मन की बात में मोदी बोले- पूरा देश केरल के साथ, सशस्त्र बलों के जवान बचाव कार्य के हैं नायक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित होने वाले अपने 'मन की बात' कार्यक्रम के जरिए देशवासियों को संबोधित किया। इस मासिक कार्यक्रम के 47वें संस्करण में उन्होंने केरल आपदा से लेकर ओबीसी आयोग, संसद का मानसून सत्र तीन तलाक पर भी अपनी बात रखी।
पीएम मोदी ने सबसे पहले देशवासियों को आज मनाए जा रहे रक्षाबंधन के पर्व की बधाई दी। उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन का पर्व बहन और भाई के आपसी प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार सदियों से सामाजिक सौहार्द का भी एक बड़ा उदाहरण रहा है। देश के इतिहास में अनेक ऐसी कहानियां हैं, जिनमें एक रक्षा सूत्र ने दो अलग-अलग राज्यों या धर्मों से जुड़े लोगों को विश्वास की डोर से जोड़ दिया था। अभी कुछ ही दिन बाद जन्माष्टमी का पर्व भी आने वाला है। पूरा वातावरण हाथी, घोड़ा, पालकी – जय कन्हैयालाल की, गोविन्दा-गोविन्दा की जयघोष से गूंजने वाला है।
संस्कृत भाषा ज्ञान का भंडार
पीएम ने कहा, “रक्षाबन्धन के अलावा श्रावण पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस भी मनाया जाता है। मैं उन सभी लोगों का अभिनन्दन करता हूं, जो इस महानधरोहर को सह्ज़ने, संवारने और जन सामान्य तक पहुँचाने में जुटे हुए हैं। हर भाषा का अपना माहात्म्य होता है। भारत इस बात का गर्व करता है कि तमिल भाषा विश्व की सबसे पुरानी भाषा है और हम सभी भारतीय इस बात पर भी गर्व करते हैं किवेदकाल से वर्तमान तक संस्कृत भाषा ने भी ज्ञान के प्रचार-प्रसार में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ा ज्ञान का भण्डार संस्कृत भाषा और उसके साहित्य में है। चाहे वह विज्ञान हो या तंत्रज्ञान हो, कृषि हो या स्वास्थ्य हो,गणित हो या मैनेजमेंट हो, अर्थशास्त्र की बात हो या पर्यावरण की हो, कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के मन्त्र हमारे वेदों में विस्तार से उल्लेख है। आप सबको जानकार हर्ष होगा कि कर्नाटक राज्य के शिवमोगा जिले के मट्टूर गाँव के निवासी आज भी बातचीत के लिए संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं।
संस्कृत एक ऐसी भाषा है, जिसमें अनंत शब्दों की निर्मिती संभव है। दो हज़ार धातु, 200 प्रत्यय, यानी suffix, 22 उपसर्ग, यानी परफिक्स और समाज से अनगिनत शब्दों की रचना संभव है और इसलिए किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव या विषय को accurately describe किया जा सकता है और संस्कृत भाषा की एक विशेषता रही है, आज भी हम कभी अपनी बात को ताकतवर बनाने के लिए अंग्रेजी कोटेशन का उपयोग करते हैं। कभी शेर-शायरी का उपयोग करते हैं लेकिन जो लोग संस्कृत शुभाषितों से परिचित हैं, उन्हें पता है कि बहुत ही कम शब्दों में इतना सटीक बयान संस्कृत शुभाषितों से होता है और दूसरा वो हमारी धरती से, हमारी परम्परा से जुड़े हुए होने के कारण समझना भी बहुत आसान होता है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन को किया याद
पीएम मोदी ने कहा, "जैसे जीवन में गुरु का महत्व समझाने के लिए कहा गया है -
एकमपि अक्षरमस्तु, गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत्।
पृथिव्यां नास्ति तद्-द्रव्यं, यद्-दत्त्वा ह्यनृणी भवेत्। अर्थात कोई गुरु अपने शिष्य को एक भी अक्षर का ज्ञान देता है तो पूरी पृथ्वी में ऐसी कोई वस्तु या धन नहीं, जिससे शिष्य अपने गुरु का वह ऋण उतार सके। आने वाले शिक्षक दिवस को हम सभी इसी भाव के साथ मनाएं। ज्ञान और गुरु अतुल्य है, अमूल्य है, अनमोल है। मां के अतिरिक्त शिक्षक ही होते हैं, जो बच्चों के विचारों को सही दिशा देने का दायित्व उठाते हैं और जिसका सर्वाधिक प्रभाव भी जीवन भर नज़र आता है। शिक्षक दिवस के मौक़े पर महान चिन्तक और देश के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को हम हमेशा याद करते हैं। उनकी जन्म जयन्ती को ही पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। मैं देश के सभी शिक्षकों को आने वाले शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ देता हूं। साथ ही विज्ञान, शिक्षा और छात्रों के प्रति आपके समर्पण भाव का अभिनन्दन करता हूं।"
