रिव्यू मैकेनिज्म (टीपीआरएम) हर साल भारत की शिक्षा नीति की समीक्षा करेगा और यह भारतीय शिक्षा में बाजार की मुक्त आवाजाही के लिए नीतियों में तब्दीली पर निगाह रखेगा। ऐसा होने पर शिक्षा में आरक्षण और बाकी समाजकल्याण के लिए दिए जा रही सुविधाओं पर गाज गिरने की आशंका जताई जा रही है। वैज्ञानिक दिनेश अबरॉल ने बताया कि 'आगामी डब्लूटीओ बैठक में भारत अगर इस बाध्यकारी प्रावधान के लिए तैयार हो जाता है(जिसके प्रबल संकेत मिल रहे हैं) तो भारत में उच्च शिक्षा सिर्फ अमीरों और सुविधासंपन्न लोगों तक सीमित हो जाएगी। शोध से पहले ही सरकार हाथ खींच रही है। इसलिए छात्रों का यह आंदोलन बेहद जरूरी है। धीरे-धीरे यह डब्लूटीओ के दमनकारी प्रावधानों के खिलाफ मुड़ेगा।’
यूजीसी पर कब्जा आंदोलन एक तरह शिक्षा की बदहाली पर छात्रों के आक्रोश को बाहर निकालने का एक मंच बनता जा रहा है। जब यह संवाददाता यूजीसी पर चल रहे 24 घंटे के धरने पर गई तो पाया कि वहां सिर्फ एम.फिल या पी.एचडी करने वाले छात्र ही नहीं बैठे थे। स्नातक-परास्नातक से लेकर अध्यापन कर रहे तमाम तबके यहां एकजुट हो रहे हैं। तेजी से ठंडी हो रही रातों में लड़के-लड़कियां गाने-पेंटिंग के साथ जोश भरे अंदाज में आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। धरने पर दिन भर जो चंदा जुटता है, उसी से रात का खाना मंगाया जाता है। इस आंदोलन की शुरुआत भाकपा-माले से संबद्ध अखिल भारतीय स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) ने की थी। लेकिन अब अन्य संगठन भी शामिल हो रहे हैं। आइसा के नीरज ने बताया 'बगल की छोटी सी मस्जिद से भी उन्हें मदद मिल जाती है। रात में अक्सर वहां से चाय का इंतजाम हो जाता है और रात में रुकने वाले लड़के-लड़कियों की दैनिक जरूरतों के लिए भी मस्जिद ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं।’ वामपंथी संगठन से जुड़े असलम ने बताया 'सीधे-सीधे केंद्र सरकार की छात्र विरोधी नीतियों से टक्कर लेने वाली इतनी लंबी गोलबंदी बहुत लंबे समय बाद हुई है। इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर पड़ने लगा है।’ यह बात सही भी नजर आ रही है। देश भर में सक्रिय प्रगतिशील, जनवादी, वामपंथी छात्र संगठन लामबंद हो रहे हैं। केंद्र की छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ हो रही राष्ट्रीय लामबंदी के एक सक्रिय केंद्रक के रूप में उभर रहा है ऑक्युपाई यूजीसी आंदोलन।
आंदोलन की नेतृत्व की कतारों में सबसे आगे, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) यूनियन की उपाध्यक्ष शहला राशिद ने आउटलुक को बताया, 'सरकार छात्रों की वाजिब मांग तक सुनने को तैयार नहीं हो रही है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी हम लोगों से मिली जरूर लेकिन कोई हल निकालने को तैयार नहीं हुईं। हमने सीधे कहा कि जैसे पहले राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) फेलोशिप योजना के तहत छात्रों को सुविधा मिल रही थी, उसे बहाल किया जाए। महंगाई को देखते हुए इसे बढ़ाया जाए। ये सब करने के बजाय, केंद्र सरकार हम छात्रों को एक समिति का झुनझुना पकड़ा दिया जो यह विचार करेगी कि किस और क्या आधार पर फेलोशिप दी जा सकती है। ये किसे स्वीकार्य हो सकता है। इसका सीधा अर्थ है कि केंद्र सरकार ने हमारी मांगों के प्रति जरा भी गंभीर नहीं है। वैसे भी केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद से शिक्षा का बुरा हाल हो रहा है। शिक्षा का भगवाकरण एकमात्र एजेंडा है, जिसके लिए इस समय केंद्र सरकार दिन-रात काम कर रही है।’
