नेशनल हेराल्ड: हवाला, कांग्रेस और कोलकाता गुणसूत्र
यदि अदालत किसी मामले का संज्ञान लेती है तो ईडी आगे बढ़कर उस मामले की खुद जांच कर सकती है। ईडी जो कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत आती है, अपने संकेत 'पिंजरे में बंद तोते’ सीबीआई से लेती रही है जो कि खुद डीओपीटी या कहें पीएमओ के तहत आता है।
मगर वे घटनाएं जो सर्कुलर निकालने की वजह बनीं ज्यादा सारगर्भित थीं। कुछ ही दिन पहले करनैल सिंह को, जो तब ईडी में विशेष निदेशक थे, आयकर विभाग के एक बड़े अधिकारी द्वारा वित्त मंत्रालय को लिखे गए एक पत्र के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी में पदस्थापित किए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। अफवाह है कि उञ्चत अधिकारी ईडी के शीर्ष पद की चाह रखते थे और उन्होंने अपने पत्र में करनैल सिंह तथा दो अन्य अधिकारियों के खिलाफ कुछ मामलों में धीमी जांच करने का आरोप लगाया था। इन मामलों में दो रीयल इस्टेट कंपनियों का मामला भी शामिल था जिनमें से एक का स्वामित्व कांग्रेस आलाकमान के करीबी कांग्रेस नेता और दूसरी का भाजपा नेता के पास था और यह नेता दिवंगत प्रमोद महाजन के करीबी थे।
इसी समय के आसपास प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर एक निर्णायक हमला भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की ओर से किया गया जिन्होंने आरोप लगाया कि ईडी के मुखिया राजन कटोच सबूतों की भरमार होने के बावजूद नेशनल हेराल्ड केस को बंद कर रहे हैं। तथ्य यह था कि ईडी के कई रिमाइंडरों के बावजूद सीबीआई ने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी जबकि यह भी तथ्य है कि ईडी ने भी इस मामले में प्रारंभिक जांच (पीई) तक दर्ज नहीं की थी। अब इसे स्वामी का दबाव कहें या प्रशासनिक फैसला, कटोच को हटा दिया गया और करनैल सिंह ईडी के कार्यकारी निदेशक बना दिए गए।
इसके बावजूद विडंबना यही है कि न तो सीबीआई और न ही ईडी ने नेशनल हेराल्ड मामले में औपचारिक केस दर्ज किया है। मामले में अधिकतर जांच सूत्रों पर आधारित है। विडंबना यह भी है कि आयकर विभाग या प्रधानमंत्री कार्यालय आदि जैसी एजेंसियों के पास छितराए सबूतों के प्रति खुद स्वामी भी वाकिफ नहीं हैं।
उदाहरण के लिए पंचकुला के सेक्टर छह स्थिति सी-17 नंबर पता लीजिए। यह प्लाट जिसकी कीमत वर्ष 2006 में 59 लाख रुपये थी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने बेचा था। एजेएल के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक के रूप में मोतीलाल वोरा ने 2006 में इस भूखंड का कब्जा ले लिया मगर इसका कन्वेंस डीड 2012 में साइन किया गया। वोरा ने इस भूखंड को 14.60 करोड़ में रेहन रख दिया। इस बात पर किसी ने सवाल नहीं खड़े किए कि सौदे के समय केंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस की सरकारें थीं। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि पूर्व अनुमति से इस संपत्ति को रेहन या बंधक रखा गया। एजेएल को जो भी आवंटन किया गया था वह नियमों के अनुसार था।
एनडीए के सत्ता में आने के बाद जून, 2014 में जब आयकर विभाग ने एजेएल को इस लेन-देन के मामले में नोटिस भेजा तो कांग्रेस ने सरकार पर परेशान करने का आरोप लगाया। दरअसल, टैक्स अधिकारियों का मानना था कि कांग्रेस ने एजेएल को जो 90 करोड़ का लोन दिया था उसे 10 रुपये वाले 9 करोड़ शेयर में बदलना कानून सम्मत नहीं था। चूंकि 90 करोड़ का लोन बैंकों के जरिये दिया गया था इसलिए उसकी वापसी भी उसी तरीके से होनी चाहिए थी। विभाग ने साफ कहा कि एजेएल ने कानून का उल्लंघन किया था इसलिए इस मामले में जुर्माने के प्रावधान लागू होते हैं। इस टैक्स वंचना के मामले में जुर्माना वास्तविक रकम यानी 90 करोड़ रुपये के बराबर हो सकता है। इस सौदे के कारण सरकारी खजाने को 39.86 लाख रुपये होने का अनुमान लगाया गया।
कांग्रेस द्वारा 90 करोड़ रुपये की कर्ज माफी और एजेएल द्वारा इस कर्ज को 9 करोड़ शेयरों में बदलने को आयकर विभाग के एसेसिंग ऑफिसर वी.एस. नेगी ने उपहार की संज्ञा दी। उन्होंने लिखा, 'कांग्रेस कमेटी द्वारा मेसर्स यंग इंडियन को 90 करोड़ 21 लाख 68,980 रुपये के उपहार की सूचना मेसर्स यंग इंडियन के एसेसिंग अधिकारी को आवश्यक कदम उठाने के लिए भेजी जा रही है।’ आयकर अधिकारी का यह असेसमेंट 17 जनवरी, 2014 को भेजा गया जब कि कांग्रेस खुद केंद्र की सत्ता में थी।
दो महीने बाद कोलकाता के आयकर कार्यालय ने एक संदिग्ध हवाला डीलर उदय शंकर महावर का बयान दर्ज किया। वह डॉटेक्स मर्केंडाइज प्राइवेट लिमिटेड नामक उस कंपनी का मालिक था, जिसने यंग इंडियन के निदेशकों को 1 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। महावर ने टैक्स अधिकारियों को बताया, 'बोगस शेयर पूंजी उगाहने के बाद इस कंपनी (डॉटेक्स मर्केंडाइज)’ को आरपीजी समूह को बेच दिया गया। इस कंपनी में बोगस शेयर पूंजी कोलकाता की ही आरपीजी समूह से मिले बिना लेखा वाले पैसे के जरिये उगाहा गया। उसने कहा, 'मैंने बिना लिखा-पढ़ी वाले कालेधन को शेयर पूंजी के रूप में सफेद करने में मदद की।’
कांग्रेस का कहना है कि इस कंपनी से लिया गया कर्ज ब्याज के साथ चुका दिया गया है। वर्ष 2013 में 10 जनपथ पर यंग इंडियन की जनरल बॉडी मीटिंग में संचालन समिति ने डॉटेक्स से 1 करोड़ रुपये के लोन को मंजूरी दी थी। सवाल यह है कि कांग्रेस यह लोन किसी बैंक से क्यों नहीं ले सकती थी खासकर तब जबकि यह लोन 14 फीसदी के ऊंचे ब्याजन दर पर मिला था। सवाल यह भी है कि क्या आरपीजी समूह जैसी बड़ी कंपनी को काले धन को सफेद करने की जरूरत थी? यदि हां तो आखिर यह किसका पैसा था?