एक्सक्लूसिव--भारत और इज्राइल के करीब आने की ठोस वजहेः वीके सिंह
केंद्र सरकार इस्राइल से संबंधों को सुधारने और रक्षा सौदे करने में बेहद इच्छुक है। इसी सोच के तहत पिछले 20 महीनों में इस्राइल से विदेश संबंधों के साथ-साथ सैन्य खरीदारी की रफ्तार भी बढ़ी है। भारत से इस्राइल जाने वाले मंत्रियों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, रक्षा विशेषज्ञों की आवाजाही पहले की सरकारों की तुलना में कई गुना ज्यादा बढ़ा है।
इस बारे में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने आउटलुक को बताया कि वैचारिक करीबी के अलावा, इस्राइल से हथियार खरीदना भारत के लिए हमेशा फायदेमंद रहता है। इस्राइल सस्ते में हथियार बेचता है, जबकि वही हथियार अमेरिका आदि देशों से खरीदने में कई गुना ज्यादा पैसा देना पड़ता है। चूंकि इस्राइल अपनी तकनीक या शोध विकसित करने में कोई संसाधन नहीं खर्च करना है। वह अमेरिका या किसी अन्य विकसित देश के हथियारों को ही आधार बनाकर और फिर उसे अपने या अपने खरीदारों की मांग के मुताबिक ढालकर नया प्रोडक्ट नया करता है। ये प्रोडक्ट या हथियार बहुत कम कीमत पर मुहैया होते हैं। ऐसे हथियारों का बाजार भी बहुत बड़ा है। शायद यहीं कारण है कि भारत सरीखे देश अमेरिका के बजाय खुद तो इस्राइल के ज्यादा करीब पा रहे है।
इससे पहले भी 1999 में भाजपा की केंद्र में आई थी, तब भी इस्राइल से हथियार और सुरक्षा सौदों में तेजी आई थी। चूंकि अमेरिका भी इस्राइल का समर्थन करता है और खासतौर से अमेरिका में मजबूत यहूदी लॉबी का इज्राइल को बेपनाह समर्थन हासिल है, इसलिए इन तमाम सौदों और डीलिंग को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के लिए फिलिस्तीन का मुद्दा विदेश कूटनीति के लिहाज से ज्यादा करीब रहा है। लेकिन भाजपा के शासनकाल में विदेश कूटनीति इज्राइल और अमेरिका के पक्ष में झुकी दिखाई देती है। हथियारों की खरीद का मामला भी इसी से जुड़ा हुआ है। हालांकि विदेश राज्य मंत्री वी.के सिंह का दावा है कि हर शासनकाल में इज्राइल भारत का अहम हथियारों का आपूर्तिकर्ता रहा है।