कानून मंत्री और मंत्रालय महज पोस्ट आफिस नहीं: रविशंकर प्रसाद
न्यायपालिका में नियुक्तियों को लेकर चल रहे विवाद पर चुप्पी तोड़ते हुए कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि कानून मंत्री और मंत्रालय महज पोस्ट आफिस नहीं है। उन्हें सुझाव देने का संवैधानिक अधिकार है और नियुक्तियों में सरकार की भूमिका को कोलीजियम व्यवस्था देने वाले तीन फैसलों में भी स्वीकारा गया है। कोलीजियम को सिफारिश पुनर्विचार के लिए भेज कर कोई पाप नहीं कर दिया।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों पर पुनर्विचार की मांग के लिए सरकार पर हमला नहीं किया जाना चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कोलीजियम ने उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नत करने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने जोसेफ की फाइल कोलीजियम को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दी थी। सरकार ने जोसेफ का वरिष्ठताक्रम में नीचे होने का मुद्दा उठाया था। सरकार से सिफारिश वापस आने पर न्यायपालिका में काफी प्रतिक्रिया हुई।
उन्होंने कहा कि यदि नियुक्तियों की बात है तो कोलीजियम को अधिकार है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों 1993, 1998 और 2015 के फैसले में नियुक्तियों में सरकार की भूमिका को माना गया है। जिसमे सरकार अपना नजरिया दे सकती है। पुनर्विचार के लिए भेज सकती है। ऐसे में यदि सरकार ने अपना नजरिया दिया है तो उसे इस प्रकार नहीं देखा जाना चाहिये जैसे कि उसने कोई पाप कर दिया है। ये कानून की सही स्थिति नहीं है। सरकार सम्मान के साथ अपना नजरिया दे सकती है हालांकि फैसला कोलीजियम को ही करना होता है।
प्रसाद ने आगे कहा कि राजनैतिक दलों के पास मतभेद निपटाने के लिए चुनाव का अवसर होता है। जो लोग चुनाव हार चुके हैं उन्हें अपने राजनैतिक मंसूबों के लिए प्रायोजित याचिकाओं के जरिये कोर्ट को केन्द्र नहीं बनाना चाहिए।