वैलेंटाइन डे: 18 साल में प्रेमिका के लिख डाले 6500000 बार नाम, गुमनाम शहंशाह बना रहा है शब्दों का ताजमहल
एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक, साहिर लुधियानवी ने लगता है किशोर गाबा जैसे लोगों के लिए ही यह लाइन लिखी थी। झारखंड में रांची के रातू रोड के रहने वाले किशोर गाबा भी एक गुमनाम शहंशाह की तरह हैं जो शब्दों के ताजमहल बना रहे हैं। पिछले कोई 19 सालों से। लगातार। बिना थके। एकतरफा प्यार और नाकाम इश्क ने उन्हें इस ओर मोड़ दिया।
52 साल के गावा में अजीब सी कशिश है, जब शब्द, शब्द बोलते हैं तो खलिश गहरे झलकती है। उनका प्यार एकतरफा था। मगर असफल होने पर प्रतिशोध में एसिड अटैक, हत्या या आत्महत्या जैसे कदम नहीं उठाये। वे खुद कहते हैं एकतरफा प्यार खुदा की इबादत का सबसे बेहतरीन जरिया है। मिल जाये तो मामूली होता है, न मिले तो खुदा के बराबर होता है। ये कैसा जुनून कैसा प्यार है दिन रात मन ही मन ईश्वर से पूछते थे। जिसे देखे बिना हम एक पल रह नहीं सकते जिसे चाहते हैं मिल जाये तो सिर आंखों पर, दिल के घर में न जाने क्या क्या कल्पना करते हैं। लोगों को समझना चाहिए कि जिसे प्यार करते हैं उसकी कोई मजबूरी है, हम नहीं पसंद हैं, इनकार है तो उस प्यार के जुनून को भक्ति में बदलना चाहिए। खुश होना चाहिए देखना चाहिए कि हम जिसे मुहब्बत करते हैं वह खुश है कि नहीं।
गाबा बताते हैं कि मेरे एकतरफा इश्क की भनक मेरी बड़ी बहन को लगी तो उन्होंने कहा कि मैं लड़की होने का दर्द और मर्म समझती हूं। उधर से कोई हामी न मिले तो फिर नजर उठाकर भी उसे नहीं देखना। बस मैं राम धुन में जुट गया। एक दर्शन की तरह। पोस्ट न किये जाने वाले पोस्ट कार्ड पर, सादे कागज पर, चार्ट पेपर पर, कपड़ों पर उसके नाम लिखता गया। 2002 से जो सिलसिला शुरू हुआ इबादत की तरह रोज का काम हो गया। शुक्रवार 12 फरवरी तक उन्होंने 65 लाख 25 हजार 911 बार अपनी प्रेमिका का नाम लिखा है। गाबा 16 मार्च को 52 साल के हो जायेंगे। यानी कोई 34 साल की उम्र से नाम भक्ति का सिलसिला जारी है। वे खुद कहते हैं कि इश्क में नाकाम होने वालों के लिए मेरी कृति संदेश की तरह है। न उसे नुकसान पहुंचाओ न खुद को। प्रेम-भक्ति का अलग मार्ग चुन लो। गाबा शादीशुदा हैं। परिवार को चलाने के लिए एक कपड़े की दुकान में काम करते हैं। सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़े हैं। कहते हैं प्यार और भक्ति के लिए न पैसे की जरूरत है न डिग्री की। इश्क के भक्ति रस में डूबा फिर नाम लिखने लगा। लोगों की नजर से छुपाकर छोटे-छोटे हर्फ में। उसे मैं आज चश्मा पहनकर भी नहीं पढ़ सकता।
दोस्त से खुला राज
गाबा बताते हैं कि 2007 की बात है जब मेरा एक मित्र मिलने आया। मैं अपनी लेखनी छुपाने लगा तो उसे संदेह हुआ क्या छुपा रहा हूं। जिद की, कागज सामने कर दिया मगर उसे लिख हुआ दिखाई नहीं पड़ा तो पावर ग्लास की मदद से देखा, तब उसके सामने राज खुला। फिर लोग जान गये। मुहल्ला, समाज, ससुराल वाले भी। भारी अंतरद्वंद्व से गुजरना पड़ा। मगर मेरा मन और शुद्ध था इसलिए बहुत हिचक नहीं हुई। सिलसिला आज भी जारी है 690 फीट कपड़े पर भी लिखा जिस कारण लिखने की गति थोड़ी धीमी हुई। इसके अतिरिक्त पोस्टकार्ड, कॉपी आदि पर 3642 फीट। सिर्फ कपड़े पर ही चार लाख बार नाम लिखा है। उनका लक्ष्य एक करोड़ नाम का है।
गाबा कहते हैं कि पता नहीं कहां का जुनून है या खुदा की मर्जी दिनभर काम के बाद आदमी जब थक जाता है मैं नाम लिखने बैठता हूं तो लगता है दिन में कोई काम ही नहीं किया। पूरी तरह तरो ताजा। बताते हैं कि उनकी प्रेमिका का नाम रीमा है। गाबा कहते हैं उसके नाम में मां भी है, राम भी और खुद रीमा भी। मुलाकात क्या कभी नजर उठा के भी पूरा नहीं देखा और मोहब्बत हो गई। पहला पत्र लिखा था कि आप से बे हद तक, आसमान से भी उंचा समंदर से भी गहरा प्यार हो गया है। हमारी जोड़ी नहीं है मगर इच्छा है आपको राजकुमार जैसा मिले। दुआ कुबूल हुई। उनकी शादी भी बहुत बड़े घर में हुई। 98 के बाद राह चलते भी नहीं दिखी है। मगर मेरी भक्ति जारी है। गाबा ने प्यार करने वालों के लिए बैनर टांग रखा है। नाकाम इश्क में जीयो और जीने दो, प्यार में धोखा, प्यार में बेईमानी, हत्या-आत्महत्या, एसिड अटैक अच्छी बात नहीं। नाकाम इश्क का पैगाम है जहां तक पहुंचे।