वे दस चेहरे, जिनका राम मंदिर मामले से रहा गहरा नाता
2019 लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर अयोध्या के राममंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद का मुद्दा गरम है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 10 जनवरी को तीन सदस्यों वाली बेंच इस मामले में आगे की सुनवाई की रूपरेखा तय करेगी। यह विवाद लंबे समय से अदालत के हवाले है। पिछले चार दशक से इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों ने जमकर सियासी रोटियां सेंकी हैं। जब भी इस विवाद का जिक्र होता है तब इससे जुड़े कई प्रमुख चेहरे जहन में आते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी तक ये वे नाम हैं जो किसी न किसी रूप से इस मामले के केन्द्र में रहे हैं।
आइए उन दस चेहरों के बारे में जानते हैं जिनका राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से गहरा नाता रहा है-
राजीव गांधी
माना जाता है कि अयोध्या विवाद को दोबारा हवा तब मिली जब 1985 में बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने के आदेश दिए गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आदेश पर ताला खोला गया। और फिर सारा विवाद नए सिरे से शुरू हो गया।
दरअसल राजीव गांधी शाहबानो केस में मुस्लिम कट्टरपंथियों का पक्ष लेने के आरोप झेल रहे थे। माना जाता है कि राजनीतिक संतुलन बनाने के चक्कर में उन्होंने हिंदुओं को ‘साधने’ का फैसला किया। राजीव गांधी ने बाबरी परिसर का ताला खुलवा दिया। इससे पहले पुजारियों को साल में सिर्फ एक बार अंदर जाकर पूजा की अनुमति थी। बहुत लोग मानते हैं कि यह राजीव गांधी की बहुत बड़ी भूल थी।
लाल कृष्ण आडवाणी
माना जाता है कि भाजपा की राजनीति को विस्तार राम मंदिर आंदोलन से ही मिला और इसका सबसे बड़ा चेहरा थे लाल कृष्ण आडवाणी। सितंबर 1990 में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए दक्षिण से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू की थी। देश भर से बड़ी संख्या में कारसेवक और संघ परिवार के लोग अयोध्या पहुंचे और बाबरी ढांचे पर हमले की कोशिश की। पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, दोनों पक्षों में संघर्ष हुआ और कई कारसेवक मारे गए। केंद्र की वीपी सिंह सरकार को कमजोर बताते हुए बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया। सीबीआई की मूल चार्जशीट के मुताबिक आडवाणी अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद गिराने की ‘साजिश’ के मुख्य सूत्रधार थे।
पीवी नरसिम्हा राव
जब बाबरी का ढांचा गिराया गया तब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे। घटना के बाद कांग्रेस ने न सिर्फ उनसे किनारा कर लिया, बल्कि घटना का पूरा ठीकरा भी उन्हीं के सिर फोड़ने की कोशिश की। पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘मेरी जानकारी है कि नरसिम्हा राव की बाबरी मस्जिद ढहाए जाने में भूमिका थी। जब कारसेवक मस्जिद ढहा रहे थे, तब वे पूजा में बैठे हुए थे। वे वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आखिरी पत्थर हटा दिया गया।’ हालांकि लिब्रहान आयोग ने राव को क्लीन चिट दे दी। राव इस मामले पर जिंदगी भर चुप रहे, लेकिन मौत से एक साल पहले उन्होंने चुप्पी तोड़ी। उन्होंने अपनी किताब ‘अयोध्या 6 दिसंबर 1992’ में लिखा, ‘अयोध्या में जो कुछ हुआ वो उनके काबू से बाहर था। तकनीकी और कानूनी रूप से विवादित भूमि का कब्जा केंद्र के पास नहीं था।’
अशोक सिंघल
दिवंगत वीएचपी अध्यक्ष अशोक सिंघल राम मंदिर मसले से जुड़े अहम नाम हैं। सीबीआई चार्जशीट के मुताबिक, 20 नवंबर 1992 को वे शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मिले और उन्हें कारसेवा में हिस्सा लेने का न्योता दिया। 4 दिसंबर 1992 को बाल ठाकरे ने शिवसैनिकों को अयोध्या जाने का आदेश दिया। चार्जशीट में अशोक सिंघल पर आरोप है कि वे 6 दिसंबर को राम कथा कुंज पर बने मंच से नारा लगवा रहे थे कि ‘राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो।’ अशोक सिंघल 2011 तक वीएचपी अध्यक्ष बने रहे। फिर स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया।
