राम मंदिर का ताला खुलवाना राजीव का गलत निर्णय था : प्रणब
अपने संस्मरणों पर आधारित पुस्तक में मुखर्जी ने कई ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया है और उनसे जुड़ी अपनी भावनाओं का इजहार किया है। पुस्तक द टर्बुलेंट ईयर्स:1980-1996 में उन्होंने लिखा है, 1989-1991 की अवधि एक ऐसा चरण था जिसमें हिंसा और भारतीय समाज में दुखद रूप से फूट का प्रभुत्व रहा। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और सीमापार आतंकवाद शुरू हुआ, राम जन्मभूमि मंदिर-बाबरी मस्जिद मुद्दे ने देश को हिलाकर रख दिया। अंतत: 21 मई 1991 को अचानक एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव के जीवन का दुखद अंत कर दिया। मुखर्जी ने लिखा कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा को ईंटें एकत्रित करने के लिए देशभर से कार्यकर्ताओं जुटाना और उन्हें एक जुलूस में अयोध्या ले जाए जाने से सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ। पुस्तक का विमोचन उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया है।
राष्र्ट्रपति ने अपनी किताब में लिखा, राम जन्मभूमि मंदिर को एक फरवरी 1986 को खोलना राजीव गांधी का एक और गलत निर्णय था। लोगों को लगता है कि इन कदमों से बचा जा सकता था। मुखर्जी ने उसके बाद किताब में लिखा, बाबरी मस्जिद को गिराया जाना एक पूर्ण विश्वासघाती कृत्य था। एक धार्मिक ढांचे का विध्वंस निरर्थक था और यह पूरी तरह से राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए था। इससे भारत और विदेशों में मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को गहरा आघात लगा। इसने एक सहिष्णु और बहुलतावादी देश के तौर पर भारत की छवि को नष्ट किया। मुखर्जी ने लिखा है कि राजीव गांधी की इसके लिए आलोचना की जाती है कि वे ऐसे कुछ नजदीकी मित्रों एवं सलाहकारों पर अत्यधिक निर्भर रहते थे जिन्होंने तथाकथित बाबालोग की सरकार गठित की और उनमें से कुछ उनके माध्यम से अपना भविष्य संवारने में लगे थे। उन्होंने लिखा कि बोफोर्स मुद्दा लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के खराब प्रदर्शन के कारणों में से एक साबित हुआ। यद्यपि अभी तक उनके खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ है।
मुखर्जी ने आरक्षण का जिक्र करते हुए किताब में लिखा, मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने से समाज में सामाजिक अन्याय कम करने में मदद मिली, हालांकि इसने हमारी जनसंख्या के विभिन्न वर्गों को बांटने के साथ उनका ध्रुवीकरण किया। उन्होंने लिखा कि वी पी सिंह सरकार काे सरकारी नौकरियों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के लिए मंडल आयोग की सिफारिशे लागू करने के फैसले के चलते सिंह एक मसीहा के तौर पर लोकप्रिय हुए। इस कदम ने सामाजिक अन्याय को कम किया लेकिन इसने देश को बांट दिया और उसका ध्रुवीकरण कर दिया।
मुखर्जी ने शाह बानो मामले को याद करते हुए कहा कि शाह बानो और मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक पर राजीव के कदमों की आलोचना हुई और इससे एक आधुनिक व्यक्ति के तौर पर उनकी छवि धूमिल हुई। पांच बच्चों की मां शाह बानो को उसके पति ने 1978 में तलाक दे दिया था। उसने एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जिस पर उच्चतम न्यायालय ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और उसे अपने पति से गुजारा भत्ता का अधिकार हासिल हुआ। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक अधिनियमित कर दिया। कानून का सबसे विवादास्पद प्रावधान यह था कि ये एक मुस्लिम महिला को तलाक के बाद इद्दत की अवधि (करीब तीन महीने) तक ही गुजारे भत्ते का अधिकार देता है। कानून महिला के गुजारे भत्ते की जिम्मेदारी उसके रिश्तेदारों और वक्फ बोर्ड पर डालता है। उस कानून को एक भेदभावपूर्ण कानून के तौर पर देखा गया क्योंकि वह एक मुस्लिम महिला को मूलभूत गुजारे भत्ते के अधिकार से वंचित करता है।
किताब में मुखर्जी ने आगे लिखा है, 1980-1996 के दौरान भारत इन चुनौतियों से मजबूत बनकर उभरा। 1980 के दशक के सुधारों का दायरा सीमित था लेकिन ये 1990 के दशक की व्यवस्थित नीति की कहानी के अग्रगामी थे। कुल मिलाकर उससे देश को समृद्ध लाभांश प्राप्त हुए। उन्होंने लिखा, इस अवधि के दौरान भारत कुछ चुनौतियों पर काबू पाने में सफल रहा, और कुछ के लिए नए रास्ते निकाल सका। ऐसा नहीं था कि उनमें से कुछ चुनौतियां फिर से नहीं उभरेंगी या नई सामने नहीं आएंगी लेकिन हमने उस भारत के विचार को नहीं छोड़ा जो हमारे लिए हमारे संविधान सभा ने छोड़ा था।