स्वाइन फ्लू के शिकारों की संख्या 485 पहुंची
महाराष्ट्र में हालात बिगड़ गए हैं। महाराष्ट्र में इस साल स्वाइन फ्लू से अब तक 58 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि मध्य प्रदेश में सरकारी आकंड़ों के हिसाब से 56 लोग मर चुके हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में तो रविवार को एक दिन में आठ लोगों की मौत स्वाइन फ्लू से हुई है। उत्तराखंड से भी फ्लू से 2 लोगों के मरने की ख़बर है।
बीमारी पर अंकुश के सभी सरकारी प्रयास नाकाम साबित हो रहे हैं। दिल्ली में तो बीमारी की दवा टेमीफ्लू का स्टॉक खत्म होने की भी खबर है और बताया जा रहा है कि राजस्थान से दवा मंगाने की तैयारी की जा रही है। बीमारी के डर से देश के पर्यटन उद्योग को हजारों करोड़ का नुकसान होने की आशंका भी जताई जा रही है। मौसम में ठंड कम होने के बावजूद बीमारी के काबू में न आने को लेकर अब घबराहट फैलने लगी है।
आमतौर पर गर्मी बढ़ने के साथ स्वाइन फ्लू के लिए जिम्मेदार एच1एन1 इंफ्लूएंजा वायरस का असर कम होने लगता है और बीमारी नियंत्रण में आ जाती है मगर इस साल अबतक ऐसा नहीं हो रहा है। सरकारी स्तर पर इंतजामों की स्थिति का आकलन इसी बात से हो सकता है कि मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य में सिर्फ दो प्रयोगशालाओं में स्वाइन फ्लू की जांच की सुविधा है। जबलपुर और ग्वालियर में काम कर रहे इन केंद्रों में कई बार जांच का नतीजा आने से पहले देर हो चुकी होती है।
वर्ष 2009 से देश में पैर पसार रहा एच1एन1 फ्लू (स्वाइन फ्लू) वायरस इस वर्ष अपने भीषण रूप में सामने आया है। पूरे देश में अबतक करीब 6 हजार लोग इस वायरस के शिकार हो चुके हैं। खास बात यह है कि पिछले 6 वर्षों में इस वायरस का प्रभाव देश के जिन राज्यों तक नहीं हुआ था इस वर्ष उन सभी राज्यों में भी बड़ी संख्या में लोग इसके शिकार हो रहे हैं। इस वायरस के बारे में आम धारणा यह है कि इसे फैलने के लिए ठंडी आबोहवा की जरूरत होती है। इसी वजह से पिछले वर्षों में यह बीमारी दिल्ली और पुणे जैसे शहरों में ज्यादा असर दिखाती रही है जबकि इस वर्ष इसका फैलाव दक्षिण भारत के चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और गुजरात एवं राजस्थान के अपेक्षाकृत गर्म शहरों में भी देखा जा रहा है।
तेलंगाना में मृतकों की संख्या 15 फरवरी तक 46 हो चुकी थी जबकि घोषित मरीजों की संख्या 1068 पहुंच चुकी थी। इस बीमारी से तमिलनाडु में 118 पीड़ित और 8 की मौत, कर्नाटक में 113 मरीज और 8 मौतें, उत्तर प्रदेश में 105 मरीज और 7 मौतें, दिल्ली में 1189 मरीज और 6 मौतें इस वर्ष इस बीमारी से हो चुकी है। तेलंगाना में इस बीमारी के इतने गंभीर प्रसार के पीछे इस वर्ष मौसम को भी एक कारक बताया जा रहा है। वहां पिछले दो दशक की सबसे अधिक ठंड इस वर्ष पड़ी है और पारा एक अंक में पहुंच गया है। इसके कारण वहां वायरस को पनपने का मौका मिल गया।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव बी.पी. शर्मा ने उच्च स्तरीय बैठक कर पूरे देश में स्वाइन फ्लू इंफ्लूएंजा वायरस के फैलाव की जानकारी ली है और इससे निबटने की रूपरेखा तैयार की। अब इस बीमारी का इलाज करने वाले संस्थानों में स्वास्थ्य कर्मियों का टीकाकरण करने की बात भी कही जा रही है।
