'दृष्टिहीन लोग भी बन सकते हैं जज...', सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में रोजगार के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने पिछले साल 3 दिसंबर को छह याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिनमें कुछ राज्यों में न्यायिक सेवाओं में ऐसे उम्मीदवारों को कोटा न दिए जाने के संबंध में स्वप्रेरित मामला भी शामिल था।
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा कि न्यायिक सेवा में भर्ती के दौरान विकलांग व्यक्तियों को किसी भी प्रकार के भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए तथा राज्य को समावेशी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए सकारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा, "कोई भी अप्रत्यक्ष भेदभाव जिसके परिणामस्वरूप विकलांग व्यक्तियों को बाहर रखा जाता है, चाहे वह कटऑफ के माध्यम से हो या प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण, मौलिक समानता को बनाए रखने के लिए उसमें हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।"
फैसले में कहा गया कि किसी भी अभ्यर्थी को केवल उसकी विकलांगता के कारण विचार से वंचित नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम 1994 के कुछ नियमों को भी रद्द कर दिया, जिसके तहत दृष्टिबाधित और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में प्रवेश से रोका गया था।
ये दलीलें मध्य प्रदेश नियमों के नियम 6ए और 7 की वैधता से संबंधित थीं।
निर्णय में कहा गया है कि चयन प्रक्रिया में भाग लेने वाले पीडब्ल्यूडी (विकलांग व्यक्ति) उम्मीदवार निर्णय के आलोक में न्यायिक सेवा चयन के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं, और यदि वे अन्यथा पात्र हैं तो उन्हें रिक्त पदों पर नियुक्त किया जा सकता है।
पिछले वर्ष 7 नवंबर को पीठ ने देश भर में न्यायिक सेवाओं में बेंचमार्क विकलांगता (PwBD) वाले व्यक्तियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।