ट्रॉली टाइम्स: किसानों ने निकाला अखबार, ऐसे पहुंचा रहे अपनी बात
“ट्रॉली से निकलता है किसानों का ‘ट्रॉली टाइम्स’ अखबार, 6 युवाओं ने 11,000 रुपए से पहले अंक की 2,000 प्रतियां छपवाई, अगले अंक की 10,000 प्रतियों की तैयारी”
केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में पिछले 25 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों के इस आंदोलन में जीवन के कई रंग सामने आए हैं। चारों ओर व्यापत कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच हाड कंपकंपाने वाली ठंड में 33 आंदोलनकारी किसानों की शहादत ने किसानों के हौसले और बुलंद किए हैं।
कथित मुख्य धारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल्स की अपनी धारा के अनुरुप ही इस जनआंदोलन को खालिस्तानी और अलगाववादी रंग देने की कोशिश को भी किसानों ने सिरे नहीं चढ़ने दिया। डटे किसानों ने इन चैनल्स के मौके पर बहिष्कार के साथ सोशल मीडिया पर भी किए बहिष्कार से लाखों लोगों का समर्थन हासिल किया। इन्हें धत्ता बताते हुए किसानों, युवाओं, गीतकारों, कविओं और स्वतंत्रता सेनानियों के सैंकड़ों सोशल मीडिया चैनल्स यू-टयूब और फेसबुक पर लाइव उभर आए। अपने विरोधी मुख्यधारा के बड़े चैनल्स से मुंह मोड़ते हुए कई बड़े किसान नेता भी अपने यू-टयूब और फेसबुक चैनल्स पर दिन में दो-तीन बार लाइव होकर अपडेट साझा करने लगे हैं।
अपने हकों की लड़ाई के लिए 25 दिनों में दिल्ली की सीमाओं पर एक अपनी ही अलग दुनियां बसाने वाले किसान एग्रीकल्चर से कहीं आगे मैनेजमेंट और वेबकल्चर तक निकल आए हैं। जता दिया कि कैसे ट्रैक्टर से ट्विटर हैंडल करना है, टेलीग्राम और इंस्टाग्राम के जरिए लाइव होकर बेहतर प्रंबधन से अनुशासित जनआंदोलन को कैसे आगे बढ़ाना है। सिंघु सीमा पर डटे आंदोलनकारी किसानों ने मुख्यधारा के प्रिंट मीडिया के तौर पर हीं अपना मुखपत्र ‘ट्रॉली टाइम्स’ भी प्रकाशित कर दिया है। 6 युवा किसानों ने अपनी जेब से 11,000 रुपए के बजट से 18 दिसंबर से शुरु किए चार पन्नों के इस हिंदी व पंजाबी भाषी मुखपत्र की 2,000 प्रतियों में किसान आंदोलन की तमाम गतिविधियों को सचित्र प्रकाशित किया हैं। किसान नेताओं और कृषि विशेषज्ञों के इंटरव्यू और प्रदर्शन में शामिल होने आए किसानों के किस्से छप रहे हैं। ट्रॉली टाइम्स के अगले विशेष अंक में आंदोलन में शहीद हुए किसान नेताओं को श्रद्धांजलि दी जाएगी।
ट्रॉली टाइम्स के संपादक की भूमिका में बठिंडा के सुरमीत सिंह मावी ने आउटलुक को बताया कि 18 दिसंबर को अखबार के पहले अंक में आंदोलनकारी किसानों को पहले पन्ने की हैडलाइंस ‘जुड़ांगें,लड़ांगें,जीतांगें’(जुडेंगे,लडेंगें,जीतेंगें) के जरिए एकजुटता से आंदोलन के जरिए जीत का संदेश दिया गया। अखबार की संपादीय टीम के 6 युवाओं में सुरमीत मावी के साथ डेंटल सर्जन डॉ. नवकिरण नट, फोटो ग्राफर गुरदीप सिंह धालीवाल और जस्सी सांघा युवा किसान नरेंद्र भिंडर के ट्रैक्टर-ट्रॉली में बैठकर ही इस अखबार की प्लांनिंग करते हैं, इसलिए इसे ट्रॉली टाइम्स नाम दिया गया है। सिंघु और टिकरी सीमाओं पर आंदोलन में शामिल बहुत से किसान सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हैं इसलिए उन्हें आंदोलन की गतिविधियों और किसान नेताओं के विचारों से अवगत कराने के लिए सप्ताह में दो दिन ये अखबार निकालने की बात कही गई है। दिल्ली की ही एक प्रेस से छपे अखबार के पहले अंक पर किसानों व सोशल मीडिया पर बहुत अच्छी प्रतिक्रिया देखते हुए 21 दिसंबर को दूसरे अंक की 10,000 प्रतियां छापने की तैयारी है।
मावी के मुताबिक अखबार के अगले अंक में पहले पन्ने पर तीन संपादकीय के अलावा किसानों की पिछले तीन की गतिविधियां और घोषणाएं प्रकाशित होंगी। दूसरे पन्ने पर आंदोलन के चित्र और कुछ काटूर्न प्रकाशित होंगे। तीसरे पन्ने पर किसान आंदोलन में समर्थन में खबरें और विचार होंगे और चौथे पन्ने पर किसान आंदोलन के रोचक रंग और किस्से प्रकाशित होंगे जिसमें पंजाब व हरियाणा के किसानों के बीच होने वाले कब्ड्डी् व कुश्ती के मैच, रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलकियां और गरीब बच्चों के लिए लगने वाली पाठशालाएं और सड़कों के डिवाइडर्स पर युवा किसानों द्वारा की जा रही सब्जियों की खेती की तस्वीरें होंगी।