पानी के लिए त्राहिमाम
वाराणसी, इलाहाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र, जौनपुर, संत रविदास नगर (भदोही) और चंदौली भीषण रूप से सूखा प्रभावित हैं। भारी धनराशि खर्च कर सरकार ने गांवों में आदर्श जलाशय योजना के तहत गांवों में गर्मी के दिनों के लिए सैकड़ों तालाब बनाए थे। सभी तालाब सूख चुके हैं। योजना के अंतर्गत तालाबों में बरसात और जाड़े में जलसंचय के लिए पंप लगवाने की योजना थी और कुओं का भी निर्माण होना था। पर न कुएं बने, न पंप लगे।
चकिया, बन भीषमपुर और नौगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में गर्मी की शुरुआत में ही सरकारी राशन की किल्लत के कारण आदिवासी जंगली पेड़ों की पत्तियां जैसे चकवण और सेम के जंगली फलों के बीज आदि खाने को मजबूर हो गए हैं।
वाराणसी में गंगा नदी जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। गंगाजल का परिशोधन का नगर में जल की आपूर्ति होती है लेकिन गंगा का जलस्तर गर्मी की शुरुआत में ही नीचे चला गया है और धारा इतनी संकरी हो गई कि अस्सी, भदैनी पंपिंग स्टेशन सहित अनेक पंप जवाब देने लगे हैं। हर साल सूखा झेलने को मजबूर सोनभद्र का सोनांचल इलाका हिंद जलाशय पर बिजली और पानी के लिए निर्भर रहता है। हिंद जलाशय का जलस्तर न्यूनतम से नीचे पहुंचने की आशंका से प्रदेश के बिजली विभाग और जलनिगम की हालत खराब है। उत्तर प्रदेश सरकार के राहत आयुक्त अनिल कुमार के अनुसार केंद्र सरकार से सूखे से मुकाबले के लिए 2057 करोड़ की मांग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई थी लेकिन सिर्फ एक-तिहाई राशि 937 करोड़ केंद्र से मिली है। केंद्र पर हमारा दबाव है कि जल्द से जल्द शेष धनराशि दी जाए ताकि किसानों तक मदद पहुंचाई जा सके। अच्छी बारिश की भविष्यवाणी का मजाक उड़ाते हुए सूखा पीड़ित क्षेत्रों के लोग कहने लगे हैं, 'अच्छी बारिश और अच्छे दिन दूर की कौड़ी हैं।’
पानी के संकट में दिल्ली भी पीछे नहीं है। दिल्ली में हर दिन 16 करोड़ गैलन कम पानी की आपूर्ति हो रही है। ज्यादातर इलाकों में पानी देने में कटौती कर दी गई है। दिल्ली जल बोर्ड हर दिन 900 टैंकर लोगों तक पहुंचाता है। 1.4 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली को रोज 90 करोड़ गैलन पानी की जरूरत है जिसे पूरा करने के लिए दिल्ली को दूसरे राज्यों का मुंह देखना पड़ता है। राजधानी को मौजूदा समय में 15 करोड़ गैलन पानी गंगा, 22 करोड़ गैलन यमुना, 24 करोड़ गैलन भाखड़ा नंगल और 10 करोड़ गैलन पानी बरसात से मिलता है। दिल्ली में 14 करोड़ 50 लाख गैलन पानी कम है जबकि लीकेज के चलते 40 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है। वर्ष 2004 में दिल्ली की आबादी 1 करोड़ 55 लाख थी और पानी की मांग करीब 60 करोड़ 80 लाख गैलन। 2005 में आबादी 1 करोड़ 60 लाख हो गई और पानी की मांग बढ़कर 63 करोड़ 30 लाख गैलन। सन 2005 में सरकार ने 1000 करोड़ रुपये की लागत से सोनिया विहार ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर 14 करोड़ गैलन अतिरिक्त पानी जुटाया। लेकिन उत्तर प्रदेश से पानी न मिलने की वजह से यह प्लांट पिछले आठ साल से बंद है। मध्य प्रदेश के हालात भी कुछ कम नहीं हैं। मराठवाड़ा की राह पर मध्य प्रदेश चल पड़ा है। यहां की आधी से ज्यादा आबादी तंत्र की काहिली के चलते सूखे की मार झेल रही है। मध्य प्रदेश के 51 में से एक-तिहाई जिलों यानी सत्रह जिले तो ऐसे हैं जो लगातार दूसरे साल सूखे के चपेट में हैं।