केरल के साथ खड़ा है देश
पीएम मोदी ने कहा, “कठिन परिश्रम करने वाले यह हमारे किसानों के लिए मानसून नयी उम्मीदें लेकर आता है। भीषण गर्मी से झुलसते पेड़-पौधे, सूखे जलाशयोँ को राहत देता है लेकिन कभी-कभी यह अतिवृष्टि और विनाशकारी बाढ़ भी लाता है। प्रकृति की ऐसी स्थिति बनी है कि कुछ जगहों में दूसरी जगहों से ज्यादा बारिश हुई। अभी हम सब लोगों ने देखा। केरल में भीषण बाढ़ ने जन-जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। आज इन कठिन परिस्थितियों में पूरा देश केरल के साथ खड़ा है। हमारी संवेदनाएं उन परिवारों के साथ हैं, जिन्होंने अपनों को गँवाया है, जीवन की जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती लेकिन मैं शोक-संतप्त परिवारों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि सवा-सौ करोड़ भारतीय दुःख की इस घड़ी में आपके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े हैं। मेरी प्रार्थना है कि जो लोग इस प्राकृतिक आपदा में घायल हुए हैं, वे जल्द से जल्द स्वस्थ जो जाएं। मुझे पूरा विश्वास है कि राज्य के लोगों के जज़्बे और अदम्य साहस के बल पर केरल शीघ्र ही फिर से उठ खड़ा होगा।
आपदाएं अपने पीछे जिस प्रकार की बर्बादी छोड़ जाती हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण हैं लेकिन आपदाओं के समय मानवता के भी दर्शन हमें देखने को मिलते हैं। कच्छ से कामरूप और कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर कोई अपने-अपने स्तर पर कुछ-न-कुछ कर रहा है ताकि जहाँ भी आपत्ति आई हो; चाहे केरल हो या हिंदुस्तान के और ज़िले हों और इलाके हो, जन-जीवन फिर से सामान्य हो सके। सभी एज ग्रुप और हर कार्य क्षेत्र से जुड़े लोग अपना योगदान दे रहे हैं। हर कोई सुनिश्चित करने में लगा है कि केरल के लोगों की मुसीबत कम-से-कम की जा सके, उनके दुःख को हम बाँटें। हम सभी जानते हैं कि सशस्त्र बलों के जवान केरल में चल रहे बचाव कार्य के नायक हैं। उन्होंने बाढ़ में फँसेलोगों को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एयर फोर्स हो,नैवी हो, आर्मी हो, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आरएएफ, हर किसी ने राहत और बचाव अभियान में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। मैं एनडीआरएफ के जांबाजों के कठिन परिश्रम का भी विशेष उल्लेख करना चाहता हूं। संकट के इस क्षण में उन्होंने बहुत ही उत्तम कार्य किया है। एनडीआरएफ की क्षमता उनके कमिटमेंट और त्वरित निर्णय करके परिस्थिति को संभालने का प्रयास हर हिन्दुस्तानी के लिए एक नया श्रद्धा का केंद्र बन गया है। कल ही ओणम का पर्व था, हम प्रार्थना करेंगे कि ओणम का पर्व देश को और खासकर केरल को शक्ति दे ताकि वो इस आपदा से जल्द से जल्द उबरें और केरल की विकास यात्रा को अधिक गति मिले। एक बार फिर मैं सभी देशवासियों की ओर से केरल के लोगों को और देशभर के अन्य हिस्सों में जहाँ-जहाँ आपदा आई है, विश्वास दिलाना चाहता हूं कि पूरा देश संकट की इस घड़ी में उनके साथ है।”
अटल जी ने लाया राजनीति में बदलाव