कल्याण सिंह
जब मस्जिद गिराया गया तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन पर आरोप है कि उग्र कारसेवकों को उनकी पुलिस और प्रशासन ने जानबूझकर नहीं रोका। कल्याण सिंह उन 13 लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने की ‘साजिश’ में शामिल होने का आरोप लगा। घटना के बाद कल्याण सिंह ने भाषण देते हुए कहा, ‘कोर्ट में केस करना है तो मेरे खिलाफ करो, जांच आयोग बैठाना है तो मेरे खिलाफ बैठाओ। किसी को दंड देना है तो मुझे दो। दोपहर 1 बजे केंद्रीय गृहमंत्री शंकरराव चह्वाण का मेरे पास फोन आया। मैंने उनसे कहा कि ये बात रिकॉर्ड कर लो चह्वाण साहब कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा, गोली नहीं चलाऊंगा।’ बता दें कि कल्याण सिंह वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल हैं।
विनय कटियार
वीएचपी ने 1 अक्टूबर 1984 में राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए ‘बजरंग दल’ बनाया। 30 वर्षीय युवक विनय कटियार को इस संगठन का पहला अध्यक्ष बनाया गया। बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने जन्मभूमि आंदोलन को उग्र बनाया। चार्जशीट के अनुसार, कटियार ने 6 दिसंबर को अपने भाषण में कहा था, ‘हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नहीं तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा।’
उमा भारती
मौजूदा केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी राम जन्मभूमि आंदोलन के बड़े चेहरों में शामिल हैं। उमा भारती के उग्र भाषणों से आंदोलन को गति मिली और महिलाएं बड़ी संख्या में कारसेवा के लिए पहुंचीं। 6 दिसंबर को जब ढांचा गिराया गया, वे अन्य भाजपा और वीएचपी नेताओं के साथ मौके पर थीं। भारती ने भीड़ को उकसाने के आरोपों से इनकार किया। लेकिन ये भी कहा कि उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है और वह ढांचा गिराए जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं।
सैयद शहाबुद्दीन
शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम संगठनों ने राजीव गांधी सरकार पर दबाव बनाया था। इन संगठनों में सबसे आगे था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और इसके बड़े नेता सैयद शहाबुद्दीन थे। 6 दिसंबर के बाद बाबरी ध्वंस और संघ परिवार के खिलाफ देश में जो आवाज उठी शहाबुद्दीन उसके सबसे बड़े चेहरों में से एक थे। तीन तलाक मसले को लेकर कई उन्हें सेक्युलर चोगे में धार्मिक रूढ़िवादी बताते हैं। इस सवाल का जवाब उन्होंने एक इंटरव्यू में दिया। उन्होंने कहा, ‘मैं आधिकारिक तौर पर किसी पार्टी से नहीं जुड़ा था, लेकिन विचारों से वामपंथी था। मैंने संसद में मुस्लिम पर्सनल लॉ और बाबरी मस्जिद को छोड़ कभी भी लेफ्ट पार्टियों से अलग लाइन नहीं ली।’
हाशिम अंसारी
हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद विवाद के पक्षकार थे, लेकिन 2014 में उन्होंने यह कहते हुए मुकदमे से हटने का फैसला किया कि वह रामलला को आजाद देखना चाहते हैं। हाशिम ने अयोध्या मसले पर 60 साल से ज्यादा समय तक बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और कानून के दायरे में अदालती लड़ाई लड़ी। लेकिन 2014 में मुकदमे से खुद को अलग करते हुए उन्होंने कहा, ‘चाहे हिंदू नेता हों या मुस्लिम, सब अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हैं और मैं कचहरी के चक्कर लगा हूं।’
मुरली मनोहर जोशी
मुरली मनोहर जोशी भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते रहे हैं। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। 6 दिसंबर को जोशी भी घटना के दौरान उपस्थित थे। चार्जशीट के मुताबिक, मस्जिद का गुंबद गिरने पर उमा भारती आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से गले मिल रही थीं। मुरली मनोहर जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर आरोप लगा कि 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट से प्रतीकात्मक कारसेवा का फैसला हो जाने के बाद भी विवादित भाषण देते रहे।