सबरीमाला केस: धार्मिक विश्वास और महिला अधिकारों को लेकर 9 जजों की पीठ गुरुवार को करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित दायर याचिका पर अब गुरुवार (6 फरवरी) को सुनवाई करेगी। आज कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कोर्ट को कहा कि इस तरह के मामले को चैंबरों में ही सुना जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि यदि खुली अदालत में प्रासंगिक हो, तो प्रश्नों और अन्य मुद्दों की रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता नहीं है। अब संवैधानिक पीठ मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना और गैर-पारसी पुरूषों से शादी कर चुकी पारसी महिलाओं के पवित्र अग्नि स्थल में प्रवेश पर रोक से संबंधित मुद्दों पर विचार करेगी। इससे पहले बीते गुरुवार को चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा था कि अदालत इस मामले की जांच करेगी और धार्मिक विश्वास और महिला अधिकारों के मुद्दों के मद्देनजर न्यायिक समीक्षा करेगी। बता दें कि कोर्ट सितंबर 2018 में सबरीमाला मंदिर पर दिए फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने की अनुमति दी गई थी।
तय की थी अवधि
इससे पहले, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) ने सबरीमाला मंदिर, मस्जिदों और पारसी धर्म स्थलों में महिलाओं के प्रवेश की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए 10 दिन का समय तय किया था। कोर्ट ने 13 जनवरी को कहा था कि वह केवल सबरीमाला मंदिर मामले में बीते साल नवंबर में दिए फैसले से संदर्भित प्रश्नों को ही सुनेगा, जिसने सभी आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों को केरल में धर्मस्थल पर जाने की अनुमति दी थी।
‘सिर्फ मंदिर तक ही सीमित नहीं’
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि पूजा स्थलों में महिलाओं का प्रवेश केवल सबरीमाला मंदिर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मुस्लिम और पारसी महिलाओं को धार्मिक प्रथा में प्रवेश से वंचित करने जैसे मुद्दे भी शामिल हैं।
खत्म हुई थी पुरानी परंपरा
कोर्ट ने सितंबर 2018 में हर उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति पर सुनवाई करते हुए 4:1 के बहुमत से महिलाओं के पक्ष में फैसले ने दशकों पुराने प्रतिबंधों को खत्म कर दिया था। पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर ने महिलाओं के पक्ष में एक मत से फैसला सुनाया था जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था। जिसके बाद पूरे केरल में इस आदेश का विरोध किया गया। जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने इस मामले पर सबरीमाला मंदिर के पक्ष में अपना फैसला देते हुए कहा था कि धार्मिक आस्थाओं को आर्टिकल 14 के आधार पर नहीं मापा जा सकता है। आगे उन्होंने कहा था कि कि आस्था से जुड़े मामले को कोर्ट की बजाय समाज को ही तय करना चाहिए।