प्रधानमंत्री ने कहा, “16 अगस्त को जैसे ही देश और दुनिया ने अटल जी के निधन का समाचार सुना, हर कोई शोक में डूब गया। एक ऐसे राष्ट्र नेता, जिन्होंने 14 वर्ष पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। एक प्रकार से गत् 10 वर्ष से वे सक्रिय राजनीति से काफ़ी दूर चले गए थे। ख़बरों में कहीं दिखाई नहीं देते थे, सार्वजनिक रूप से नज़र नहीं आते थे। 10 साल का अन्तराल बहुत बड़ा होता है लेकिन 16 अगस्त के बाद देश और दुनिया ने देखा कि हिन्दुस्तान के सामान्य मानवी (मानव)के मन में ये दस साल के कालखंड ने एक पल का भी अंतराल नहीं होने दिया। अटल जी के लिए जिस प्रकार का स्नेह, जो श्रद्धा और जो शोक की भावना पूरे देश में उमड़ पड़ी, वो उनके विशाल व्यक्तित्व को दर्शाती है। पिछले कई दिनों से अटल जी के उत्तम से उत्तम पहलू देश के सामने आ ही गए हैं। लोगों ने उन्हें उत्तम सांसद, संवेदनशील लेखक, श्रेष्ठ वक्ता, लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में याद किया है और करते हैं। सुशासन यानी सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए यह देश सदा अटल जी का आभारी रहेगा लेकिन मैं आज अटल जी के विशाल व्यक्तित्व का एक और पहलू, उसे सिर्फ स्पर्श करना चाहता हूँ और यह अटल जी ने भारत को जो राजनीति संस्कृति दिया,राजनीति संस्कृति में जो बदलाव लाने का प्रयास किया, उसको व्यवस्था के ढांचे में ढालने का प्रयास किया और जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला है। ये भी पक्का है। भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किये।
पहला ये कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15% तक सीमित किया गया।
दूसरा ये कि दल-बदल विरोधी क़ानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किये गए।
कई वर्षों तक भारत में भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े जम्बो मंत्रिमंडलकार्य के बँटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। अटल जी ने इसे बदल दिया। उनके इस कदम से पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई। यह अटल जी जैसे दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को 5 बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में पार्लियामेंट शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम 5 बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया। ‘एक और आज़ादी’ अटल जी के कार्यकाल में ही इंडियन फ्लैग कोड बनाया गया और 2002 में इसे अधिकारित कर दिया गया। इस कोड में कई ऐसे नियम बनाए गए हैं, जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के चलते अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने हमारे प्राणप्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब लाया। आपने देखा ! किस तरह अटल जी ने देश में चाहे चुनाव प्रक्रिया हो और जनप्रतिनिधियों से सम्बंधित जो विकार आए थे,उनमें साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए। इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी। उनके समृद्ध और विकसित भारत के सपने को पूरा करने का संकल्प दोहराते हुए मैं हम सबकी ओर से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।”
दलहित से ऊपर उठकर सभी सांसदों ने मानसून सत्र बनाया सफल
प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद की आजकल चर्चा जब होती है तो अक्सर रुकावट, हो-हल्ला और गतिरोध के विषय में ही होती है लेकिन यदि कुछ अच्छा होता है तो उसकी चर्चा इतनी नहीं होती। अभी कुछ दिन पहले ही संसद का मानसून सत्र समाप्त हुआ है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि लोकसभा की उत्पादकता 118% और राज्यसभा की 74% रही। दलहित से ऊपर उठकर सभी सांसदों ने मानसून सत्र को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया और इसी का परिणाम है कि लोकसभा ने 21 विधेयक और राज्यसभा ने 14 विधेयकों को पारित किया। संसद का ये मानसून सत्र सामाजिक न्याय और युवाओं के कल्याण के सत्र के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। इस सत्र में युवाओं और पिछड़े समुदायों को लाभ पहुँचाने वाले कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया गया। आप सबको पता है कि दशकों से एससी एसटी आयोग की तरह ही ओबीसी आयोग बनाने की मांग चली आ रही थी। पिछड़े वर्ग के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए देश ने इस बार ओबीसी आयोग बनाने का संकल्प पूरा किया और उसको एक संवैधानिक अधिकार भी दिया। यह कदम सामाजिक न्याय के उद्देश्य को आगे ले जाने वाला सिद्ध होगा। