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17 June 2016

न्‍याय की पराकाष्‍ठा, आखिरकार 92 साल के व्यक्ति को जाना पड़ेगा जेल

गूगल

न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अवकाशकालीन पीठ ने उस व्यक्ति के उस आवेदन को खारिज कर दिया जिसके जरिए उसने स्वास्थ्य आधार पर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने से छूट देने की मांग की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनउ पीठ ने उसे पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था। उच्च न्यायालय ने 24 फरवरी को उत्तर प्रदेश निवासी पुट्टी की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था और उसे पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था। दोषी ने अधिवक्ता दीपेष द्विवेदी के माध्यम से उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की थी और फैसले को अतर्कसंगत और त्रुटिपूर्ण बताया था, जिसमें उनकी अधिक उम्र पर विचार नहीं किया गया।
पुट्टी मामले में सह आरोपी फेक्का और स्नेही का चचेरा भाई है। स्नेही की उच्च न्यायालय के समक्ष मामले में अपील लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी। उन्होंने 22 अगस्त 1980 को नन्हकू की हत्या कर दी थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार घटना से तकरीबन नौ महीने पहले नन्हकू का भाई सोहन फेक्का की विवाहित बेटी के साथ फरार हो गया था। इसकी वजह से स्नेही और पुट्टी को नन्हकू और अन्य के प्रति नाराजगी थी। निचली अदालत ने 28 मई 1982 को फेक्का, स्नेही और पुट्टी को आईपीसी की धारा 302 (हत्या),  धारा 34 (समान आशय) के लिए दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सभी तीन दोषियों ने उच्च न्यायालय में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की थी। उस दौरान फेक्का और स्नेही की मृत्यु हो गई। तकरीबन 34 साल बाद उच्च न्यायालय ने 24 फरवरी 2016 को उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा था और सजा सुनाई थी और अपीलों को खारिज किया था।

 

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TAGS: 92-year-old 'bed ridden' man, convicted, honour killing case, jail, Supreme Court झूठी शान, हत्या, जेल, उच्चतम न्यायालय, आजीवन कारावास
OUTLOOK 17 June, 2016
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