अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संस्कृत, उर्दू, फारसी और फ्रेंच पुस्तकों का भी संदर्भ लिया
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर अपने फैसले में इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व और धर्म से जुड़ी संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फारसी , तुर्की, फ्रेंच और अंग्रेजी की पुस्तकों का भी संदर्भ लिया है लेकिन उसने नतीजा निकालने में यह अत्यंत सावधानी बरती है कि इतिहास की व्याख्या करना खतरनाक हो सकता है।
शिलालेखों से यात्रा वृतांत तक सब कुछ खंगाला
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की बेंच ने धार्मिक व्याख्यान, यात्रा वृत्तांत, पुरातात्विक उत्खनन रिपोर्ट, बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले के फोटो और विवादित स्थल के नीचे मिले अवशेषों सहित तमाम दस्तावेजों पर बारीकी से गौर किया। इन दस्तावेजों में गजेटियर और स्तंभों पर उकेरी गई लिखावट के अनुवादों का विश्लेषण किया। कोर्ट ने 10 जनवरी 2019 को अपने रजिस्ट्री ऑफिस को दस्तावेजों का निरीक्षण करने और जरूरत होने पर अनुवादक लगाने का निर्देश दिया था।
लेकिन नतीजा निकालने में बरती सावधानी
हालांकि कोर्ट ने ऐतिहासिक संदर्भों का परिणाम निकालने में बहुत सावधानी बरती। उसका कहना है कि इनकी व्याख्या करने में गलतियां हो सकती हैं। बेंच ने अपने 1045 पेजों के फैसले में कहा कि एतिहासिक रिकॉर्ड में स्पष्ट अंतराल है। हमने बाबरनामा में यह देखा है। अनुवादों में भिन्नता है और उनकी सीमाएं हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों में जो तथ्य उल्लिखित नहीं है, उसके बारे में अदालत को नकारात्मक अनुमान लगाने में बहुत सावधान रहना होगा।
गलत अनुमान होने का एहसास था कोर्ट को
अदालत ने आगे कहा कि इतिहास की विशेषज्ञता की मदद के बिना इसकी व्याख्या करना खतरनाक है। फैसले में कहा गया कि हम एक कानून या दलील नहीं मान रहे हैं। हम कथाओं, कहानियों, परंपराओं और सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में उल्लेखों से बुनी हुई ऐतिहासिक घटनाओं पर गौर कर रहे हैं। इतिहास की विशेषज्ञता की सहायता के बिना व्याख्या करना खतरनाक है। फैसले में अदालत ने कहा कि ऐतिहासिक संदर्भों से नतीजे निकालने और व्याख्या करने के लिए विधिक सिद्धांतों का इस्तेमाल करना जोखिम भरा काम है।
हाई कोर्ट में पेश रिपोर्ट पर भी गौर किया
फैसले के अनुसार 7 फरवरी 2002 को पांच नंबर के केस में याचिकाओं के वकील ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अयोध्या विष्णु हरि मंदिर के शिलालेख संबंधित एक रिपोर्ट पेश की थी। कोर्ट के आदेश पर ई-स्टांपेज तैयार की गई और पुरालेखवेत्ता के द्वारा इसे समझा गया। अदालत ने मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में 16वीं सदी में लिखी गई आइने-अकबरी के अनुवाद का भी संदर्भ लिया।