जस्टिस जोसेफ की वरिष्ठता का मामला, सुप्रीम कोर्ट के नाराज जजों ने सीजेआई से की मुलाकात
केन्द्र सरकार द्वारा उत्तराखंड हाई कोर्ट के जज जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट भेजने के कोलेजियम के फैसले पर मुहर लगाने के बाद यह विवाद कुछ वक्त के लिए जरूर शांत हुआ था, लेकिन इस नियुक्ति को लेकर अब एक और विवाद शुरू हो गया है। केंद्र सरकार ने जस्टिस जोसेफ की वरिष्ठता घटा दी है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई जज और यहां तक कि कोलेजियम के कुछ सदस्य भी नाराज हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज और कोलेजियम के सदस्यों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा से सोमवार को मुलाकात की है। इस दौरान ये लोग सीजेआई के सामने इस फैसले को लेकर अपनी असंतुष्टि जाहिर की। केंद्र ने अपने नोटिफिकेशन में जस्टिस जोसेफ का नाम तीसरे नंबर पर रखा है। सर्वोच्च न्यायालय के सूत्रों का कहना है कि सीजेआई ने न्यायाधीशों को आश्वासन दिया है कि वह इस मामले को देखेंगे और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्यों से परामर्श लेंगे।
गौरतलब है कि जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट भेजे जाने के निर्णय को लेकर पिछले छह महीने से कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक टकराव देखने को मिल रहा था। केंद्र ने जस्टिस जोसेफ के साथ मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी और ओडिशा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के लिए विनीत सरन के नाम की अनुशंसा की फाइल क्लियर कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में कोलेजियम ने 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश की थी। इसके दो दिनों बाद ही सुप्रीम कोर्ट में अभूतपूर्व विरोध देखने को मिला था।
12 जनवरी को कोलेजियम के चार अन्य सदस्य जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने सीजेआई के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था। केंद्र ने 30 अप्रैल को जस्टिस जोसेफ पर कोलेजियम की सिफारिश को लौटा दिया था। केंद्र ने अनुभव का मसला उठाते हुए तर्क दिया था कि जस्टिस जोसेफ वरीयता क्रम में देश में 42वें स्थान पर आते हैं। ऐसे में उन्हें सुप्रीम कोर्ट भेजना हाई कोर्ट के दूसरे वरिष्ठ जजों की वैध उम्मीदों के लिहाज से ठीक नहीं होगा।
केंद्र ने यह भी कहा था कि सर्वोच्च न्यायपालिका में एससी/एसटी समुदाय का भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
दरअसल, जस्टिस जोसेफ के नाम पर केंद्र की आपत्ति को उनके उत्तराखंड चीफ जस्टिस के तौर पर सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को खारिज करने से जोड़ कर देखा जा रहा था। जस्टिस जोसेफ की पीठ के इस निर्णय के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। इसके बाद कांग्रेस की हरीश रावत सरकार की वापसी हुई थी।