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14 July 2015

सैनिकों को दे न दे, जजों को वन रैंक वन पेंशन देगी सरकार

संजय रावत

सरकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन से संबधित उस विसंगति को दूर करना चाहती है जिसके तहत बार से चयनित होने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राज्य न्यायिक सेवाओं से पदोन्नत न्यायाधीशों के मुकाबले कम पेंशन मिलती है। इसके लिए सरकार इन न्यायाधीशों के वेतन और सेवा शर्तों को संचालित करने वाले कानून में संशोधन करने के लिए एक विधेयक लाएगी। संसद के 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में विधि मंत्रालय की इस संबंध में विधेयक लाने की योजना है।

उच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्तें) कानून, 1954 को संशोधित करने का प्रस्ताव उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के एक साल से अधिक समय बाद आया है जिसमें कहा गया था कि इस तरह की खामी को दूर किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार यदि किसी न्यायिक अधिकारी की सेवा को पेंशन तय करने के लिए गिना जाता है तो इस बात का कोई वैध कारण नहीं है कि बार के अनुभव को इस उद्देश्य के लिए क्यों न समान माना जाए। तब उच्चतम न्यायालय ने कहा था, ‘हम याचिकाकर्ताओं के दावे को स्वीकार करते हैं और घोषणा करते हैं कि पेंशन लाभों के लिए अधिवक्ता के रूप में 10 साल की प्रैक्टिस को बार से पदोन्नत न्यायाधीशों के लिए अर्हता सेवा के रूप में माना जाए।’ उच्चतम न्यायालय की यह व्यवस्था 31 मार्च, 2014 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम के नेतृत्व वाली पीठ ने दी थी। पीठ ने यह भी कहा था कि संवैधानिक पद के संदर्भ में ‘वन रैंक वन पेंशन’ मानक होना चाहिए। सरकार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने पीटीआई-भाषा से कहा, संशोधन विधेयक उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर आधारित है...हम सिर्फ फैसले को क्रियान्वित कर रहे हैं।

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TAGS: वन रैंक वन पेंशन, केंद्र सरकार, हाईकोर्ट, जज, सुप्रीम कोर्ट, कानून में संशोधन, One rank one pension, the government, the court, judges, Supreme Court, amendment in the law
OUTLOOK 14 July, 2015
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