जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को सूरत में ‘जल संचय जनभागीदारी पहल’ की शुरुआत की और कहा कि जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है तथा जागरूकता, जनभागीदारी और जन आंदोलन इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं।
वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से यहां आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने यह भी कहा कि पिछले दिनों अप्रत्याशित बारिश का जो ‘तांडव’ हुआ, उससे देश का शायद ही कोई ऐसा इलाका होगा, जिसको संकट का सामना न करना पड़ा हो।
उन्होंने कहा, ‘‘इस बार गुजरात पर बहुत बड़ा संकट आया। सारी व्यवस्थाओं की ताकत नहीं थी कि प्रकृति के इस प्रकोप के सामने हम टिक पाएं। लेकिन गुजरात के लोगों और देशवासियों का स्वभाव एक है कि संकट की घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर हर कोई, हर किसी की मदद करता है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि जल संचय केवल एक नीति नहीं है बल्कि एक पुण्य भी है जिसमें उदारता और उत्तरदायित्व दोनों हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आने वाली पीढ़ियां जब हमारा आंकलन करेंगी तो पानी के प्रति हमारा रवैया, शायद उनका पहला मानदंड होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जल संरक्षण, प्रकृति संरक्षण.. ये हमारे लिए कोई नए शब्द नहीं हैं। यह हालात के कारण हमारे हिस्से आया काम है। यह भारत की सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा है। जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं, बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है। जागरूक जनमानस, जनभागीदारी और जन आंदोलन.. ये इस अभियान की सबसे बड़ी ताकत हैं।’’
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत में साफ पानी के मात्र चार प्रतिशत संसाधन हैं और देश के कई हिस्से जल संकट का सामना कर रहे हैं।
‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि जब वृक्ष लगते हैं तो जमीन में पानी का स्तर तेजी से बढ़ता है।
उन्होंने कहा, ‘‘बीते कुछ सप्ताह में ही मां के नाम पर देश में करोड़ों पेड़ लगाए जा चुके हैं। ऐसे कितने ही अभियान और संकल्प हैं, जो 140 करोड़ देशवासियों की भागीदारी से आज जनांदोलन बनते जा रहे हैं।’’