व्यंग्य और हाजिरजवाबी थी चो की सबसे बड़ी खासियत
प्यार से उन्हें चो बुलाया जाता था और मुद्दों पर हमेशा वे अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने किसी राजनेता को आलोचना से बचकर नहीं जाने दिया और अपनी आलोचना की धार को कभी कुंद नहीं पड़ने दिया ओैर कभी लाग लपेट कर बातें नहीं कीं।
नेताओं की कड़ी आलोचना करने के बावजूद चो बड़ी बड़ी दिग्गज राजनीतिक हस्तियों के साथ बेहद सहज तरीके से पेश आते थे लेकिन इसके बावजूद वे समय की मांग पर कभी भी उनके खिलाफ उंगली उठाने से नहीं चूके।
हालांकि सीमाएं खींचने में वह माहिर थे लेकिन उन्होंने राजनीतिक और अन्य मतभेदों को अपनी निजी जिंदगी से दूर रखा और इसने उन्हें न केवल सम्मान दिलाया बल्कि राजनीतिक नेताओं के भी वे चहेते बन गए थे और उनके मुरीदों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर तमिलनाडु के दिग्गज एम करूणानिधि और जे जयललिता भी शामिल थे।
पेशे से वकील चो थियेटर, सिनेमा और पत्रकारिता का एक लोकप्रिय नाम थे। आपातकाल के दौरान उन्होंने व्यवस्था का विरोध किया था। उन्होंने 1971 की मोहम्मद बिन तुगलक फिल्म की कहानी लिखने के साथ ही उसमें अभिनय भी किया था जो उस समय के राजनीतिक हालात को केंद्र में बनाकर लिखी गयी थी।
चो के धारदार डायलाग और मुद्दों के आलोचनात्मक चित्रण ने तमिल सिनेमा में एक छाप छोड़ी। उन्होंने अधिकतर कामेडी भूमिकाएं कीं लेकिन कभी-कभी उन्होंने गंभीर भूमिकाएं भी अदा की। उन्होंने रजनीकांत और कमल हासन समेत एमजी रामचंद्रन तथा शिवाजी गणेशन जैसी महान हस्तियों के साथ भी कई फिल्में कीं।
अपनी फिल्मी भूमिकाओं में चो कभी भी राजनीति पर व्यंग्य कसने का मौका नहीं जाने देते थे। राजनीति पर उनके चुटकुले और व्यंग्य की टाइमिंग इतनी सही होती थी कि दर्शक हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते थे।
चो ने कई नाटकों के साथ ही कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी।
1970 में शुरू की गयी उनकी पत्रिका तुगलक का सवाल जवाब पेज आलोचनात्मक दृष्टि लिए हुए था जो हास्य व्यंग्य के लिए पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय थी। बाद में वह इसे सीधे जनता के बीच ले गए और इसे वार्षिक आयोजन का रूप दे दिया जहां वह दर्शकों से सीधे सवाल पूछकर उसके हास्य से भरपूर जवाब देते थे। इन समारोहों में मोदी, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, रजनीकांत तथा और भी जाने-माने नाम शामिल हो चुके थे।
राज्य की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका रखने वाले चो के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 1996 में द्रमुक और जीके मूपनार की अगुवाई वाली तमिल मनीला कांग्रेस को एक-दूसरे के करीब लाने में बड़ी भूमिका अदा की। इस गठबंधन को रजनीकांत का भी समर्थन हासिल था। इस गठबंधन ने चुनाव में अन्नाद्रमुक को सत्ता से बाहर कर दिया था।
हालांकि सालों बाद चो द्रमुक के सर्वाधिक कड़े आलोचक बन गए और वर्ष 2011 के चुनाव में उन्होंने पूरी मजबूती के साथ जयललिता का समर्थन किया। उस समय द्रमुक चुनाव में बुरी तरह हार गयी। वह 1999 से 2005 के बीच राज्यसभा सदस्य भी रहे।
भाषा