विकासशील देशों से उठी आवाज, हमारी दुनिया तुम्हारे बिक्री नेटवर्क के लिए नहीं
विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) की जनरल काउंसिल की बैठक 24 फरवरी को जिनेवा में होने वाली है। इसमें विकासशील देशों में सक्रिय सामाजिक संगठनों की तरफ से यह कोशिश की जा रही है कि वह अपनी-अपनी सरकारों पर यह दबाव बनाए कि इस बैठक में नैरोबी मिनिस्टीरियल घोषणा का विरोध करें। इसके लिए इन तमाम देशों में जिसमें भारत भी शामिल है, बड़ी गोलबंदी चल रही है और बड़ी संख्या में समान आर्थिक विकास, जनोमुखी नीतियों और जन-जंगल-जमीन पर आम नागरिकों के अधिकार के हिमायती संगठन और आंदोलन इस मांग के साथ जुड़ रहे हैं। दुनिया के तमाम हिस्सों में एक ऑनलाइन याचिका पर लोग अपनी सहमति जता रहे है, इसका शीर्षक है-हमारी दुनिया बिक्री के नेटवर्क के लिए नहीं है। यह नैरोबी घोषणापत्र का सीधा विरोध है, जिसके तहत गरीब नागरिकों और विकासशील देशों के खिलाफ नीतियां लागू करने की पृष्ठभूमि तैयार की गई है।
हमारी दुनिया बिक्री के नेटवर्क के लिए नहीं है-वाले पत्र पर तमाम देशों से समर्थन जुटाकर विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में शिरकत करने वाले तमाम प्रतिनिधियों को भेजा जाएगा। इस तरह से नैरोबी घोषणापत्र के खिलाफ व्यापक समर्थन जुटाने की कोशिश की जा रही है। साथ ही यह भी कोशिश हो रही है कि आम लोगों, संगठनों और आंदोनलों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे समझौतों से वाकिफ कराया जाए। जिनेवा में होने वाली बैठक बहुत अहम है क्योंकि इसमें तमाम देशों की तरफ से ऐसे कई मुद्दों पर मुहर लगनी है, जिनका आम नागरिकों पर घातक असर पढ़ सकता है। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले भोजन के अधिकार संगठन, किसान, आदिवासियों, दलितों, छात्रों, महिला अधिकार समूहों का मानना है कि सभी के विकास का मुद्दा (डेवलपमेंट का एजेंडा) बहुत सोची समझी रणनीति के तहत पीछे ढकेला जा रहा है, जो बेहद खतरनाक है। इसका विरोध करने के लिए ही इस पत्र के इर्द-गिर्द लामबंदी हो रही है।
नैरोबी डिक्लेरेशन से सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसमें डेवलपमेंट एजेंडा को छोड़ने की बात कही गई है। इसके तहत गरीबों, किसानों, वंचित समुदायों को मिलने वाली सब्सिडी को कम करने, बाजार के लिए अधिक से अधिक जगह छोड़ने का ब्लू प्रिंट है। लिहाजा, पहले से ही योजनाओं और बजट में हाशिए पर ढकेले गए इन समुदायों के लिए नैरोबी डिक्लेरेशन का विरोध करना और इसमें आम व्यक्ति के विकास के लिए जगह बनाने की कवायद के तौर पर इस पत्र को देखा जा रहा है।