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18 August 2021

ग्राउंड रिपोर्ट: जानें, अफगानियों की जुबानी, तालिबानी जुल्म की कहानी- कहा, "देश जाते ही परिवार के साथ कर लूंगा आत्महत्या"

सभी फोटो- नीरज झा

37 साल के मोहम्मद जलाल अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को बताते हुए रोने लगते हैं। अफगानिस्तान एंबेसी में वे अपने पासपोर्ट के काम से मंगलवार की दोपहर आए थे। आउटलुक से वो बताते हैं, “मैं अब तक 22 बार भारत आ चुका हूं। लेकिन, जिस बात की हमें उम्मीद इस देश से थी वो नहीं दिखी। सभी देशों ने हमें मरने के लिए छोड़ दिया है। तालिबानी हुकूमत आने के बाद हमारा परिवार खत्म हो गया। घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनके भविष्य का क्या होगा, अब जब अफगानिस्तान का ही कोई भविष्य नहीं है। महिलाओं-लड़कियों-बच्चों को फिर से वही जुल्म तले मरना होगा, जो हमनें 1996-2001 के दौरान देखें थे।”

सुनिए- अफगानिस्तानी महिला से तालिबानी जुल्म की कहानी, कैसे ये लड़कियों पर करते हैं बर्बरता, बता रही हैं वहां के हालात

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मो. जलाल की तरह ही मो.  इलयाज, मो. सोएब, मो. आबिद, नाइबा, फरहात सरीखे कई अन्य अफगानी लोग अफगानिस्तान एंबेसी में पासपोर्ट को अपडेट करने या वहां के मौजूदा हालात, अपने परिवार के बारे में पता करने के लिए आए हुए हैं। इस वक्त भारत में रहने वाले अफगानी लोगों की अफगानिस्तान में अपने परिवार के साथ बातचीत करने में सर्वर-नेटवर्क की काफी दिक्कतें हो रही है।

 

साइमा मुरीद अपने 10 साल की बेटी के साथ एंबेसी आई हुई हैं। वो आउटलुक को बताती हैं, “चार साल से मैं दिल्ली में रह रही हूं। बेटी भोगल स्कूल में पढ़ाई कर रही है। भारत में हूं इसलिए सुरक्षित हूं। वहां के हालात मानवता के खिलाफ हैं। मेरे कई संबंधी, बहन और अन्य लोग हेरात शहर में हैं। उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। महिलाओं के लिए सबसे ज्यादती भरा समय है। फिर से महिलाओं-लड़कियों को गुलाम बना लिया जाएगा।” मुरीद कहती हैं कि अब अफगानिस्तान का कोई भविष्य नहीं है। ये सौ साल पीछे जा चुका है। हमनें 1996-2001 के तालिबानी जुल्म को देखें हैं। वो बताती हैं, “भले ही तालिबानी कह रहे हैं कि सभी नागरिकों को अधिकार मिलेगा। उन्हें इस्लाम के हिसाब से जीने की स्वतंत्रता होगी। लेकिन, ये कौन लोग हैं, वहीं हैं जो उस वक्त थे। इन पर विश्वास करना मुश्किल है।”

साइमा इस वक्त अफगानिस्तान लौटकर नहीं जाना चाहती हैं, लेकिन मो. जलाल जाना चाह रहे हैं। वो बताते हैं, “मेरा पूरा परिवार वहां पर है। मेरे पास मरने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वहां जाने के बाद मैं अपने परिवार-बच्चों के साथ आत्महत्या कर लूंगा।” उनका आरोप है कि भारत आने के दौरान भी उनके साथ ज्यादती हुई है। दिल्ली एयरपोर्ट पर उन्हें प्रशासन द्वारा परेशान, तंग किया गया। वो कहते हैं, “भारत हमारा दूसरा घर है। तालिबान के पीछे अमेरिका है। पाकिस्तान में मैंने शर्णार्थी के रूप में 2006 तक पढ़ाई की है। मेरे एक क्लासमेट ने अब तालिबान ज्वाइन कर लिया है।”मो. जलाल की अपील है कि भारत सरकार अफगानियों के लिए इस वक्त आने के रास्ते को आसान बना दें। पासपोर्ट वीजा फ्री एवं सहुलियत से प्रदान करें।

मो. आबिद अपनी पत्नी नूरजाद के साथ एंबेसी पासपोर्ट के काम से आए हुए हैं। आबिद बताते हैं, “जीवन खतरे में है। एक सप्ताह पहले भारत आया हूं। पहले भी आ चुका हूं।” 

वहीं, उनकी पत्नी नूरजाद बताती हैं, “बताइए, कोई लड़की पढ़ाई करने के बाद चार-दीवारी के भीतर कैसे रह सकती है। तालिबानी हमें बाहर नहीं निकलने देंगे। हमें मार दिया जाएगा या उठाकर वो अपने इस्तेमाल के लिए ले जाएंगे। मेरी बहन से रविवार को बात हुई है। वो बता रही थी वो अपने महरम (पत्नी या आदमी) के बिना घर से बाहर गई थी, उसे सजा दी गई है। अब बच्चों, लड़कियों के लिए सभी दरवाजें बंद हो गए हैं।”वो कहती हैं कि यदि महिलाओं के शरीर का कोई भी अंग दिख जाता है तो वो यहां तक की उन्हें मार देते हैं।

अफगानिस्तान में अब तालिबानी राज के बाद दिल्ली में रहने वाले अफगानी लोग बातचीत के दौरान अपना नाम या कैमरे के सामने नहीं बोलना चाह रहे हैं। उन्हें डर है कि यदि उनका डिटेल्स तालिबान के पास चला जाएगा तो उनके परिवार को वो कैद कर लेंगे या उन पर जुल्म करेंगे।

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दिल्ली के लाजपत नगर, मालवीय नगर, भोगल इलाके में बड़ी तादात में अफगानिस्तान से आए लोग रहते हैं। लाजपत नगर- 2 में चार सालों से फॉर्च्यून की दुकान चलाने वाले 22 साल के मो. सुलेमान बताते हैं, “खुशी है कि हम भारत में हैं। वहां होते तो जिंदा नहीं होते।” इनके 15 साल के छोटे भाई मो. समीर आराम से चाउमिन खा रहे हैं। पूछने पर कहते हैं, “खुदा का शुक्र है कि हम यहां हैं। अब मैं अफगानिस्तान कभी नहीं जाउंगा। घर के लोग तालिबानी राज के उस वक्त को याद करते हुए रोने लगते हैं। मेरे मामा-चाचा अभी भी वहां हैं। वो किस हाल में है पता नहीं, यदि हम वहां होंगे तो हमें बंदूक दिया जाएगा। पढ़ने या रोजगार करने नहीं दिया जाएगा।”

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TAGS: Afghanistan, Ground report, Our Second Home India, Committed Suicide, Taliban Oppression, Afghanistan Embassy, Neeraj Jha, नीरज झा, China, Pakistan, USA, UN, तालिबानी जुल्म, अफगानियों की जुबानी, तालिबानी जुल्म की कहानी
OUTLOOK 18 August, 2021
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