कार्यपालिका हमें बना रही है मूर्ख, हम कुछ कहते हैं तो सीमा लांघने की बात कही जाती है: SC
पर्यावरण के लिए खर्च किया जाने वाला लगभग एक लाख करोड़ का फंड दूसरे कामों पर खर्च किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका हमें मूर्ख बना रही है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि हमने कार्यपालिका पर विश्वास किया, लेकिन अफसर काम नहीं करते। पीठ ने कहा, "जब हम कुछ कहते हैं तो सीमा लांघने और न्यायिक सक्रियता जैसी बातें कही जाती हैं।" कोर्ट में 1985 में दायर की गई पर्यावरणविद एमसी मेहता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। मेहता ने दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण के मुद्दे को उठाया था।
बेंच ने कहा, "ये एकदम साफ था कि अदालत के आदेश के बाद इकट्ठा किए गए विभिन्न मदों का उपयोग पर्यावरण की सुरक्षा और लोगों के लाभ के लिए होना था। कोर्ट कहां तक जाए? हमने कार्यपालिका पर भरोसा किया, लेकिन वे कहते हैं कि जो चाहेंगे, वो करेंगे। पहले हम ये पता करें कि आपने पैसा दूसरे कामों पर खर्च कर दिया और भरोसे को तोड़ा। हम पुलिसवाले हैं या फिर जांच अधिकारी? हम किसी छोटी राशि की बात नहीं कर रहे हैं। ये बहुत ही हताश करने वाला है।"
कोर्ट ने कहा कि कम्पंसेटरी एफॉरेस्टेशन फंड्स मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA) कोर्ट के आदेश के बाद बनाई गई थी, इसके तहत 11,700 करोड़ का फंड इकट्ठा किया गया था। और, इस तरह के फंड्स में कुल राशि करीब एक लाख करोड़ रुपए थी।"
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से पेश हुए अटॉर्नी सॉलीसीटर जनरल एएनएस नादकर्णी ने कहा, "कोर्ट सरकार को बताए कि इस मद का इस्तेमाल कहां किया जा सकता है और कहां नहीं। इसका इस्तेमाल सिविक और म्युनिसिपल कारणों से नहीं किया जा सकता है।"
इस पर पीठ ने कहा, "कोर्ट के आदेश पर करीब 90 हजार करोड़ से एक लाख करोड़ रुपए की राशि जमा हुई और ये केंद्र और राज्य सरकारों के पास है। 31 मार्च तक जमा विभिन्न मदों को मंत्रालय के सचिव इकट्ठा करें। सचिव ही हमें सुझाव दें कि इस राशि को किस तरह खर्च किया जाना है और वो कौन से क्षेत्र हैं, जहां इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।"
कोर्ट अब इस मामले में 9 मई को सुनवाई करेगी।