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20 February 2016

एक्सक्लूसिव-- सिलिकोसिस पीड़ितों को सुप्रीम कोर्ट से थोड़ी आस, गुजरात को फटकार

समरुख धारा

गुजरात और मध्यप्रदेश में हजारों की तादाद में सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ितों को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से थोड़ी राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे यह जानकारी मांगी की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के बावजूद कौन-कौन सी फैक्टरियां (गुजरात और मध्य प्रदेश) में सिलिकोसिस को फैलने से रोकने के उपाय नहीं कर रही। आउटलुक की पड़ताल में यह सामने आया है कि अब तक 600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 2000 के करीब लोग इससे पीड़ित हैं।

मध्य प्रदेश के सिलोकोसिस पीड़ित संघ द्वारा वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका की लंबे अंतराल के बाद हुई सुनवाई में और उसमें अदालत ने गुजरात सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वह इतने सालों से सिलोकोसिस पर चल रही सुनवाई में जवाब क्यों नहीं दे रही और क्यों नहीं रिपोर्ट पेश कर रही। इस मामले में अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आपत्तियों को गुजरात सरकार तुरंत संज्ञान ले नहीं तो अगली सुनवाई में एकतरफा फैसला सुना दिया जाएगा।

इस बारे में जन स्वास्थ्य अभियान के याचिकर्ता अमूल्य निधि ने आउटलुक को बताया कि गुजरात और मध्य प्रदेश में लाखों लोग क्वार्टज कारखानों में काम करे और पत्थर तोड़ने से सलिकोसिस से पीड़ित हो रहे है। इस जानलेवा बीमारी में उनके फेफड़ों में सिलिका धूल घुस जाती है और वे बीमार होकर मर जाते हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मामले की जांच की और गुजरात तथा मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों को 238 मृत लोगों के परिजनों को 3 लाख रुपयेमुआवजा देने का आदेश किया। इसके साथ ही एनएचआरसी ने सिलिकोसिस से गंभीर रूप से पीड़ित 304 लोगों के पुनर्वास का भी जानकारी दी। सीपीसीबी ने भी गुजरात के गोधरा में स्थित क्वार्टज उद्योगों से प्रदूषण के कारण सिलिकोसिस की जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण बोर्ड की इसी रिपोर्ट पर वर्ष 2007 से लेकर आज तक इन कारखानों पर की गई कार्रवाई और एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। 

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TAGS: सिलिकोसिस, मध्य प्रदेश, गुजरात, सुप्रीम कोर्ट, मौतें, siliscosis, victim
OUTLOOK 20 February, 2016
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