यूजीसी पर कब्जेे के नारे के साथ शुरू हुआ यह आंदोलन दिल्ली से बाहर विभिन्न विश्वविद्यालयों तक पहुंच चुका है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेकर पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यलय, हैदराबाद, शिलांग, नॉर्थ-ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी, चैन्ने, मुंबई, वर्धा, इलाहाबाद, पुडुचेरी, चंडीगढ़, सागर, रोहतक आदि विश्वविद्यालयों में छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। दिल्ली में खुले आसमान के नीचे चल रहे इस आंदोलन को शिक्षकों तथा समाज के अन्य तबकों का समर्थन मिल रहा है। इस समर्थन की ठोस वजहें हैं। शिक्षा के भगवाकरण-हिंदुत्वीकरण की जोर-शोर से तैयारी चल रही है (देखें बॉक्स)। शोध और खासतौर पर वैज्ञानिक शोध पर सरकार ने बजटीय आवंटन में जबर्दस्त कटौती की है। विज्ञान और प्रद्यौगिकी मंत्रालय ने काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) को कहा है कि वह अपने 50 फीसदी शोध के लिए पैसे का खुद प्रबंध करे। यूजीसी को नेट की संशोधित राशि भी नहीं मुहैया कराई गई है।
देश भर में असहिष्णुता, हिंसा और नफरत के खिलाफ जो आवाजें उठ रही हैं, उनमें अपने अधिकारों और शिक्षा खासतौर से उच्च शिक्षा को बचाने के लिए संघर्र्षरत ये युवा नया जोश भरते नजर आ रहे हैं।
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इतिहास पर भगवा रंग
केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सîाा में आने के बाद से बेहद नियोजित तरीके से औपचारिक शिक्षा के भगवाकरण और देश के प्राचीन व मध्यकालीन इतिहास को बदलने का काम जारी है। यह काम कई मोर्चों पर और कई तरीकों से किया जा रहा है। टीपू सुल्तान को नायक से खलनायक बनाने की कर्नाटक में चल रही साजिश की परिणति सबके सामने है ही। इधर कई संगठन प्राचीन भारतीय इतिहास को संशोधित करने और 'वाम इतिहासकारों द्वारा शामिल की गई विकृतियों को सुधारने’ के लिए 'रन फॉर ऑन हिस्ट्री’ अभियान के तहत दौड़ का भी आयोजन करने वाले हैं। यह दौड़ राजधानी दिल्ली में संभवतया इस साल के अंत तक या फिर 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर आयोजित की जाएगी। इस आयोजन में वर्ल्ड ब्राह्मण फेडरेशन, भारत निर्माण संघ और कुछ अन्य वैदिक अध्ययन संगठन शामिल हैं। फेडरेशन के चेरयमैन मांगे राम शर्मा इसे अब अंतरराष्ट्रीय अभियान में तब्दील करना चाहते हैं। अमेरिका, कनाडा व यूरोप में कई हिंदूवादी और भाजपा समर्थक संगठन इसमें सक्रिय रूप से लगे हैं। इसमें दस हजार के लगभग छात्रों व शिक्षाविदों को जोड़ने का लक्ष्य है। इनके एजेंडे में इतिहास की किताबों की समीक्षा करना और उनमें निहित इस तरह की विकृतियों को दूर करना शामिल है, जैसे कि आर्य भारत के बाहर से आए थे। इस अभियान के आयोजक मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों से पहले ही मिल चुके हैं। इस अभियान में प्रकाशकों पर भी इस बात के लिए दबाव डालना शामिल है कि वे वामपंथी इतिहासकारों की किताबें वापस लें।
उधर पिछले दिनों हरियाणा में नई शिक्षा नीति पर पहली राज्य-स्तरीय मशविरा बैठक की अध्यक्षता करने के बाद संघ विचारक दीनानाथ बत्रा ने भी साफ कहा 'वह समूचे देश की शिक्षा का 'भगवाकरण’ करना चाहते हैं और उनकी योजनाएं व काम का दायरा हरियाणा तक ही सीमित नहीं है।’ चंडीगढ़ में हुई बैठक में अध्यापक से लेकर विश्वविद्यालयों के कुलपति तक सब शामिल हुए थे। दीनानाथ बत्रा ने यह भी बताया 'अगले सत्र से छठी से लेकर बारहवीं कक्षा तक नैतिक शिक्षा के रूप में भगवद् गीता पढ़ाई जाएगी। मौजूदा स्कूल अध्यापक ही यह भी पढ़ाएंगे और रोजाना बच्चों को गीता के दो श्लोकों का भावानुवाद समझाया जाएगा।’ ध्यान रखने की बात यह है कि स्कूलों में गीता पढ़ाए जाने की योजना का एलान पिछले साल के अंत में ही किया जा चुका था।