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए संशोधन विधेयक को भी पास करने का काम इस सत्र में हुआ। यह कानून SC और ST समुदाय के हितों को और अधिक सुरक्षित करेगा। साथ ही यह अपराधियों को अत्याचार करने से रोकेगा और दलित समुदायों में विश्वास भरेगा।
देश की नारी के खिलाफ अन्याय बर्दास्त नहीं
पीएम मोदी ने कहा कि देश की नारी शक्ति के खिलाफ़ कोई भी सभ्य समाज किसी भी प्रकार के अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर सकता। बलात्कार के दोषियों को देश सहन करने के लिए तैयार नहीं है, इसलिए संसद ने आपराधिक कानून संशोधन विधेयक को पास कर कठोरतम सज़ा का प्रावधान किया है। दुष्कर्म के दोषियों को कम-से-कम 10 वर्ष की सज़ा होगी, वहीँ 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से रेप करने पर फांसी की सज़ा होगी। कुछ दिन पहले आपने अख़बारों में पढ़ा होगा मध्य प्रदेश के मंदसौर में एक अदालत ने सिर्फ़ दो महीने की सुनवाई के बाद नाबालिग़ से रेप के दो दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनाई है। इसके पहले मध्य प्रदेश के कटनी में एक अदालत ने सिर्फ़ पाँच दिन की सुनवाई के बाद दोषियों को फांसी की सज़ा दी। राजस्थान ने भी वहाँ की अदालतों ने भी ऐसे ही त्वरित निर्णय किये हैं। यह कानून महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ़ अपराध के मामलों को रोकने में प्रभावी भूमिका निभायेगा। सामाजिक बदलाव के बिना आर्थिक प्रगति अधूरी है। लोकसभा में तीन तलाक़ बिल को पारित कर दिया गया; हालाँकि राज्यसभा के इस सत्र में संभव नहीं हो पाया है। मैं मुस्लिम महिलाओं को विश्वास दिलाता हूँ कि पूरा देश उन्हें न्याय दिलाने के लिए पूरी ताक़त से साथ खड़ा है। जब हम देशहित में आगे बढ़ते हैं तो ग़रीबों, पिछड़ों, शोषितों और वंचितों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। मानसून सत्र में इस बार सबने मिलकर एक आदर्श प्रस्तुत कर दिखाया है।
एशियन गेम्स में मेडल जीतने वालों में बढ़ी संख्या में हमारी बेटियां शामिल
मोदी ने कहा, “इन दिनों करोड़ों देशवासियों का ध्यान जकार्ता में हो रहे एशियन गेम्स पर लगा हुआ है। मैं देश के लिए मेडल जीतने वाले सभी खिलाड़ियों को बधाई देना चाहता हूँ। उन खिलाड़ियों को भी मेरी बहुत-बहुत शुभकामना है, जिनकी स्पर्धाएं अभी बाकी हैं। भारत के खिलाड़ी विशेषकर शूटिंग और रेसलिंग में तो उत्कृष्ट प्रदर्शन कर ही रहे हैं लेकिन हमारे खिलाड़ी उन खेलों में भी पदक ला रहे हैं, जिनमें पहले हमारा प्रदर्शन इतना अच्छा नहीं रहा है, जैसे वुशु और रोविंग जैसे खेल- ये सिर्फ़ पदक नहीं हैं- प्रमाण हैं - भारतीय खेल और खिलाड़ियों के आसमान छूते हौसलों और सपनों का। देश के लिए मेडल जीतने वालों में बढ़ी संख्या में हमारी बेटियाँ शामिल हैं और ये बहुत ही सकारात्मक संकेत है - यहाँ तक कि मेडल जीतने वाले युवा खिलाड़ियों में 15-16 साल के हमारे युवा भी हैं। यह भी एक बहुत ही अच्छा संकेत है कि जिन खिलाड़ियों ने मेडल जीते हैं, उनमें से अधिकतर छोटे कस्बों और गाँव के रहने वाले हैं और इन लोगों ने कठिन परिश्रम से इस सफ़लता को अर्जित किया है।
29 अगस्त को हम ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ मनायेंगे इस अवसर पर मैं सभी खेल प्रेमियों को शुभकामनाएँ देता हूँ, साथ ही हॉकी के जादूगर महान खिलाड़ी श्री ध्यानचंद जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
