एस जयशंकर विदेश मंत्री बनने वाले पहले नौकरशाह
नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद में पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को शामिल किया जाना सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा। अब इस नाम की काफी चर्चा हो रही है। अनुभवी राजनयिक जयशंकर चीन और अमेरिका के साथ बातचीत में भारत के प्रतिनिधि थे। अब एस जयशंकर विदेश मंत्रालय का जिम्मा मिला है।
पद्मश्री से सम्मानित भारतीय राजनयिक जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक देश के विदेश सचिव रहे। उन्होंने चीन के साथ बातचीत के माध्यम से डोकलाम गतिरोध को हल करने में सहायता की थी। जयशंकर को यह महत्वपूर्ण दायित्व उस समय दिया गया है जब करीब 16 महीने पहले ही वे विदेश सेवा से सेवानिवृत हुए हैं। उनके समक्ष विश्व स्तर खासकर जी..20, शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स संगठन जैसे वैश्चिक मंचों पर भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की उम्मीदों को अमल में लाने की जिम्मेदारी भी रहेगी।
64 वर्षीय जयशंकर न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा के सदस्य हैं । उनके नेतृत्व में मंत्रालय के अफ्रीकी महाद्वीप के साथ सहयोग प्रगाढ़ बनाने पर जोर देने की उम्मीद है जहां चीन तेजी से प्रभाव बढ़ा रहा है।
नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद में पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को शामिल किया जाना चौंकाने वाला रहा।
दिल्ली में जन्म, जेएनयू में शिक्षा
देश के प्रमुख सामरिक विश्लेषकों में से एक दिवंगत के . सुब्रमण्यम के पुत्र का पूरा नाम सुब्रह्मण्यम जयशंकर है। जयशंकर का जन्म 15 जनवरी 1957 को दिल्ली में हुआ। वह जाने-पहचाने इतिहासकार संजय सुब्रह्मण्यम और भारत के पूर्व ग्रामीण विकास सचिव एस. विजय कुमार के भाई हैं। परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं। फिलहाल जयशंकर टाटा समूह के वैश्विक कॉर्पोरेट मामलों के प्रमुख हैं। जयशंकर 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं। जयशंकर उन राजनयिकों में से हैं, जिन्हें चीन, अमेरिका और रूस तीनों ही मुल्कों में काम करने का अनुभव है। सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक जयशंकर ने राजनीति विज्ञान में एमए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल की है। जयशंकर को 2019 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
जब बने थे विदेश सचिव, आई थी तीखी प्रतिक्रिया
जनवरी 2015 में जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया गया था और सुजाता सिंह को हटाने के सरकार के फैसले के समय को लेकर विभिन्न तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। जयशंकर अमेरिका और चीन में भारत के राजदूत के पदों पर भी काम कर चुके हैं।
डोकलाम गतिरोध को हल करने में भूमिका
1977 बैच के आईएफएस अधिकारी जयशंकर ने लद्दाख के देपसांग और डोकलाम गतिरोध के बाद चीन के साथ संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जयशंकर सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त और चेक गणराज्य में राजदूत पदों पर भी काम कर चुके हैं।
मनमोहन सरकार के समय रहे चर्चित
जयशंकर ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत करने वाली भारतीय टीम के एक प्रमुख सदस्य थे। इस समझौते के लिए 2005 में शुरुआत हुई थी और 2007 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार ने इस पर दस्तखत किए थे।