इस बीमारी के बारे में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मेडिसीन विभाग के पूर्व चिकित्सक और वर्तमान में दिल्ली के फोर्टिस सी डॉक सेंटर के एडिशनल डायरेक्टर डॉक्टर िरतेश गुप्ता ने ‘आउटलुक’ को बताया कि इस वर्ष बीमारी के तेज प्रसार में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि स्वाइन फ्लू ही नहीं बल्कि किसी भी संक्रामक वायरस या बैक्टीरिया में कई वर्षों तक शांत रहने के बाद अचानक तीव्र उभार दिखाने की क्षमता होती है। ये वायरस और बैक्टीरिया रोग के वाहकों में पड़े रहते हैं और मनमाफिक वातावरण मिलते ही आक्रमण करते हैं। इस बार ऐसा ही हुआ है। डॉ. गुप्ता ने यह भी कहा कि तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे अपेक्षाकृत गर्म जगहों पर भी बीमारी के प्रसार में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि वायरस समय के साथ खुद को बदलते और प्रभावी बनाते रहते हैं।
स्वाइन फ्लू के बारे में डॉ. गुप्ता ने कहा कि इस बीमारी के सभी लक्षण आम फ्लू जैसे ही होते हैं और शुरुआत में सिर्फ लक्षणों के आधार पर यह बताना तकरीबन असंभव होता है कि बीमारी स्वाइन फ्लू है या कोई आम फ्लू। बीमारी के आम लक्षणों में बुखार, कफ, गले में सूजन, बदन दर्द और ठंड लगना शामिल है। वैसे भी कुछ गंभीर लक्षण होने के बाद ही स्वाइन फ्लू की जांच कराई जाती है। इस बारे में सरकारी गाइडलाइंस भी यही हैं। खास बात यह है कि लोग स्वाइन फ्लू का नाम सुनते ही परेशान हो जाते हैं जबकि अगर गंभीर लक्षण न हों तो इस बीमारी से एक सामान्य रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति को कोई खतरा नहीं होता है। बुजुर्गों और बच्चों को ही इससे ज्यादा खतरा होता है क्योंकि बुजुर्गों में यदि मधुमेह, फेफड़ाें की समस्या या अन्य कोई बीमारी होती है तो स्वाइन फ्लू का होना उनके लिए घातक हो सकता है। इसी प्रकार छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण उनके लिए यह बीमारी खतरनाक होती है।
इस बीमारी से बचाव के लिए अबतक एक ही दवा टेमीफ्लू उपलब्ध है और इस वर्ष बीमारी के इतने तीव्र प्रसार के लिए इसकी कमी भी बहुत हद तक जिम्मेदार है क्योंकि प्रभावित राज्यों को दवा की खेप समय पर और पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल सकी। इसके अलावा बीमारी की जांच के लिए जांच किट भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थी। हालांकि अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि उसने जांच किट का भंडार पर्याप्त रखने के लिए 10 हजार और किट खरीदने का फैसला किया है जिनकी आपूर्ति एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के तहत प्रयोगशालाओं को की जाएगी। इसके अलावा 60 हजार ओसेल्टामिर मेडीसीन और 10 हजार एन-95 मास्क की खरीद का आदेश भी दिया गया है। गौरतलब है कि दुनिया में स्वाइन फ्लू का पहला मामला वर्ष 2009 में मैक्सिको में सामने आया था और उसी साल यह बीमारी भारत पहंच गई थी।
उस वर्ष भारत में सबसे अधिक मौतें दिल्ली और पुणे में हुई थीं। उसके बाद इस बीमारी का टीका बनाने की कोशिश शुरू हुई और अंततः इसका प्रभावी टीका सामने आया। एच1एन1 इंफ्लूएंजा वायरस का टीका छह महीने से लेकर 9 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को दो डोज में और उससे ऊपर के लोगों को एक डोज में दिया जाता है।