मैं देश के सभी नागरिकों से निवेदन करता हूँ कि वे ज़रूर खेलें और अपनी फिटनेस का ध्यान रखें क्योंकि स्वस्थ भारत ही संपन्न और समृद्ध भारत का निर्माण करेगा। जब इंडिया फिट होगा तभी भारत के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होगा। एक बार फिर मैं एशियन गेम्स में पदक विजेताओं को बधाई देता हूँ साथ ही बाकी खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन की कामना करता हूं।”
भारत की भूमि रही है इंजीनियरिंग की प्रयोगशाला
पीएम मोदी ने कहा कि हम सभी ने ईंट-पत्थरों से घरों और ईमारतों को बनते देखा है लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि लगभग बारह-सौ साल पहले एक विशाल पहाड़ को जो कि सिर्फ सिंगल स्टोन वाला पहाड़ था, उसे एक उत्कृष्ट, विशाल और अद्भुत मंदिर का स्वरूप दे दिया गया - शायद कल्पना करना मुश्किल हो,लेकिन ऐसा हुआ थाऔर वो मंदिर है-महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर। अगर कोई आपको बताए कि लगभग हज़ार वर्ष पूर्व ग्रेनाइट का 60 मीटर से भी लम्बा एक स्तंभ बनाया गया और उसके शिखर पर ग्रेनाइट का करीब 80 टन वज़निक एक शिलाखंड रखा गया - तो क्या आप विश्वास करेंगे ! लेकिन, तमिलनाडु के तंजावुर काबृहदेश्वर मंदिर वह स्थान है, जहां स्थापत्य कला और इंजीनियरिंग के इस अविश्वनीय मेल को देखा जा सकता है। गुजरात के पाटण में 11वीं शताब्दी की रानी की वाव देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। भारत की भूमि इंजीनियरिंग की प्रयोगशाला रही है। भारत में कई ऐसे इंजीनियर हुये, जिन्होनें अकल्पनीय को कल्पनीय बनाया और इंजीनियरिंग की दुनिया में चमत्कार कहे जाने वाले उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। महान इंजीनियर्स की हमारी विरासत में एक ऐसा रत्न भी हमें मिला, जिसके कार्य आज भी लोगों को अचम्भित कर रहे हैं और वह थे भारत रत्न डॉ. एम. विश्वेश्वरय्या। कावेरी नदी पर उनके बनाए कृष्णराज सागर बांध से आज भी लाखों की संख्या में किसान और जन-सामान्य लाभान्वित हो रहे हैं। देश के उस हिस्से में तो वह पूज्यनीय है हीं, बाकी पूरा देश भी उन्हें बहुत ही सम्मान और आत्मीयता के साथ याद करता है। उन्हीं की याद में 15 सितम्बर को अभियंता दिवस के रूप में बनाया जाता है। उनके पद चिन्हों पर चलते हुए हमारे देश के इंजीनियर पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। इंजीनियरिंग की दुनिया के चमत्कारों की बात जब मैं करता हूं, तब मुझे आज 2001 में गुज़रात में कच्छ में जो भयंकर भूकंप आया था, तब की एक घटना याद आती है। उस समय मैं एक volunteer के रूप में वहाँ काम करता था तो मुझे एक गाँव में जाने का मौका मिला और वहाँ मुझे 100 साल से भी अधिक आयु की एक माँ से मिलने का मौका मिला और वह मेरी तरफ देखकर के हमारा उपहास कर रही थी, और वह कह रही थी, देखो यह मेरा मकान है - कच्छ में उसको भूंगा कहते हैं –बोली,इस मेरे मकान ने 3-3 भूकंप देखे हैं। मैनें स्वयं ने 3 भूकंप देखे हैं। इसी घर में देखे हैं। लेकिन कहीं पर आपको कोई भी नुकसान नज़र नहीं आया। येघर हमारे पूर्वजों ने यहाँ की प्रकृति के अनुसार, यहाँ के वातावरण के अनुसार बनाए थे और यह बात वह इतने गर्व से कह रही थी तो मुझे यही विचार आया कि सदियों पहले भी हमारे उस कालखंड के इंजीनियरों ने स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कैसी रचनाएं की थी कि जिसके कारण जन-सामान्य सुरक्षित रहता था। अब जब हमें स्थान-स्थान पर वर्कशॉप करने चाहिए। बदले हुए युग में हमनें किन-किन नई चीज़ों को सीखना होगा? सिखाना होगा? जोड़ना होगा? आजकल डिजास्टर मैनेजमेंट एक बहुत बड़ा काम हो गया है। प्राकृतिक आपदाओं से विश्व जूझ रहा है। ऐसे में structural engineeringका नया रूप क्या हो? उसके कोर्स क्या हों? विद्यार्थी को क्या सिखाया जाए। जीरो वेस्ट यह हमारी प्राथमिकता कैसे बने?