हिंद महासागर में कूटनीतिक सेतु
इसी रणनीति के तहत कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेशल्स, मॉरिशस और श्रीलंका की यात्रा की और व्यापार के साथ-साथ वहां की भारत से जुड़ी संस्कृति और सभ्यता के बारे में भी पहल-कदमी की। विशेषज्ञों के मुताबिक हिंद महासागर में बसे ये देश भले ही छोटे हों लेकिन संसार के मानचित्र में उनकी उपस्थिति सामरिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दुर्लभ खनिजों और तेल का अकूत भंडार अपने गर्भ में छिपाए बैठा हिंद महासागर व्यापारिक यातायात का अत्यंत महत्वपूर्ण माध्यम है।
इसलिए भारत चाहता है कि इस सामुद्रिक मार्ग से जलयानों का आवागमन सुरक्षित और बिना रोकटोक हो। प्रधानमंत्री की यह यात्रा इन चुनौतियों के मद्देनजर भी थी कि पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह का संचालन चीन के हाथों सौंप दिया है। इससे अरब सागर में चीन के जहाजों की आवाजाही बढ़ जाएगी और अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया के सभी देशों से व्यापार संभव हो जाएगा जो भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। उधर चीन ने म्यांमार के द्वीपों पर नौसैनिक सुविधाएं बढ़ा रखी हैं जिनसे हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। जानकार बताते हैं कि चीन म्यांमार और श्रीलंका में बंदरगाह बना रहा है जिससे भारत को खतरा महसूस हो रहा है। इसी खतरे को ध्यान में रखकर भारत सरकार की पहल है कि हिंद महासागर के द्वीपीय देश एकजुट होकर व्यापार के साथ-साथ सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा दें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंद महासागर के तटीय देशों के संघ को और अधिक सक्रिय बनाने की वकालत भी की है। श्रीलंका दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने सामुद्रिक अर्थव्यवस्था पर संयुक्त शक्ति बनाने के लिए सहमति भी प्रदान की।
हिंद महासागर में चीन के खिलाफ सामरिक हित साधने की भारत की कोशिशों को ध्यान में रखकर भारत सरकार की थिंक टैंक संस्था रिसर्च एंड इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज तथा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड कल्चरल स्टडीज ने भुवनेश्वर में पहली बार हिंद महासागर के तट पर बसे देशों के साथ व्यापार के अलावा संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में भी आदान-प्रदान आगे बढ़ाने का आह्वान किया। इसमें हिंद महासागर के 20 द्वीपीय देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत सरकार की ओर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर, संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के अलावा तटीय देशों के दूतावासों के प्रतिनिधि, इतिहासकार और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ मौजूद थे।
सुषमा स्वराज के मुताबिक हिंद महासागर तटीय क्षेत्र के देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में और फिलहाल मौजूद अनेक औपचारिक तथा अनौपचारिक ढांचों के माध्यम से समुद्री सुरक्षा एक महत्वपूर्ण आयाम है। इसलिए भारत समुद्री क्षेत्र में करीबी सहयोगी बनाने, द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास नियमित करने और सभी क्षेत्रीय देशों की नौसेनाओं और तटरक्षकों के बीच संवाद को मजबूत करने को लेकर आशान्वित है। भुवनेश्वर में आयोजित सम्मेलन इसी की पहली कड़ी है। इसमें व्यापार को इतिहास से जोडक़र तटीय देशों को एकजुट करने का आह्वान किया गया। इतिहासकार प्रो. किशोर बासा के मुताबिक व्यापार को प्राचीन सभ्यता और संस्कृति सेे जोड़ा जा रहा है तो निश्चित तौर पर विकास होगा। और जो देश इसके लिए पहल कर रहे हैं उनके लिए भी विकास के द्वार खुलेंगे। कुछ ऐसी ही पहल चीन ने मध्य एशिया में अपनी सिल्क रूट कूटनीति के जरिये की है। उसके समानांतर यह भारत की महासागरीय पहल है।