पिछले साल कम बारिश के चलते 41 जिलों में कलेञ्चटरों ने पेयजल के अलावा अन्य प्रयोग पर पाबंदी लगा रखी है। बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में नगरीय निकाय को जल स्रोतों की रक्षा के लिए निजी हथियार बंद गार्ड तैनात करना पड़े हैं। कहीं तो पुलिसकर्मी पानी वितरण का काम संभाल रहे हैं। पीने के पानी के झगड़े थानों तक पहुंच रहे हैं। मराठवाड़ा की राह की ओर बढ़ते मप्र में बेरहम शासन तंत्र की तंद्रा भंग करने के लिए मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव स्तर के अफसर को हटाने का कड़ा फैसला लेना पड़ा है। मध्य प्रदेश में कुदरती सूखे ने बेरहम तंत्र की काहिली को उजागर किया है। देखा जाए तो सरकारी महकमे जल संकट से निजात के लिए कागजी घोड़े दौड़ाते रहे। नतीजतन सूखे और पेयजल संकट की विभीषिका गर्मी बढ़ने के साथ विकराल होती जा रही है। सूखे की महीनों पहले आहट के बावजूद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग और ग्रामीण विकास विभाग के बेरहम रवैये ने निदान के रास्ते खोजने के कामों में भारी देरी की। नए प्रमुख सचिव पंकज अग्रवाल जल संकट को लेकर संजीदा हैं। लेकिन विभाग के प्रमुख अभियंता गुमान सिंह डामोर इंतजाम से ज्यादा संकट की विभीषिका को दबाने में लगे हैं। हालात यह है कि प्रदेश की ग्रामीण जिलों की 15 हजार नलजल परियोजनाओं में से 3910 बंद पड़ी हैं। 5 लाख 28 हजार 565 हैंडपंपों में से लगभग आधे से ज्यादा या तो बंद हो चुके है या उनमें जल स्तर नीचे चला गया है। 4900 हैंडपंप की जगह सिंगल फेस के सबमर्सिबल पंप के जरिये पानी मुहैया कराने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन ये सब नाकाफी हैं। ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव का दावा है कि पीएचई के अलावा उनके विभाग ने सौ करोड़ रुपये बिजली विभाग को दिए हैं ताकि बिलों के भुगतान के फेर में बंद नल जल योजना फिर शुरू हो।
जिला पंचायतों को 102 करोड़ तथा जनपद पंचायतों को 313 करोड़ पेयजल के लिए मुहैया कराए हैं। वित्त मंत्री जयंत मलैया ने माना कि पीएचई ने पेयजल के लिए उनके विभाग से अतिरिक्त राशि की मांग नहीं की। बुंदेलखंड के संभागीय मुख्यालय सागर शहर में 12 साल पहले बने राजघाट बांध की सांसें फूलने लगी हैं। अभी तो प्रतिदिन बीस मिनट पानी की आपूर्ति की जा रही है। लेकिन 15 दिन बाद जो पानी बचेगा उससे हर तीन दिन में पेयजल की आपूर्ति हो सकेगी। दमोह नगर में फिल्टर प्लांट से टंकियों तक पहुंचने वाली मुख्य पाइप लाइन को छेद कर लोग पानी चोरी करने को मजबूर हैं। इस बांध से सिंचाई के लिए पानी उलीचने पर पाबंदी नहीं लगने के चलते यह हालात हुए हैं। प्रदेश के 17 जिलों में लगातार दूसरी बार सूखा पड़ा है।
दिल्ली से मनीषा भल्ला, लखनऊ से अभितांशु पाठक, भोपाल से राजेश सिरोठिया, बुंदेलखंड से रवींद्र व्यास